उनकी उम्र 73 वर्ष हो चुकी है लेकिन वे खुद को 27 साल का ही मानते हैं. उम्र के उस दौर में जब अच्छे-अच्छे भी काम से कन्नी काटकर अपनी जमा-पूंजी समेटने लगते हैं, उन्होंने दो शुक्रवार को 1,000 करोड़ रु. से ज्यादा की दो फिल्में देकर सनसनी फैला दी है.
उन्होंने एक बार फिर से भारतीय सिनेमा जगत में कहानीकार को मुख्यधारा में लौटा लाने का काम किया है. जितनी अलग-अलग रंग की कहानियां वे लिखते हैं, उतने ही अजब-गजब व्यक्तित्व के वे खुद हैं. तभी तो अपना ज्यादातर पैसा चैरिटी में दान दे देते हैं और मानते हैं कि दान ऐसे करो कि बाएं हाथ को न पता चले कि दाएं से कुछ गया है. बाहुबली और बजरंगी भाईजान की कहानी लिखने वाले वी. विजयेंद्र प्रसाद कहते हैं, ''मैं कहानी लिखने का मजा लेता हूं. फेम और पैसा तो बोनस है.'' बतौर कहानीकार किस तरह की कहानियां विजयेंद्र प्रसाद को अपनी ओर खींचती हैं? वे हंसते हुए जवाब देते हैं, ''वर्जिन कहानियां...ऐसी कहानियां जो पहले कभी नहीं कही गई हों. मैं कुछ भी रिपीट नहीं करना चाहता.''
विजयेंद्र जितनी दिलचस्प कहानियां लिखते हैं, उतनी ही दिलचस्प उनकी अपनी जिंदगी भी है. उनका जन्म आंध्र प्रदेश में पश्चिम गोदावरी जिले के कोवूर में हुआ. पिता ठेकेदार थे और खाता-पीता परिवार था. छह भाई और एक बहन में वे सबसे छोटे थे. घर में किसी को खेती का कोई शौक नहीं था. उन्हीं के शब्दों में, ''मैं ऐसा किसान था जो कभी खेत में नहीं गया.'' ऐसे में जमीनें बिकती गईं. उनके सबसे बड़े भाई शिव शक्ति दत्ता को शायरी और कला का शौक था. वे फिल्म डायरेक्टर बनना चाहते थे. फिल्मों में भाग्य आजमाने के लिए वे भाइयों समेत चेन्नै चले गए. लेकिन तब वहां किस्मत ने साथ नहीं दिया. परिवार की कई फिल्में कभी रिलीज ही नहीं हो पाईं. सारी जमीन-जायदाद हाथ से निकल गई. ऐसी नौबत आ गई कि रोजाना एक किलो चावल के भी लाले पड़ गए.
हालात साजगार नहीं थे. यहीं स्थितियां एक नाटकीय मोड़ लेती हैं. उनके एक क्लासमेट प्रकट हुए, जो उनके भाई शिव शक्ति दत्ता को राइटर-डायरेक्टर राघवेंद्र राव के पास ले गए. इस तरह बड़े भाई कहानियों को लेकर उनके साथ बैठने लगे. छोटे भाई विजयेंद्र भी इन बैठकों का हिस्सा बनते. कामयाबी के अलावा उनके सामने कोई विकल्प नहीं था. राघवेंद्र राव ने उन्हें जानकी रामुडु (1988) की कहानी साझा रूप से लिखने के लिए कहा. इस तरह तेलुगु सिनेमा में भाई के साथ उनके करियर का श्रीगणेश हुआ. उनकी अकेले बतौर लेखक पहली फिल्म बंगारू कुटुंबम (1994) थी. वे मानते हैं कि उनका कहानीकार बनना महज एक इत्तेफाक था. बकौल विजयेंद्र, ''जब मैंने कहानी को आकार लेते देखा तो मुझे समझ आया कि अच्छी कहानी कहने के लिए हमें झूठ बोलना आना चाहिए. एक ऐसा झूठ जो हमें सच का एहसास दिलाता हो.'' वे हंसते हुए कहते हैं, ''मैं बहुत बड़ा झूठा हूं.''
वे अभी तक लगभग दो दर्जन फिल्मों की कहानी लिख चुके हैं और तीन फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. उन्होंने अपने बेटे डायरेक्टर राजमौलि के लिए सात फिल्में लिखी हैं और सभी सुपरहिट रही हैं. इनमें मगधीरा, छत्रपति, विक्रमारकुडु (हिंदी में राउडी राठौर) और यमडोंगा प्रमुख हैं. इस सवाल पर कि अपने बेटे राजमौलि के साथ काम करते समय उनके संबंध किस तरह के रहते हैं? वे जवाब देते हैं, ''काम करते समय पूरी तरह से डायरेक्टर और राइटर वाला. मैं उसके इनपुट को पूरी तरह ध्यान में रखता हूं.'' तभी तो उन्होंने जब बाहुबली की कहानी लिखी तो उनके ध्यान में महाभारत थी. वजहः राजमौलि पर अमर चित्रकथा का खूब असर रहा है और महाभारत उन्हें हमेशा से आकर्षित करती आई है. उनके मुताबिक, ''कहानी कहते समय मेरी कोशिश रहती है कि इसे बहुत ही सिंपल रखा जाए. ऐसी कहानी जो सबको जोड़ सके और जिसे देखने के बाद दर्शकों की आंखं खुली रह जाएं.'' ऐसी कहानी लिखने के लिए वे तैयारी किस तरह से करते हैं? ''कहानी लिखते समय मैं एक दर्शक की तरह सोचता हूं. अगर बतौर दर्शक मुझे कहानी अच्छी लगती है और पात्रों की छवि सामने खिंच जाती है तभी मैं आगे बढ़ता हूं.'' उन्हें जानने वाले बताते हैं कि वे शोले के जबरदस्त फैन हैं और कोई भी नई कहानी लिखने से पहले शोले जरूर देखते हैं.
