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असमः बीजेपी खामोश-कांग्रेस आक्रामक, CAA पर रेफरेंडम जैसी होगी पहले चरण की वोटिंग

असम विधानसभा चुनाव में पहले दौर के वोटिंग वाले इलाके में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सबसे ज्यादा विरोध के सुर उठे थे. यही वजह है कि कांग्रेस ने गारंटी दी है सीएए को लागू नहीं करेगी जबकि बीजेपी इस मुद्दे पर चुप है और अपने घोषणा पत्र में भी इसका उल्लेख नहीं किया. ऐसे में इस बार बीजेपी के लिए पिछली बार जैसे नतीजे दोहराने की चुनौती खड़ी हो गई है.

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असम सीएम सर्बानंद सोनोवाल और पीएम नरेंद्र मोदी
असम सीएम सर्बानंद सोनोवाल और पीएम नरेंद्र मोदी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • असम में पहले चरण की 47 सीटों पर 27 मार्च को वोटिंग
  • ऊपरी असम में सीएए का सबसे ज्यादा विरोध रहा
  • चाय मजदूरों की दिहाड़ी बना सबसे बड़ा मुद्दा

असम विधानसभा चुनाव में पहले चरण की 47 सीटों पर 27 मार्च को वोटिंग होनी है. पहले चरण के जनादेश से राज्य की सत्ता के भविष्य का फैसला होना है, क्योंकि बीजेपी 2016 में इसी इलाके में क्लीन स्वीप कर पहली बार राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब रही थी. इतना ही नहीं पहले दौर के वोटिंग वाले इलाके में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सबसे ज्यादा विरोध के सुर उठे थे. यही वजह है कि कांग्रेस ने गारंटी दी है सीएए को लागू नहीं करेगी जबकि बीजेपी इस मुद्दे पर चुप है और अपने घोषणा पत्र में भी इसका उल्लेख नहीं किया. ऐसे में इस बार बीजेपी के लिए पिछली बार जैसे नतीजे दोहराने की चुनौती खड़ी हो गई है.

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ऊपरी असम के इलाके में चुनावी जंग

असम के पहले चरण की 47 विधानसभा सीटों में से 42 सीटें ऊपरी असम के 11 जिलों की हैं जबकि 5 सीटें सेंट्रल असम में इलाके की शामिल हैं. इनमें हिंदू असमिया मतदाताओं के साथ-साथ चाय बगानों में काम करने वाले अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की भी निर्णायक भूमिका है. असमिया मतदाता सीएए के लागू करने के खिलाफ हैं जबकि चाय बागानों में काम करने वाले अदिवासी समुदाय दिहाड़ी मजदूरी को लेकर नाराज माने जा रहे हैं. वहीं, 2016 में इन दोनों ही समुदाय पर बीजेपी की जबरदस्त पकड़ रही है, जिसके चलते उसने पूरे इलाके में कांग्रेस का सफाया कर दिया था. 

इन दिग्गज नेताओं की किस्मत दांव पर 

असम के पहले चरण में बीजेपी और कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी है. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल (माजुली), विधानसभा अध्यक्ष हितेंद्र नाथ गोस्वामी (जोरहाट), मंत्री रंजीत दत्ता (बेहाली) और संजय किशन (तिनसुकिया) से किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे ही एनडीए के सहयोगी और असम गणपरिषद के नेता व मंत्री अतुल बोरा (बोकाखाट) और केशव महंत (कलियाबोर) भी मैदान में है. वहीं, असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रिपुन बोरा (गोहपुर), कांग्रेस विधायक दल के नेता देवव्रत सैकिया (नाजिरा) और कांग्रेस सचिव भूपेन बोरा (बिहपुरिया) की किस्मत का फैसला भी पहले चरण में होना है. 

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सीएए का सबसे ज्यादा विरोध 

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने बीते साल 11 दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक संसद से पास करा लिया था. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ये कानून भी बन गया है. पिछले साल इस कानून के आते ही ऊपरी असम के जिलों में नागरिकता कानून के खिलाफ सबसे ज्यादा विरोध देखने को मिला था. असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भी ऊपरी असम से ही आते हैं. कांग्रेस ने असम में सीएए को बड़ा मुद्दा बनाया है जबकि बीजेपी इस पर खामोश है. बीजेपी ने बंगाल में सीएए को पहली कैबिनेट मीटिंग में ही लागू करने का वादा किया है, लेकिन मंगलवार को असम के लिए घोषणा पत्र जारी किया तो पार्टी ने सीएए का जिक्र तक नहीं किया. 

