उधम सिंह पुण्यतिथि: 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी. जहां उधम सिंह भी पहुंचे, उनके साथ एक किताब भी थी. इस किताब में पन्नों को काटकर उन्होंने एक बंदूक रखी हुई थी. बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और पंजाब प्रांत के गवर्नर रहे माइकल ओ ड्वायर के सीने में गोलियां उतार दीं. माइकल ओ ड्वायर ने अमृतसर नरसंहार के संबंध में कर्नल रेजिनाल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया था और इसे सही ठहराया था.
जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने की मंशा से 21 साल तक वो लंदन में इंतजार करते रहे थे. बता दें कि 31 जुलाई के दिन उन्हें लंदन की कोर्ट में फांसी दी गई थी. आइए जानते हैं इस वीर सपूत से जुड़ी कुछ खास बातें-
21 साल के इंतजार के बाद माइकल ओ ड्वायर को उसके देश में घुसकर खुलेआम गोली मारी. तभी से शेरसिंह (असली नाम) को देश में उधम सिंह नाम से पहचान मिलने लगी. उनके इस नाम और काम के पीछे की कहानी रोमांच से भरी और रोंगटे खड़े करने वाली है.
बता दें कि भारत मां के वीर सपूत शहीद उधम सिंह को आज ही के दिन 1940 में फांसी दी गई. उन पर माइकल ओ ड्वायर की हत्या का आरोप था. आजादी का ये दीवाना लंदन की पेंटनविले जेल में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया था. सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आजादी की लड़ाई में पंजाब के क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है. उनका असली नाम शेर सिंह था और कहा जाता है कि साल 1933 में उन्होंने पासपोर्ट बनाने के लिए 'उधम सिंह' नाम रखा था.
छोटी उम्र में कर लिया था फैसला
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. कम उम्र में ही माता-पिता का साया उठ जाने से उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उन्हें अनाथालय में भी रहना पड़ा. फिर 1919 में हुए जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने का फैसला किया और अपनी जिंदगी आजादी की जंग के नाम कर दी. उस वक्त वे मैट्रिक की परीक्षा पास कर चुके थे.
नास्तिक थे उधम सिंह
आजादी की इस लड़ाई में वे 'गदर' पार्टी से जुड़े और उस वजह से बाद में उन्हें 5 साल की जेल की सजा भी हुई. जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना नाम बदला और पासपोर्ट बनवाकर विदेश चले गए. लाहौर जेल में उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई. उधम सिंह पूरी तरह नास्तिक थे, वो भी भगत सिंह की तरह किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते थे.
21 साल का ये इंतजार और बदला पूरा
देश में सामूहिक नरसंहार की अब तक की सबसे बड़ी घटना कही जाने वाली जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद माइकल ओ ड्वायर को घटना के बाद लंदन भेज दिया गया था. बताते हैं कि ड्वायर को लगने लगा था कि वह अपने शासन काल में हिंदुस्तानियों के भीतर डर बैठाकर वापस अपने वतन आ गया है. लेकिन कोई था जो उसका साये की तरह पीछा कर रहा था. ये कोई और नहीं बल्कि भारत का शेर सिंह था, जो उधम के नाम से पासपोर्ट बनाकर लंदन आ चुका था.
ऐसे दी गिरफ्तारी
गोली चलाने के बाद भी उधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.