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Who is Bhupendra Kumar Dutt, जिनका पीएम मोदी ने संसद में सुनाया किस्सा

लोकसभा में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो ऐसे लोगों का जिक्र किया जो भारत के बंटवारे के वक्त पाकिस्तान गए थे. लेकिन उन्हें वहां हुए भेदभाव के कारण वापस भारत आना पड़ा. उनमें से एक नाम पाक के पहले कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल और दूसरा नाम भूपेंद्र कुमार दत्ता का था. आइए जानें- कौन हैं भूपेंद्र कुमार दत्ता.

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भूपेंद्र कुमार दत्ता
भूपेंद्र कुमार दत्ता

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  • भारत-पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद भूपेंद्र कुमार दत्ता पाकिस्तान में ही रह गए थे
  • PAK में अल्पसंख्यकों की खराब हालत को लेकर भूपेंद्र दत्ता हुकूमत से लोहा लेते रहे थे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा कि भारत-पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद भूपेंद्र कुमार दत्ता पाकिस्तान में ही रह गए थे. वो वहां की संविधान सभा के सदस्य थे. जब पाकिस्तान में संविधान बनने का काम शुरू हुआ तो उन्होंने तभी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का दर्द बयान किया था.

लोकसभा में पीएम मोदी ने अपने भाषण के दौरान भूपेंद्र कुमार दत्ता का जिक्र करते हुए कहा कि वो एक समय ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी से जुड़े थे. स्वतंत्रता आंदोलन के समय उन्होंने 23 साल जेल में बिताए. यही नहीं वो जेल में लगातार 78 दिनों तक भूख हड़ताल करते रहे जो कि एक रिकॉर्ड है.

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कौन हैं भूपेंद्र कुमार दत्ता

भूपेंद्र दत्ता 8 अक्टूबर 1892 में जसोर के ठाकुरपुर गांव (वर्तमान बांग्लादेश) में पैदा हुए थे. भूपेंद्र ने बचपन में रामायण की एक कथा पढ़ी और तय किया कि वे जीवन भर अविवाहित रहेंगे. उन्होंने यह प्रतिज्ञा अंत समय तक निभाई. अंग्रेजों के खिलाफ उनका संघर्ष अनुशीलन समिति में शामिल होने के साथ शुरू हुआ. यह समिति ए ओ ह्यूम के नेतृत्व में 1902 में बनाई गई थी. देश भर के युवाओं को इकट्ठा करना और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को धार देना इस समिति का उद्देश्य था.

क्रांतिकारी जीवन में भूपेंद्र नाथ दत्ता ने अपने जीवन के अधिकांश साल जेल में बिताए. यहां तक कि अखबारों में कॉलम लिखने के लिए भी उनको 3 साल जेल में बिताने पड़े. 1947 में आजादी के बाद उन्होंने पाकिस्तान में रहना मंजूर किया और वहां पहले एमएलए फिर एमपी बने.

इसलिए वापस आए भारत

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की खराब हालत को लेकर भूपेंद्र दत्ता हमेशा मुखर रहे और वहां की हुकूमत से लोहा लेते रहे. 1958 में पाकिस्तान में सेना का शासन लागू हो जाने के बाद उन्होंने चार साल तक सार्वजनिक जीवन में वापसी करने का इंतजार किया. इंतजार न खत्म होता देख आखिर 1962 में उन्होंने पाकिस्तान और राजनीति को अलविदा कहा और वापस भारत आ गए. 29 दिसंबर 1979 को कोलकाता में उन्होंने अंतिम सांस ली.

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