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काम में दिलचस्पी दिखाएं, इसमें नहीं कि आपको क्या मिलता है: डॉ वी रामगोपाल राव

डॉ. राव का मुख्य लक्ष्य ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित करना है जिससे समाज को मदद मिले. वे विस्फोटकों की पहचान करने वाली हैंड-हेल्ड डिवाइस तैयार करने के लिए प्रसिद्ध हैं. बता रही हैं सोनाली आचार्जी

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डॉ वी रामगोपल राव
डॉ वी रामगोपल राव

आइआइटी-बॉम्बे से माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स में ग्रेजुएट और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टरल फेलो डॉ. वी. रामगोपाल राव के रिसर्च से नैनो स्केल के इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट पर मटीरियल और डिवाइस डिजाइन के असर को समझने की दिशा में काफी मदद मिली है. डिवाइस-सर्किट इंटरैक्शंस में भी उनका काफी योगदान रहा है, जिससे मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाले इंटीग्रेटेड सर्किट में पावर की कम जरूरत और कार्यकुशलता बढ़ाने की बुनियाद तैयार हुई है.

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इस साल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के लिए इन्फोसिस साइंस प्राइज देने वाली इन्फोसिस जूरी चेयर के सदस्य प्रदीप खोसला ने कहा, ''राव ने पैनी दृष्टि के साथ केमिस्ट्री और मेकेनिक्स को नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स के साथ मिलाया है. इसका इस्तेमाल हम अपने डिवाइसेज में करते हैं और उनका काम भविष्य की राह में बड़ा कदम है जिसका जबरदस्त असर होगा.”

राव फिलहाल आइआइटी-बॉम्बे के सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स में चीफ इन्वेस्टिगेटर हैं. यह सेंटर विभिन्न क्षेत्रों की गतिविधियों का केंद्र बनकर उभरा है और यह इंडियन नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स यूजर्स प्रोग्राम का सेंटर है जिससे 92 संस्थाएं जुड़ी हैं. इस सेंटर ने नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में इंडस्ट्री-एकेडमिक जगत के बीच साझेदारी को आगे बढ़ाया है और इसके साथ ही साथ भारत में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की तरक्की को भी संभव बनाया है.

समाज की खातिर रिसर्च मैं तेलंगाना क्षेत्र के एक छोटे से टाउन में पला-बढ़ा और 12वीं क्लास तक तेलुगू माध्यम के एक स्कूल में पढ़ाई की. तब मेरे बैकग्राउंड के स्टुडेंट्स के लिए इंजीनियरिंग या मेडिसिन जैसे सिर्फ  दो विकल्प ही उपलब्ध थे. मैंने मास्टर्स की पढ़ाई के लिए आइआइटी-बॉम्बे में दाखिला लिया और यहीं से पहली बार मेरे अंदर रिसर्च फील्ड में दिलचस्पी पैदा हुई. ईमानदारी से कहूं तो नौकरी की दौड़ में शामिल होने की मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि इसकी जगह मुझे रिसर्च और समाज के लिए उपयोगी प्रोडक्ट तैयार करना पसंद था. पिछले छह साल से मैं एक हैंड-हेल्ड लो कॉस्ट एक्सप्लोसिव डिटेक्टर के विकास पर काम कर रहा हूं. इसके पीछे लक्ष्य यह है कि देश के हर पुलिसकर्मी और सुरक्षा गार्ड को ऐसी डिवाइस दी जाए जिसके बाद स्निफर डॉग्स की जरूरत नहीं रह जाएगी. ऐसे काम में आगे बढऩे में काफी संतुष्टि होती है जिसका हमारे समाज पर काफी सकारात्मक असर पड़ता हो. यह मेरी प्रमुख रिसर्च में से एक है.

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मौके भारत में रिसर्च के लिए फंडिंग पर्याप्त रूप से उपलब्ध है. हमने आइआइटी-बॉम्बे में नैनोफैब्रिकेशन फैसिलिटी की स्थापना के लिए पिछले सात साल में करीब पांच करोड़ डॉलर जुटाए हैं. इस फैसिलिटी से हम पूरा सिस्टम और सर्किट बनाकर समस्याओं पर कार्य करने में सक्षम हुए हैं. आज निश्चित रूप से रिसर्च के मौके मौजूद हैं. हालांकि, कमी बस यह है कि इंडस्ट्री-एकेडमिक-सरकारी साझेदारी उस स्तर तक नहीं हो पाई है. रिसर्च में इंडस्ट्री को शामिल करना एक चुनौती है.

पेड़ों के लिए जंगल को न भूल जाएं
हम आइआइटी-बॉम्बे में बेस्ट और ब्राइटेस्ट स्टुडेंट को हासिल करते हैं. लेकिन अकसर मैं देखता हूं कि यहां स्टुडेंट बंद दिमाग के साथ आते हैं. उनमें से ज्यादातर पहले से तय करके आते हैं कि उन्हें जीवन में क्या चाहिए और वे सीखने की जगह सही जॉब पाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं. इंस्टीट्यूट में हमारे मुख्य रिसोर्स एमटेक या पोस्टग्रेजुएट स्टुडेंट होते हैं, जो आम तौर पर छोटे कॉलेजों से आते हैं. वे काफी मोटिवेटेड व्यक्ति होते हैं जो ज्यादातर उपलब्ध अवसरों का फायदा उठाने के इच्छुक होते हैं. मेरी सलाह यह है कि हमेशा दिमाग खुला रखना चाहिए, आपको उस काम में दिलचस्पी दिखानी चाहिए जो आप करते हैं, न कि इसमें कि इससे क्या मिलेगा. यह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की कुंजी हो सकती है.

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डॉ. वी. रामगोपाल राव/ इंस्टीट्यूट चेयर, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स, आइआइटी-बॉम्बे

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