नई एजुकेशन पॉलिसी पर आज 11 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कॉनक्लेव में कुछ बिंदु रखेंगे. इससे पहले देश भर में न्यू एजुकेशन पॉलिसी को लेकर अलग अलग तरह के रिएक्शन आ रहे हैं. शिक्षाविदों के एक वर्ग ने इस पॉलिसी की सराहना की है तो वहीं दूसरे वर्ग ने इसको लेकर कुछ बिंदु उठाए हैं. आइए जानते हैं किन बिंदुओं को बताया गया क्रांतिकारी, किन पर उठे सवाल-
वो बिंदु जिन्हें बताया गया क्रांतिकारी-
1: ढांचागत बदलाव
दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष व महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र के पूर्व कुलपति प्रो गिरीश्वर मिश्रा कहते हैं कि ये एजुकेशन पॉलिसी कई तरह के बदलावों को लेकर सामने आई है. इन बदलावों में सबसे पहले उच्च शिक्षा को संस्थागत ढांचे को बदलने की बात कही गई है. जैसे यूनिवर्सिटी की बात करें तो ये अलग अलग करने की बात कही गई है, जैसे आम शिक्षा, शोध और टीचर्स ट्रेनिंग की अलग होंगी.
At 11 AM on Friday, 7th August, I would be addressing the ‘Conclave on Transformational Reforms in Higher Education under National Education Policy.’
This conclave will emphasise on how the changes in India’s education sector will benefit youngsters. https://t.co/JkYXosI7WF
— Narendra Modi (@narendramodi) August 6, 2020
2. भारत केंद्रित शिक्षा
डॉ मिश्रा कहते हैं कि मैंने जहां तक इस नीति का अध्ययन किया है उससे साफ दिखाई पड़ रहा है कि पूरी तरह संरचना पर विचार किया गया है. इसमें संस्था को एक ढांचे पर लाने की कोशिश है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि शिक्षानीति में एक बात कही गई है कि उसे भारत केंद्रित बनाया जाएगा. यानी संस्कृत के अध्ययन पर बल दिया जाए ताकि छात्र भारत की संस्कृति को समझें और लाभ उठा सकें. इसके अलावा ये भी ध्यान दिया गया है कि शिक्षा सिर्फ मस्तिष्क ही नहीं शरीर और मन की आवश्यकताओं को पूरा कर सके इस पर बल दिया गया है.
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3: शिक्षक प्रशिक्षण पर जोर
न्यू एजुकेशन पॉलिसी में सबसे ज्यादा शिक्षकों के प्रशिक्षण को बदलने पर जोर है. इसमें स्कूलों के अध्यापक से लेकर उच्च शिक्षा तक अच्छे अध्यापक हों, इसके लिए ट्रेनिंग प्रोग्रामों और पद्धतियों में बदलाव की सिफारिश की गई थी. अध्यापक प्रशिक्षण पर विशेष रूप से बल देने की बात कही गई है.
4: तकनीक आधारित शिक्षा
न्यू एजुकेशन पॉलिसी में तीसरा चेंज जो प्रस्तावित था वो था कि तकनीक को आगे बढ़ाया जाए. जो कि ऑनलाइन शिक्षा पर जोर देने की बात कही गई है. इसके अलावा शिक्षा में तकनीक को जोड़ने की बात कही गई है.
5: बच्चों का बोझ कम हो
पाठ्यक्रम पर जो भार बढ़ गया है, इस पर भी जोर दिया गया. बच्चों से पढ़ाई के बोझ को कैसे संतुलित किया जाए. इस पर ध्यान दिया गया है. एक बात और थी कि शिक्षा के क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य बड़ी समस्या हो रही है, एक तरह का मेंटल प्रेशर बच्चों पर है. बच्चों में कॉम्पिटिशन और सोशल मीडिया का प्रभाव आदि कैसे व्यवस्थित किया जाए.
ये हैं चुनौतियां
डॉ गिरीश्वर मिश्रा कहते हैं कि न्यू एजुकेशन लागू करने में काफी दिक्कतें हैं. इसको लागू करने के लिए जो संसाधन चाहिए, धन चाहिए, और राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए, उसे देखते हुए काफी मुश्किल लग रहा है. ये सारी प्रक्रिया काफी मुश्किल है. देश में स्कूलों में छात्र अध्यापक अनुपात पूरा नहीं है, यहां तक कि यूनिवर्सिटी में भी अध्यापक नहीं हैं. एडहॉक और गेस्ट टीचर्स जो कि मन में असुरक्षा लेकर पढ़ा रहे हैं, वो जितना अच्छे से अच्छा दे सकते हैं, वो मानसिक दबाव में वो नहीं दे पाते. ऐसे में इस तरह की पॉलिसी को आधारभूत जमीन पर उतारना मुश्किल नजर आता है.
