पन्द्रह साल पहले वर्ल्ड एजुकेशन फोरम के अंतगर्त दुनिया में सबको शिक्षा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, पर अभी तक 40 फीसदी लक्ष्य भी पूरा नहीं किया जा सका है.
सब सहारा और अरब देशों तथा गरीब देशों में 20 से 25 फीसदी लक्ष्य ही पूरा किया जा सका. इस तरह से अन्य देश अमीर देशों की तुलना में शिक्षा के मामले में काफी पीछे है. इतना ही नहीं शिक्षा की फंडिंग के मामले में जो लक्ष्य तय किए गए थे वे भी पूरे नहीं किए जा सके. साथ साथ लैंगिक समानता तथा गुणवत्ता के भी लक्ष्य पूरे नहीं हो सके.
सेनेगल की राजधानी डकार में सन 2000 में फोरम की बैठक में दुनिया के 164 देशों ने संकल्प व्यक्त किया था कि वे 2015 तक सबको शिक्षा दे पाएंगे, लेकिन 2012 तक प्राइमरी क्लास में औसतन 54 फीसदी ही एडमिशन हुए.
यूनेस्को की एजुकेशन फार आल की निगरानी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में प्राथमिक स्कूलों में दाखिला दर औसतन 33 फीसदी था और बारह वर्षों में इसमें 21 फीसदी बढ़ी है. अमीर देशों तथा उत्तरी अमरीका एवं यूरोपीय देशों मे यह फीसदी 86 तथा 89 रहा.
डकार सम्मेलन में सभी देशों के लिए 2015 तक बजट में 15 से 20 फीसदी शिक्षा के लिए आवंटित करने की सिफारिश की गई थी. लेकिन सरकारों ने तथा चंदा देने वालों ने औसतन 13 फीसदी राशि खर्च की.
इसका नतीजा यह हुआ कि शिक्षा के लिए हर साल दुनिया में करीब 22 अरब डालर की राशि कम पड़ती है. सम्मेलन के बाद अब तक 3 करोड़ 40 लाख बच्चों का दाखिला हुआ, पर करीब 5 करोड़ 80 लाख बच्चे अभी भी स्कूल से बाहर है और दस करोड़ बच्चे तो स्कूली शिक्षा पूरी ही नहीं कर पाते.