मशहूर कहावत हैं जहां चाह है, वहां राह है. इसे पश्चिम बंगाल की रहने वाली अनारकली खातून ने सच कर दिखाया है.
अनारकली के बचपन से ही दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन अपनी इस कमजोरी के आगे घुटने टेकने के बजाय उन्होंने अपनी कमी को ताकत बना पैरों से लिखना सीखा. यहीं नहीं वो इस बार बोर्ड की परीक्षाओं में शामिल होने जा रही है. अपने भविष्य के सपने के बारे में बात करते हुए अनारकली कहती हैं कि मैं टीचर बनना चाहती हूं, मैं लोगों की प्रेरणा बनाना चाहती हूं.
अनारकली को परिवार से भी हमेशा पूरा सहयोग मिला. उनके पिता किसान है, परिवार की माली हालत भी बहुत अच्छी नहीं है. इन सबके बावजूद उनके परिवार ने पढ़ाई को लेकर कभी भी अनारकली को नहीं रोका. उन्हें पैरों से लिखने का हुनर सिखाने में मां ने खासी मदद की है.