सीएए के खिलाफ प्रदर्शन

सीएए कानून को लेकर असम में किस तरह की नाराजगी है, यह बात बीजेपी के घोषणा पत्र से साफ पता चल रही है. हिंदू असमिया मतदाता सीएए पर अभी भी नाराज हैं और अब भी इन इलाकों में विरोध चल रहे हैं. असम के सबसे प्रभावी छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने 20 मार्च को ऊपरी असम के इलाके की धेमाजी से एक बाइक रैली प्रदेश भर में निकाली थी और कानून को वापस लेने की मांग उठाई थी. सीएए के विरोध के कारण बीजेपी इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बच रही है. 

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सीएए पर कांग्रेस बनाम बीजेपी

बीजेपी सीएए के मुद्दे को उठाने से बच रही है जबकि विपक्ष को विरोध करने में अपना फायदा दिख रहा है. असम के सेंटीमेंट को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो पांच गारंटी दी हैं, जिनमें सीएए को लागू नहीं किया जाएगा वाली बात को सबसे ऊपर रखा है. सीएए के विरोध के आंदोलन से बनी राज्य की दो नई क्षेत्रीय पार्टियां असम जातीय परिषद (एजेपी) और रायजोर दल साथ मिलकर चुनाव लड़ रही हैं. ऐसे में पहले चरण की 47 सीटों पर बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती बनी हुई है. 

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि सीएए की समझ नहीं होने के कारण कांग्रेस के घोषणापत्र में इसे नहीं लागू करने का वादा किया गया है. सीएए एक केंद्रीय कानून है और राज्य का कोई भी कानून उससे ऊपर नहीं हो सकता. साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने नागरिकता कानून का समर्थन करते हुए कहा कि सीएए एक राष्ट्रीय कानून है और इसे लागू किया जाना है.

चाय मजदूरों के लिए दिहाड़ी बना मुद्दा

वहीं, असम के पहले चरण की जिन 47 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, वहां पर आदिवासी समुदाय का भी कभी दबदबा है. चाय मजदूर खासकर अपनी दिहाड़ी मजदूरी को लेकर बीजेपी से नाखुश माने जा रहे हैं. हालांकि, असम सरकार ने अपने कैबिनेट की अंतिम बैठक में चाय मजदूरों की दिहाड़ी में 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ाने का निर्णय लिया था और इस संबंध में एक नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था, लेकिन चाय कंपनियां सरकार के इस फैसले के खिलाफ अदालत चली गईं, जहां गुवाहाटी हाईकोर्ट ने फिलहाल दिहाड़ी बढ़ाने के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी. 

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असम का छत्तीसगढ़ का कनेक्शन

कांग्रेस ने चाय बागानों के मजदूरों को साधने के लिए बड़ा दांव चला है. मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी 365 रुपये करने की गारंटी दी है. इसके अलावा ऊपरी असम की करीब 20 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां छत्तीसगढ़ से आए आदिवासी समुदाय का सियासी असर है. यही वजह है कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को असम चुनाव में लगाया है. इतना ही नहीं कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक दलों को असम बुलाकर उनके कार्यक्रम भी करा रही है. कांग्रेस इस कोशिश से छत्तीसगढ़ मूल के लोगों का समर्थन जुटाना चाहती है. 

हालांकि, पहले चरण के तहत ऊपरी असम की सीटों पर मतदाताओं को दो सबसे लंबे नदी पुलों ने प्रभावित किया है, इसके अलावा चाय बागान में काम करने वाली जनजातियों के लिए भी बीजेपी ने मुफ्त बिजली कनेक्शन, गैस कनेक्शन, टॉयलेट से लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं जो एक महत्वपूर्ण आबादी को प्रभावित करती हैं. इसके अलावा बीजेपी ने भी छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह को भी असम में रणभूमि में लगाया है. 

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों के भत्ते पर भी बयान दिया. सोनोवाल ने कहा कि चाय बागान मजदूरों के भत्ते में कोई समस्या नहीं है. उनकी मानें तो बीजेपी ने 5 साल के अपने छोटे से कार्यकाल में 80 रुपये तक भत्ता बढ़ाने का काम किया. सोनोवाल बोले कि हमें कांग्रेस बताए कि सत्ता में रहने के दौरान उसने कितनी बार चाय के बागानों में काम कर रहे इन मजदूरों का भत्ता बढ़ाया?

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