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क्‍यों हॉस्‍टल लाइफ होती है सबसे बेस्‍ट?

"जिंदगी में एक बार सभी को हॉस्‍टल लाइफ जरूर जीनी चाहिए." ये स्‍टेटमेंट किसी महापुरुष का नहीं बल्कि हॉस्‍टल से निकलने वाले हॉस्‍टलर का होता है. आखिर क्‍यों होती है हॉस्‍टल लाइफ हर किसी के लिए इतनी खास?

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Students in hostel
Students in hostel

"हर  किसी को जिंदगी में एक बार हॉस्‍टल लाइफ जरूर जीनी चाहिए." ये स्‍टेटमेंट किसी महापुरुष का नहीं बल्कि हॉस्‍टल से निकलने वाले एक हॉस्‍टलर का होता है. घ्‍ार से दूर हॉस्‍टल एक ऐसी दुनिया है जहां खुशी और गम दोनों मिलते हैं और इनके साथ हम जिंदगी जीना सीख जाते हैं. जानें आखिर क्‍यों होती है हॉस्‍टल लाइफ हर किसी के लिए इतनी खास:

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हॉस्‍टल का खाना
हॉस्‍टल आने से पहले खाने को लेकर हमारे ढेरों नखरे होते हैं. हम आलू तो खाते ह‍ैं लेकिन लौकी नहीं, दाल में जरूरत से ज्‍यादा पानी और मोटे चावल हमारा मूड खराब कर देते हैं. लेकिन हॉस्‍टल आने पर आपके नखरे कब हवा हो जाते हैं आपको खुद भी पता नहीं चलता . हॉस्‍टल में आपसे पूछ‍कर मेन्‍यू नहीं बनाया जाता है. इसलिए जब जो परोसा जाए उसे आपको खाना ही होगा. शुरुआती दौर में तो कइयों के नखरे जस के तस रहते हैं लेकिन ए‍क महीना पूरा हुआ नहीं कि सबकी अक्‍ल ठिकाने अा जाती है. हम सबकुछ खाने लगते हैं. वैसे तो हॉस्‍टल का खाना कभी लजीज नहीं होता है, फिर भी अच्‍छा लगता है.

हॉस्‍टल के सख्‍त नियम
सबसे पहला रूल जो हॉस्‍टल में घुसने के साथ बताया जाता है वो है रात 10 बजे के पहले आपको हर हाल में हॉस्‍टल पहुंचना होगा. अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपके पेरेंट्स से बात करने बाद ही दरवाजे खोले जाएंगे. इस नियम को सुनकर पेरेंट्स जितने खुश होतें हैं वहीं रहने वाला दुखी. दोपहर का खाना 1 बजे से मिलना शुरू होगा और रात का 8 बजे. अगर आप किसी कारण देरी करते हैं तो उसकी जानकारी दें वरना खाना खत्‍म. इस जगह सबसे ज्‍यादा काम आती है मैगी. लेकिन अब वो भी साथ छोड़ चुकी है, इसलिए बिस्किट खाकर गुजारा चलता है.

यहां आपको किसी भी तरह के इलेक्ट्रिॉनिक उपकरणों के इस्‍तेमाल की मनाही होती है. कहीं आपने प्रेस रखी है और इसके बारे में वॉर्डन को पता चल गया तो तो बस खैर नहीं है. हॉस्‍टल में बाहर के लोगों से मिलने-जुलने पर कड़े नियम होते हैं. आपसे मिलने वही आ सकता है जिसका नाम रजिस्‍टर है. कोई और आया तो आपसे पहले आपके पेरेंट्स को पता चल जाता है कि आपसे मिलने कोई आया था.