उनके करीबी उनके कहानी कहने के कौशल की तारीफ करते नहीं थकते. उनके दोस्तों में से एक और तेलुगु फिल्मों के राइटर-ऐक्टर के.एल. प्रसाद बताते हैं कि वे रोजाना 4-5 कहानियां सुनाते हैं. वे एक वाकया बताते हैं, ''एक बार हम बात कर रहे थे तो उसमें स्टीवन स्पीलबर्ग की ई.टी. द एक्स्ट्रा टेरस्ट्रियल (1982) का जिक्र आया कि किस तरह एक भद्दे-से प्राणी से फिल्म का अंत होने तक दर्शक उसके प्रेम में बंध जाते हैं. मैंने कहा कि क्या हम कोई ऐसा कैरेक्टर नहीं बना सकते? उन्होंने थोड़ा-सा सोचा और कहा, 'क्यों नहीं? हम मक्खी को लेकर बना सकते हैं.'' मेरे और उनके घर के बीच की दूरी छह किलोमीटर की थी. उन्होंने इस बीच पूरी कहानी गढ़ डाली.'' इस तरह ईगा का जन्म हुआ जिसे राजमौलि ने लिखा और डायरेक्ट किया.
बजरंगी भाईजान से जुड़ी उनकी दास्तान कम दिलचस्प नहीं. उन्होंने यह फिल्म सबसे पहले साउथ के बड़े प्रोड्यूसर रॉकलाइन वेंकटेश को सुनाई थी. उन्हें यह स्टोरी पसंद आई और वे इसे रजनीकांत के साथ बनाना चाहते थे. लेकिन किन्हीं वजहों से वह नहीं हो सका. इसके बाद विजयेंद्र के दोस्त राजेश भट्टड्ढ ने उनकी कहानी को मुंबई लाने का काम किया. वे उन्हें आमिर खान के पास ले गए. आमिर ने कहानी सुनी. अच्छी भी लगी पर डेट्स की वजह से फिल्म नहीं कर सके. फिर राजेश उन्हें डायरेक्टर कबीर खान के पास ले गए. कबीर सलमान खान के पास पहुंचे और इस तरह फिल्म बन गई. अगर बाहुबली की प्रेरणा महाभारत थी तो बजरंगी भाईजान की कहानी चिरंजीवी की 1987 की तेलुगु फिल्म पासीवदी प्राणम से प्रेरित है. यह कहानी एक शराबी शख्स की है. उसे गूंगा-बहरा बच्चा मिलता है, जिसके माता-पिता का कत्ल हो चुका होता है. वे कहते हैं, ''मैं इस आइडिया को दोबारा एक नए संदर्भ में पेश करना चाहता था. मुझे असली किक उस वक्त मिली जब पाकिस्तान से भारत आए एक दंपती की खबर पढ़ी. यह दंपती अपने बेटे के इलाज के लिए भारत आया था और उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. लेकिन डॉक्टरों ने उनके बेटे का मुफ्त में इलाज कर दिया. बस, मेरा काम हो गया.''
इस तरह उन्होंने बिना पाकिस्तान को कोसे भारत-पाकिस्तान संबंधों पर एक नए ढंग की फिल्म बना दी. यह सलमान के करियर की ऐसी फिल्म बन गई है, जिसे उनके स्टाइल की वजह से नहीं बल्कि कहानी के लिए सराहा जा रहा है. ऐसी फिल्म जिसने सलमान के चाहने वालों की आंखें नम कर डालीं. कबीर खान ने भी माना है कि जब उन्होंने पहली बार यह कहानी सुनी थी तो वे लाजवाब रह गए थे.
इन दिनों हैदराबाद और मुंबई के बीच उनके खूब चक्कर लग रहे हैं. तो आखिर बॉलीवुड और साउथ के सिनेमा में क्या फर्क पाते हैं? उनका जवाब सुनिए, ''बॉलीवुड टॉल, मस्कुलर और फोटोजेनिक है जबकि साउथ का सिनेमा ब्लैक और डार्क है.''
वे एक तेलुगु फिल्म डायरेक्ट कर रहे हैं जो नए कलाकारों के साथ बनाई गई साइंस फिक्शन है. जल्द ही बॉलीवुड में वे फिर नजर आ सकते हैं. उन्होंने पहलाज निहलाणी को दो कहानियां सुनाई थीं और दोनों ही उन्हें पसंद आ गईं. इन पर जल्द ही फिल्म बन सकती है. फरह खान ने भी उनसे स्टोरी मांगी है.
विजयेंद्र बड़े भाई शिव शक्ति दत्ता को अपना गुरु मानते हैं और तेलंगाना के इतिहास पर फिल्म बनाने का इरादा रखते हैं. साधारण जिंदगी में यकीन रखने वाले विजयेंद्र प्रसाद यह पूछने पर कि क्या वे बाहुबली के साथ अपनी बेस्ट कहानी दे चुके हैं, वे कहते हैं, ''नहीं, बेस्ट आना अभी बाकी है.''