दिल्ली प्रदेश की सत्ता संभालने वाली तमाम सरकारें स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों को लेकर आंकड़े जुटाती रही हैं. वे छोटे-छोटे सर्वे के आधार पर इनकी संख्या 7000 से 8000 तक तय करती रही हैं. हालांकि इस बीच आधिकारिक तौर पर हुए एक्सरसाइज में यह आंकड़ा लाख तक पाया गया है. इस वजह से सरकार और व्यवस्था में अफरातफरी है.
पहले राउंड में आए आंकड़े के बाद शिक्षा विभाग के अधिकारी इन आंकड़ों को लेकर पेशोपेश में हैं. सरकार इसे लेकर एक्शन के मूड में है. बीते माह संपन्न हुए एक मीटिंग में एजुकेशन विभाग के डायरेक्टरेट ने फैसला लिया कि वे सारे सरकारी और म्यूनिसिपल स्कूलों में स्पेशल ट्रेनिंग केन्दों की शुरुआत करेंगे. वे इसे लेकर सघन और सजग तैयारी कर रहे हैं.
इसे लेकर म्यूनिसिपल बॉडी ने साल 2015 में शिक्षकों के माध्यम से घर-घर जाकर सर्वे किया, दूसरे राउंड का सर्वे मार्च-अप्रैल 2016 में किया गया. साल 2015 के सितंबर माह तक प्रदेश के 14.38 लाख घरों का सर्वे किया गया था. इसमें उन्हें 7 से 14 साल उम्रसीमा के 33,565 बच्चे स्कूलों से बाहर मिले. इसे यदि 2011 के जनगणना आकड़े से मेल करें तो स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या 80,000 से 1 लाख के आस-पास पहुंचेगी.
सरकार को इसे लेकर सजग रहे. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का कहना है कि इसमें वैसे बच्चे भी शामिल हैं जो नशे की गिरफ्त में हैं. यह आंकड़े 4000 के आस-पास हैं. ऐसे बच्चे क्राइम की तरफ बड़ी तेजी से मुड़ते हैं. इस मामले पर सेंटर ऑफ पॉलिसी रिसर्च से सम्बद्ध किरण भाट्टी कहती हैं कि पढ़ाई न कर पाने और नशे की गिरफ्त में आने की वजह से ऐसे बच्चों की जिंदगियां तबाह हो जाती हैं.
हालांकि इस मामले पर कोई आंकड़ा अंतिम सत्य नहीं है. जनगणना आंकड़े 2011 को देखें तो 7 से 14 साल की उम्रसीमा में 2 लाख से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर हैं. वार्ड रजिस्ट्री सर्वे के हिसाब से 5,137 बच्चों ने जहां स्कूल छोड़ा वहीं 28,428 बच्चे कभी स्कूल ही नहीं गए. NSSO इस क्रम में 6 से 13 साल तक के बच्चों को सैंपल सर्वे में शामिल करती है.