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दोस्‍ती-यारी
हॉस्‍टल की यारी-दोस्‍ती एक ऐसी चीज है जो आपको हर हाल में खुश रहना सिखा देती है. इस दोस्‍ती को अाप ता-उम्र याद रखते हैं. आपके साथ रहने वाले ही आपके सबसे करीबी हो जाता है. रात में घर की याद आए तब आपके रूम पार्टनर ही आपके आंसू पोंछते हैं. कई बार तो नजारा देखने लायक होता है. जब किसी एक को चुप कराने में दूसरे का इमोशनल ड्रामा शुरू हो जाता है . दोस्‍ती-यारी तो यहां ऐसे निभाई जाती है जैसे जन्‍मों से एक-दूसरे को जानते हों.

आजादी और मौज-मस्‍ती
घर में उठने का और सोने का नियम होता है. जिसे सबसे पहले हॉस्‍टल में आकर स्‍टूडेंट्स तोड़ते हैं. यहां दिन शुरू होता है रात में और रात होती है दिन में. अब सवाल ये है कि रात में होता क्‍या है तो जवाब में हर हॉस्‍टलर यही कहेगा कि गाने गाना, मूवी देखना. यही नहीं 10 बजे खाना खा लेने के बाद दोबारा रात में 2 बजे उठकर कुछ चुटुर-पुटर खाना आम बात होती है. यही नहीं 'जुगाड़' से चोरी-छिपे चाय बनाने का भी अपना अलग ही मजा होता है. सबसे कॉमन बात कि सारे हॉस्‍टलर्स कपड़े रात में ही धोने बैठते हैं.

वॉर्डन की तुनकमिजाजी
यहां अगर कोई सबसे ज्‍यादा आंखों को अखरता है तो वो होता है हॉस्‍टल का वॉर्डन . वो एक ऐसा सदस्‍य होती है जिसके अंदर हिटलर की आत्‍मा बसी होती है. बात की शुरुआत और अंत सिर्फ कायदे-कानून के इर्द-गिर्द ही घूमती है. शुरू-शुरू में अापको वॉर्डन बिलकुल भी नहीं भाता, लेकिन समय बीतने के साथ आप उसके आदी हो जाते हैं और उसकी तकलीफों को भी समझने लगते हैं. यही नहीं वॉर्डन की आवाज में भी थोड़ी सी नरमी आने लगती है.

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घर से लौटने पर जब मचती है लूट
सबसे ज्‍यादा इंतजार हॉस्‍टलर्स को इस बात का होता है कि घर से कौन आया है. घर से आने का मतलब आपके साथ खाने की तमाम चीजें आईं होगी. बस फिर क्‍या आपके बैग की पूरी चेकिंग मिनटों में हो जाती है. आप रास्‍ते की थकान मिटाने के लिए नहाने जाते हैं अौर जब वापस आते हैं तब तक मां के हाथ के बने बेसन के लड्ड, मठरी और नमकीन गायब हो चुकी होती है.

ऑल टाइम अलर्ट
यहां रहने वाले हर बंदे को सचेत रहने की आदत पड़ जाती है. आपके पास कितना सामान है और कैसे संभाल कर रखना है इस बात का ध्‍यान रखना होता है.

मनी मैनेजमेंट
हॉस्‍टल में आकर आप मनी मैनेजमेंट सीख जाते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि अचानक से एहसास होता है कि हर चीज में बड़े पैसे खर्च होते हैं. इसलिए चीप एंड बेस्‍ट रास्‍ता निकालने में हॉस्‍टलर्स का जवाब नहीं होता. वैसे, जब भी बीच में जरूरत पड़े आप बड़े अाराम से घर से पैसे मंगा सकते हैं. घरवाले भी हमेशा एक्‍सट्रा पैसे भेजते हैं ताकि घर से दूर आपको कोई परेशानी न हो.

हॉस्‍टल के कपड़े
इस बात को आपने पहले गौर किया नहीं हो कि घर से आने से पहले हम कपड़े पूरे तौर-तरीकों से पहनते हैं. यहां आकर पजामा-टीशर्ट के अलावा कोई और समझ नहीं आता है. सबसे ज्‍यादा सलीके से हॉस्‍टलर्स तैयार तब होते हैं जब घरवाले उनसे मिलने आते हैं. उस दौरान तो शराफत इस कदर टपकती है कि बस पूछो ही मत.

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