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जब दुनिया छोड़ गईं 'जंगल के दावेदार' की रचयित्री

अपनी कलम से आम जनता में अलख जगाने वाली और अपने विरोधी तेवर की वजह से हमेशा सत्ता के प्रतिपक्ष में खड़ी रहने वाली साहित्यकार महाश्वेता देवी का निधन. वह साल 1926 में 14 जनवरी के रोज पैदा हुईं और 90 वर्ष की उम्र में 28 जुलाई 2016 के रोज दुनिया से रुखसत हो गईं.

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Mahasweta Devi
Mahasweta Devi

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वैसे तो इस दुनिया में सारे इंसान एक न एक दिन चले जाने के लिए ही जन्म लेते हैं लेकिन कुछ ऐसी भी शख्सियतें होती हैं जो अपने कृतित्व व कर्मों की वजह से जीते जी किंवदंती बन जाती हैं. महाश्वेता देवी भी एक ऐसी ही शख्सियत का नाम था. वह आज यानी 28 जुलाई के रोज 90 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गईं. वह लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थीं और बीते 23 जुलाई को उन्हें हृदयाघात हुआ था.

अमूमन ऐसा होता है कि लेखक या कलाकार खुद को राजनीतिक पचड़े से दूर ही रखते हैं. वह राजनीतिक समझ रखने के बावजूद राजनीतिक बयानबाजी से बचते हैं, मगर महाश्वेता देवी इस मामले में अपवाद थीं. जब पश्चिम बंगाल में वामपंथी पार्टियों की सरकार थी और लंबे समय तक सत्ता की बागडोर संभालने के बावजूद उन्हें लगा कि वे अच्छा काम नहीं कर रहे तो वह विपक्ष के मंच पर जा चढ़ीं. सत्ता की आंख में आंख डालकर उन्हें इस बात का अहसास दिलाने की कोशिश की कि लोकतंत्र में लोक ही सर्वोपरि होता है. सरकारें तो आनी-जानी हैं.

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एक लेखक की सबसे बड़ी कसौटी और सफलता यही होती है कि उसकी कृतियां दुनिया की अलग-अलग भाषाओं में अनुवादित हों. महाश्वेता देवी की कृतियां 'हजार चौरासी की मां', 'अग्निगर्भ' और 'जंगल के दावेदार' को कल्ट कृतियों के तौर पर जाना और पढ़ा जाता है. उनकी कृति हजार चौरासी की मां पर तो फिल्म भी बनाई गई है.

साहित्यिक उत्कृष्टता की वजह से उन्हें जहां साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ जैसे बहुप्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया वहीं राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता की वजह से उन्हें रमन मैग्सेसे और पद्म विभूषण से भी नवाजा गया.
अनवरत योद्धा को हमारी ओर से करबद्ध नमन...

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