क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि एक आम व मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले किसी भी नवयुवक के लिए AIIMS जैसे बहुप्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला लेना कितना मुश्किल हो सकता है? और यदि वह लड़का किसी आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने के अलावा अनाथ भी हो तो फिर आप क्या कहेंगे? लेकिन ओडिशा के गंजम जिले में रहने वाले नारायण मल्लिक (18) वर्ष ने इन तमाम परेशानियों से लड़ते हुए एम्स के दाखिला परीक्षा में 13वीं रैंक (आदिवासी कैटेगरी) में हासिल की है. वे अब न्यूरोलॉजिस्ट बनने के अपने सपने को पूरा कर सकेंगे
हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा...
नारायण के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वे डॉक्टरी की तैयारी के लिए इस्तेमाल होने वाली किताबों को खरीद पाएं. ऐसे में बेरहामपुर के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट ने उन्हें काफी मदद की. यह इंस्टीट्यूट उनकी कोचिंग का इंतजाम और मुफ्त मे किताबें मुहैया करवा दिया करता था, ताकि वे किसी अग्रणी मेडिकल संस्थान में दाखिला ले सकें.
माता-पिता भी साथ छोड़ गए...
वे अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे. उनकी मां साल 2013 में चल बसीं और साल 2015 में पिता भी दुनिया छोड़ गए. इन तमाम दिक्कतों के बावजूद वे अपनी पढ़ाई में लगे रहे. उनके पिता की मौत ब्रेन ट्यूमर की वजह से हुई और इसी वजह से वे न्यूरोलॉजिस्ट बन कर गरीब और वंचित जनता के लिए काम करना चाहते हैं. अब उनका अगला पड़ावा भुवनेश्वर का AIIMS है. यहां दाखिले के लिए काउंसिलिंग आगामी 8 जुलाई से शुरू होंगे.