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सरकारी आंकड़ा हो या एनजीओ या वर्ल्ड बैंक के आंकड़े सभी चौंकाने वाले हैं. पांचवीं और दसवीं का छात्र कक्षा दो के सवाल नहीं कर पाता. उनकी परफॉर्मेंस अपनी कक्षा के अनुरूप नहीं है. एनसीईआरटी का भी डेटा है कि वो छोटी-छोटी कक्षाओं के सवाल नहीं कर पा रहे है. परफॉमेंस गैप इतना ज्यादा है कि कोई भी नई नीति इसमें जादू नहीं कर सकती.
ASER की प्रथम रिपोर्ट भी चौंकाने वाली है. बच्चों की शिक्षा और ज्ञान के बीच जबर्दस्त खाई है, जिस पर नया कुछ लाने से भी बदलाव दिख नहीं रहा. बड़ी भारी चुनौतियां सामने हैं, इस नई शिक्षा नीति से लाने का फायदा तभी है जब विकास की दर भी बढ़े. ये शिक्षा की बड़ी भारी फेलियर है कि वो छात्र डिग्री तो ले रहे हैं लेकिन योग्यता नहीं है.
जानें विरोध के खास बिंदु-
प्राइवेटाइजेशन की ओर एक कदम है नई शिक्षा नीति
पूर्व डूटा व फेडकूटा अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा कहते हैं कि उच्च शिक्षा को ऑटोनॉमस बनाने के नाम पर पूरी तरह नई शिक्षा नीति निजीकरण का दूसरा नाम है. अब उच्च शिक्षा आम आदमी की पहुंच से बाहर होने वाली है. अब सैलरी स्ट्रक्चर भी वो नहीं रहेगा, इसमें स्टूडेंट्स की फीस भी बढ़ेगी. अब फॉरेन यूनिवर्सिटी को लाने से कोई परहेज नहीं है
डॉ आदित्य नारायण कहते हैं कि इस पर बहस होनी जरूरी थी. देश भर के शिक्षकों ने पॉलिसी के ड्राफ्ट पर सुधार के बिंदु सुझाए थे, लेकिन बिना बहस के बदलाव के बगैर इसे लागू किया गया. न शिक्षक न छात्र समुदाय को इसमें शामिल किया गया. नेम ऑफ एक्सीलेंस और इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस के नाम पर भी फंडिंग बंद करेंगे. हर यूनिवर्सिटी पर बोर्ड ऑफ गवर्नर रहेगा जिससे यूनिवर्सिटी में इलेक्टेड कंपोनेंट खत्म हो जाएंगे. एक्जीक्यूटिव या एकेडमिक काउंसिल खत्म हो जाएगा. उनके नियुक्ति, वेतन बढ़ाने और निकालने तक की जिम्मेदारी बोर्ड ऑफ गवर्नर करेगा जिससे एक तरह से तानाशाही का माहौल रहेगा.
प्रो आदित्य नारायण कहते हैं कि जब उच्च शिक्षा का निजीकरण होगा तो उच्च शिक्षा मंहगी भी हो जाएगी. इससे अनुसूचित जाति जनजाति, महिला, दलित वर्ग का शिक्षा से सामाजिक परिवर्तन संभव था, उससे वो दोबारा वंचित हो जाएंगे. मेरा सरकार से प्रश्न है कि क्या एक साधारण, मध्यम, निम्न मध्यम वर्ग का परिवार लड़की को दस लाख रुपये फीस देकर पढ़ाई करा पाएंगा. आज हर बोर्ड में बेटियां टॉप कर रही हैं, वो सब देखने को शायद न मिले.
शिक्षा बजट में सरकार का अनुदान बढ़ना चाहिए था जो कि घट रहा है. सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि सामाजिक परिवर्तन हो, लेकिन इस तरह की शिक्षा नीति से जो अमीर है वो और अमीर होगा, वो एक्सक्लूसिव जोन में रहेगा, सामाजिक बदलाव ठप होगा.
एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलेपमेंट के सदस्य व दिल्ली यूनिवर्सिटी एक्जीक्यूटिव काउंसिल सदस्य डॉ राजेश झा कहते हैं कि न्यू एजुकेशन पॉलिसी वर्तमान सरकार की निजीकरण और नौकरियों की ठेका प्रथा की नीति को सामने ले आई है. ये पॉलिसी सार्वजनिक क्षेत्र के विश्वविद्यालयों की कीमत निजी और विदेशी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने वाली नीति है. इससे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक न्याय पर आक्रमण होगा, जिसका पुरजोर विरोध होगा. इससे छात्रों के लिए शिक्षा महंगी हो जाएगी. दलित, आदिवासी महिला पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र उच्च शिक्षा के दरवाजों तक पहुंच ही नहीं पाएंगे.