सावित्रीबाई फुले को महिलाओं के लिए काम करने के लिए जाना जाता है. एक ओर जहां उन्होंने बालिका शिक्षा के लिए विद्यालय खोले तो वहीं दूसरी ओर समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई.
उन्हें भारत की पहली महिला अध्यापिका और नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता कहा जाता है.
अनवरत योद्धा ज्योतिबा फुले के जन्म पर उन्हें याद करते हुए...
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला था.
सावित्रीबाई ने समाज में प्रचलित ऐसी कुप्रथाओं का विरोध किया जो खासतौर से महिलाओं के विरूद्ध थी. उन्होंने सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध के खिलाफ आवाज उठाई और जीवनपर्यंत उसी के लिए लड़ती रहीं.
देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले के जीवन की दस बातें
उन्होंने एक विधवा ब्राह्मण महिला को आत्महत्या करने से रोका और उसके नवजात बेटे को गोद लिया. उसका नाम यशवंत राव रखा. पढ़ा-लिखाकर उसे डॉक्टर बनाया.
1897 में बेटे यशवंत राव के साथ मिलकर प्लेग के मरीजों के इलाज के लिए अस्पातल खोला.
प्लेग के मरीजों की देखभाल करते हुए वो खुद भी इसकी शिकार हुईं और 10 मार्च 1897 को उनका निधन हुआ.