इंटरनेट की दुनिया में तेजी से अपना कदम बढ़ाने वाले देश भारत में इस समय नेट न्यूट्रैलिटी पर बहस छिड़ी हुई है. यह मुद्दा इतना बड़ा है कि टेलीकॉम नियामक संस्था (TRAI) ने 118 पेज का मशवरा जारी करके, यूजर्स से इस संबंध में राय मांगी है. अगर आप भी इस बारे में राय देना चाहते हैं 24 अप्रैल तक दे सकते हैं. राय देने से पहले जानें नेट न्यूट्रैलिटी के बारे में सब कुछ:
क्या है नेट न्यूट्रैलिटी? नेट न्यूट्रैलिटी शब्द का पहली बार इस्तेमाल कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मीडिया लॉ के प्रोफेसर टीम वू ने किया था. नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांत के अनुसार कोई भी सर्विस प्रदान करने वाली कंपनी इंटरनेट के किसी भी कंटेट, डेटा और एप्लीकेशंस को बराबरी का दर्जा देगी. कोई भी वेबसाइट और पेज तब तक नहीं ब्लॉक किए जाए जब तक कि उस पर कोई गैर कानूनी तथ्य न हो. इसका मतलब यह हुआ कि छोटी-बड़ी सारी वेबसाइट को इंटरनेट समान रूप से जगह देगी.
नेट न्यूट्रैलिटी से संबंधित मुख्य बातें
1. नेट न्यूट्रैलिटी ऐसा सिद्धांत है जिसके मुताबिक सर्विस प्रोवाइडर कंपनी सभी डेटा को समान दर्जा देती है.
2. चाहे सेवा वेबसाइट विजिट करने की हो या अन्य कंटेट प्राप्त करने की.
3. नेट न्यूट्रैलिटी की वजह से सर्विस प्रोवाइडर कंपनी न तो डेटा ब्लॉक कर सकती है और न ही उसकी स्पीड स्लो ही कर सकती है.
4. नेट न्यूट्रैलिटी न होने पर में ऑपरेटर डेटा कीमतों के अलावा कॉलिंग सर्विस के लिए अलग से पैसे वसूल सकते हैं.
5. नेट न्यूट्रैलिटी को लागू नहीं किया गया तो मोबाइल कंपनियां इन सर्विसेज के लिए अलग से ज्यादा चार्ज भी कर सकती हैं.
नेट न्यूट्रैलिटी हटने पर आप क्यों होंगे परेशान:
नेट न्यूट्रैलिटी को अगर लागू नहीं किया गया तो इसका सीधा असर आपकी जेबों पर पड़ सकता है. आपके पास विकल्प कम हो सकते हैं. आपको सेवा प्रदान करने वाली कंपनी आपके बारे में यह निर्णय ले सकती है कि आपको कौन सी वेबसाइट, न्यूज, कंटेट कब और कितना देखना है या नहीं. फिलहाल आपके पास यह सुविधा है कि आप इंटरनेट पर देसी, विदेशी, लोकप्रिय और अलोकप्रिय किसी भी साइट को समान स्पीड से हासिल कर सकते हैं लेकिन जब यह नहीं रहेगा तो आप सारी वेबसाइट को समान स्पीड से हासिल नहीं कर पाएंगे. सर्विस प्रोवाइडर आपसे व्हाट्सऐप, स्काइप इस तरह की अन्य सुविधाओं के लिए अलग से चार्ज ले सकती हैं. इसके अलावा कंपनी इन ऐप की डेटा स्पीड को कम करके इसकी कॉलिंग सर्विस को बाधित कर सकती है.
नेट न्यूट्रैलिटी के लागू न होने का सबसे ज्यादा असर उन छोटे बिजनेस मालिकों और आंत्रप्रेन्योर पर हो सकता है, जिन्होंने अपना ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया है. फिलहाल वे इंटरनेट के माध्यम से सीधे अपने प्रोडक्ट का प्रचार करते हैं और उसे बेचते हैं. भारत जैसे देश को इसकी सख्त जरूरत है क्योंकि यहां इंटरनेट बिजनेस की शुरुआत हुए कुछ ही साल हुए हैं और इस क्षेत्र में युवाओं को बड़े पैमाने पर जॉब भी मिल रही है. अगर बिजनेस को थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दें तो यह हमारी फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए भी जरूरी है. नेट न्यूट्रैलिटी ना होने के कारण कोई भी कंटेट आसानी से ब्लॉक किए जा सकेगा.
नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांत से बड़ी कंपनियां क्यों हो रही परेशान:
स्काइप, व्हाट्सऐप जैसी इंटरनेट कॉलिंग सुविधा से टेलीकॉम कंपनियों के बिजनेस पर असर पड़ रहा है. कंपनियों ने इससे बचने के लिए डेटा कीमतें बढ़ा दी थीं. पिछले साल एक मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर ने वीओआईपी यानी वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल सेवाओं पर एक जीबी डाटा के इस्तेमाल पर 1,000 रुपये तक चार्ज लेने का ऐलान किया था. मगर आलोचनाओं के कारण उसने इसे वापस ले लिया था. टेलीकॉम कंपनियां अब बिजनेस के ऐसे विकल्प की तलाश कर रही है जहां उसे भी इंटरनेट की दुनिया से बड़े पैमाने पर कमाई हो सके. ऑपरेटर्स चाहते हैं कि जिस तरह से बाजार में सारे फल का दाम एक जैसा नहीं होता. अंगूर संतरे की अपेक्षा ज्यादा मंहगा मिलता है, ठीक उसी तरह से कंटेट और डेटा के हिसाब से पैसे वसूले जाएं.
दरअसल, यह पूरा मामला बाजार में अपने आपको मजबूती से स्थापित करने का है और बाजार में वही स्थापित हो पाएगा जो परिस्थितयों को अपने अनुसार ढालेगा. नेट न्यूट्रैलिटी के लागू न होने से गूगल, फेसबुक, रिलायंस, एयरटेल, वोडाफोन जैसी बड़ी कंपनियों की रेस में घाटा छोटी पूंजी के बिजनेस वालों को होगा. भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी सबसे ज्यादा है, वहां इंटरनेट ने युवाओं को वेबसाइट के माध्यम से रोजगार पाने और शुरू करने के कई मौके दिए हैं. अगर नेट न्यूट्रैलिटी लागू नहीं होती है तो उसका असर रोजगार जेनरेट करने पर भी होगा.