क्या कभी आपने फिल्म या टीवी देखते हुए कारों और ऑटोमोबाइल्स के पहियों को घूमते हुए देखा है? अगर आपने उसे ध्यानपूर्वक देखा होगा तो ये पहिये आपको कभी-कभी पीछे की ओर घूमते हुए दिखाई देते हैं.
क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है?
आंखो को दिखने वाले इस प्रभाव को समझने के लिए हमें अपनी आंखों और चलचित्र के सिद्धान्त को समझना होगा. आपको बता दें कि हमारी आंखें सोलह चित्रों को देखकर इसमें अंतर कर सकती है. अगर सोलह से अधिक चित्र एक क्रम में और एक साथ आंखों के आगे से गुजरे, तब हमारी आंख उन चित्रों को अलग-अलग पहचान पाने में कामयाब नहीं हो पाती.
वहीं बात पर्दे (स्क्रीन) की करें तो यहां दिखाई जाने वाली फिल्म के चित्र अलग-अलग होते हैं, लेकिन आंखों की क्षमता को ध्यान में रखते हुए इन्हें इतनी तीव्र गति से घुमाया जाता है कि एक सेकेंड में सोलह से अधिक चित्र आंखों के आगे से घूम जाएं, जिससे हमें ये सारे चित्र अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही लगे.
आमतौर पर एक सेकेंड में स्क्रीन पर 32 चित्र दिखाए जाते हैं और वे एक के बाद एक इतनी तीव्र गति से आते हैं कि आप उन चित्रों को अलग-अलग नहीं देख सकते, इसलिए इन्हें चलता हुआ अनुभव करते हैं. आधुनिक फिल्मों को शूट करते समय एक सेकेंड में 24 फ्रेम शूट किए जाते हैं.
इसे समझने के लिए एक उदाहरण पढ़ें...
मान लीजिए एक ट्रेन बहुत तेजी से चल रही है. उसमें आप बैठे हुए हैं. कुछ देर बाद आपकी ट्रेन कम तेजी से चलने वाली ट्रेन को पार कर जाती है. दोनों ट्रेन एक ही दिशा में जा रही है. जब आप खिड़की से कम तेजी से चलने वाली ट्रेन को देखेंगे तो आपको लगेगा कि वह ट्रेन पीछे की ओर भाग रही है. ऐसा आपके ट्रेन के तेजी से चलने के कारण होता है.