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असम में बीजेपी के सामने क्या चुनौती पेश कर पाएगा कांग्रेस गठबंधन?

असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने मंगलवार को कहा कि कई दलों के साथ बातचीत के बाद यह फैसला किया गया है कि कांग्रेस इस चुनाव में विपक्षी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा कि बीजेपी विरोधी दलों के लिए हमारे दरवाजे खुले हुए हैं और हम क्षेत्रीय दलों को आमंत्रित करते हैं कि वे सत्ताधारी बीजेपी को सत्ता से हटाने की लड़ाई में हमारा साथ दें. कांग्रेस देश हित में सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता से बाहर करने के लिए अग्रणी भूमिका अदा कर रही है. 

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 असम में कांग्रेस गठबंधन
असम में कांग्रेस गठबंधन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • असम में कांग्रेस ने पांच दलों से किया गठबंधन
  • असम में तीस फीसदी मुस्लिम मतदाता अहम हैं
  • बीजेपी के खिलाफ चुनौती देने की तैयारी में कांग्रेस

असम में होने वाले विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के चुनावी अभियान शुरू करने के बाद अब विपक्षी दलों ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. असम की सत्ता से बीजेपी को हटाने के लिए कांग्रेस ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) और आंचलिक गण मोर्चा के साथ गठबंधन किया. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस गठबंधन असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने में सफल हो पाएगा? 

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असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने मंगलवार को कहा कि कई दलों के साथ बातचीत के बाद यह फैसला किया गया है कि कांग्रेस इस चुनाव में विपक्षी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा कि बीजेपी विरोधी दलों के लिए हमारे दरवाजे खुले हुए हैं और हम क्षेत्रीय दलों को आमंत्रित करते हैं कि वे सत्ताधारी बीजेपी को सत्ता से हटाने की लड़ाई में हमारा साथ दें. कांग्रेस देश हित में सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता से बाहर करने के लिए अग्रणी भूमिका अदा कर रही है. 

बता दें कि पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम की सत्ता पर कांग्रेस लंबे समय तक काबिज रही है, लेकिन पांच साल पहले बीजेपी के हाथों उसे सियासी मात खानी ही नहीं बल्कि सत्ता भी गवांनी पड़ी थी. इसके बाद से कांग्रेस लगातार असम में कमजोर होती जा रही है जबकि बीजेपी का राजनीतिक ग्राफ तेजी से बढ़ा है. असम ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर में बीजेपी का एकछत्र राज पूरी तरह से कायम है. 

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असम में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा रहे तरुण गोगोई अब नहीं रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के सामने राज्य में एक मजबूत नेतृत्व का भी सवाल खड़ा है. वहीं, असम में बीजेपी की बढ़ती राजनीतिक ताकत को देखते हुए कांग्रेस ने गठबंधन की राह पर राज्य में चलने का फैसला किया है. एआईयूडीएफ के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल से परहेज करने वाली कांग्रेस अब उन्हीं के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतर रही है. 

मुस्लिम मतदाताओं के बीच AIDUF की पकड़

बदरुद्दीन अजमल की पार्टी का असम के बंगाली मुस्लिमों को अपनी पार्टी की ओर खींचा है और अब उसका आधार भी बढ़ गया है. असम के मुस्लिम मतदाताओं के बीच एआईयूडीएफ का अच्छा खासा जानाधार है. यही वजह है कि कांग्रेस को उसके साथ हाथ मिलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. यही वजह है कि कांग्रेस को उसके साथ हाथ मिलाने के लिए मजबूर होना पड़ा है जबकि, एक समय कांग्रेस नेता एआईयूडीएफ को सांप्रदायिक पार्टी और बीजेपी की टीम बी कहा करते थे. अब वक्त और सियासत ने ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया है कि कांग्रेस, बदरुद्दीन अजमल और लेफ्ट पार्टियां एक साथ आ गई हैं. 

दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच 2019 के लोकसभा चुनाव में ही गठबंधन की नींव पड़ गई थी, उस भक्त भले ही वो एक साथ मिलकर चुनाव न लड़े हों. 2019 के लोकसभा चुनाव में बदरुद्दीन अजमल में तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसका राजनीतिक फायदा हुआ और गौरव गोगोई कलियाबोर सीट से जीतकर एक बार फिर संसद पहुंचे. अब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इसे मूर्त रूप दे रही है और अजमल के साथ-साथ लेफ्ट पार्टियों से भी हाथ मिला है.  इतना ही नहीं कांग्रेस की नजर अखिल गोगोई के नेतृत्व वाली कृषक मुक्ति संग्राम समिति पर भी है. 

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दरअसल, 2016 के चुनाव में बीजेपी, एजीपी, बीपीएफ और अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी और कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी थी. असम की 126 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से बीजेपी 60 सीटें जीती थी जबकि असम गण परिषद के खाते में 14 और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के पास 12 सीटें आई थी. वहीं, कांग्रेस को 23 और AIUDF को 14 सीटें मिली थी. बीजेपी ने असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट साथ मिलकर सरकार बनाई थी. 

बीजेपी के तर्ज पर कांग्रेस भी गठबंधन के फॉर्मूले को असम में अजमाना चाहती है. कांग्रेस और एआईयूडीएफ के नेतृत्व में बाकी पार्टियों के साथ आने से विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती मिल सकती है. माना जा रहा है कि एनआरसी और सीएए के मुद्दे को लेकर बीजेपी के खिलाफ आम जनता में नाराजगी है, जिसे वो कैश कराने की कवायद करेंगे. लेकिन इसमें कितना कामयाब होंगे यह तो वक्त ही बताएगा? 

 

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