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'विदेशी' निवेदिता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठाई थी आवाज

महिला शिक्षा और आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल उर्फ भगिनी निवेदिता की आज पुण्यतिथि है. स्वामी विवेकानंद की शिष्या निवेदिया विदेशी थीं और उनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड के काउंटी टाइरोन में हुआ था.

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सिस्टर निवेदिता
सिस्टर निवेदिता

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स्वामी विवेकानंद की शिष्या निवेदिया विदेशी थीं और उनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड के काउंटी टाइरोन में हुआ था. उनके पिता सैम्युएल रिचमंड नोबल एक पादरी थे और उन्होंने अपनी पुत्री को मानव सेवा की सीख दी. आइरिश मूल की निवेदिता की शुरुआती पढ़ाई के दौरान कला और संगीत में दिलचस्पी थी. बड़े होने पर उन्होंने बतौर शिक्षक काम करने का फैसला किया. उन्होंने हैलीफैक्स कॉलेज से शिक्षा पूरी की. उन्होंने भौतिकी, कला, संगीत, साहित्य समेत कई विषयों का गहन अध्ययन किया और वो 17 साल की उम्र में शिक्षिका बनीं.

स्वामी विवेकानंद से हुई मुलाकात

1895 में उनके जीवन में निर्णायक मोड़ आया. इस साल लंदन में उनकी स्वामी विवेकानंद से मुलाकात हुई. वह स्वामी जी से इतनी प्रभावित हुईं कि तीन साल बाद भारत को अपनी कर्मभूमि बनाने आ गईं. मारग्रेट को युवावस्था में धर्म के मौलिक विचारों को लेकर कुछ संदेह और अनिश्चिताएं थीं, जिनके निराकरण के लिए वह स्वामी विवेकानंद से अपनी एक परिचित लेडी मार्गेसन के जरिए मिली थीं. स्वामी विवेकानंद ने नोबल को 25 मार्च 1898 को दीक्षा देकर शिष्या बनाया. विवेकानंद ने उनसे भगवान बुद्ध के करुणा के पथ पर चलने को कहा. स्वामी बोले, उस महान व्यक्ति का अनुसरण करो, जिसने 500 बार जन्म लेकर अपना जीवन लोककल्याण के लिए समर्पित किया और फिर बुद्धत्व प्राप्त किया.

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निवेदिता नाम मिला

दीक्षा के बाद स्वामी विवेकानंद ने उन्हें नया नाम निवेदिता दिया. बाद में उनके नाम के आगे 'सिस्टर' का संस्कृत शब्द भगिनी भी जुड़ गया. स्वामी विवेकानंद ने मारग्रेट एलिजाबेथ नोबल को भगिनी निवेदिता यानी `ईश्वर को समर्पित' नाम दिया. निवेदिता का एक अर्थ स्त्री शिक्षा को समर्पित भी होता है. भगिनी निवेदिता कुछ समय अपने गुरु स्वामी विवेकानंद के साथ भारत भर में घूमती रहीं. फिर वह कलकत्ता (अब कोलकाता) में बस गईं. अपने गुरु की प्रेरणा से उन्होंने कलकत्ता में लड़कियों के लिए स्कूल खोला. निवेदिता स्कूल का उद्घाटन स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस की जीवनसंगिनी मां शारदा ने किया था. भगिनी निवेदिता के संपर्क में रवीन्द्रनाथ टैगोर, जगदीश चन्द्र बसु, अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और नंदलाल बोस जैसे लोग थे. उन्होंने रमेशचन्द्र दत्त और यदुनाथ सरकार को भारतीय नजरिए से इतिहास लिखने की प्रेरणा दी.

आजादी आंदोलन से जुड़ीं

शुरुआत में निवेदिता मानती थीं कि भारत और ब्रिटेन को साथ काम करना चाहिए. मगर जब भारत में उन्होंने ब्रिटिश राज का आतंकी स्वरूप देखा तो वह भारतीयों के आजादी आंदोलन की हमराही हो गईं. उनकी राजनीतिक सक्रियता से रामकृष्ण मिशन को हानि न हो इसलिए वह मिशन से अलग हो गईं. भगिनी निवेदिता दुर्गापूजा की छुट्टियों में दार्जीलिंग घूमने गईं. वहीं उनकी सेहत खराब हो गई. 13 अक्टूबर 1911 को 44 साल की उम्र में उनका असामयिक निधन हो गया.

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