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असम के आखिरी चरण की लड़ाई: कांग्रेस-बीजेपी में कांटे का मुकाबला, सरमा की साख दांव पर

असम विधानसभा चुनाव के फाइनल दौर की 40 सीटों पर 323 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस चरण में निचले असम के इलाके में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन में स्थित हैं. यहां मुस्लिम मतदाता काफी अहम भूमिका में हैं. सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी दलों के गठबंधन के लिए यह चरण सबसे ज्यादा अहम है. हेमंत बिस्वा सरमा जैसे दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. 

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असम के तीसरे चरण का चुनाव
असम के तीसरे चरण का चुनाव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • असम के तीसरे चरण की 40 सीटों पर मंगलवार को वोटिंग
  • असम के तीसरे चरण में हेमंत बिस्वा सरमा की साख दांव पर
  • तीसरे चरण में मुस्लिम वोटर काफी अहम भूमिका में

असम विधानसभा चुनाव के लिए दो तिहाई सीटों पर मतदान हो चुके हैं और अब तीसरे व अंतिम चरण की 40 सीटों पर मंगलवार को वोटिंग होनी है. फाइनल दौर की 40 सीटों के लिए 323 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस चरण में निचले असम इलाके में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन में स्थित हैं. यहां मुस्लिम मतदाता काफी अहम भूमिका में है. सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी दलों के गठबंधन के लिए यह चरण सबसे ज्यादा अहम है. हेमंत बिस्वा सरमा जैसे दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. 

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फाइनल चरण की सीटों का समीकरण

प्रदेश के 16 जिलों की यह 40 विधानसभा सीटें लोअर असम इलाके में फैली हुई हैं. बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (बीटीआर) इलाके की सीटों पर चुनाव है. बीजेपी पिछले चुनाव में भी असम के निचले इलाके में बहुत अच्छा नहीं कर सकी थी. बीजेपी और कांग्रेस को 11-11 सीटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं, बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AUIDF को 6, असम गणपरिषद को 4 और अन्य को आठ सीटें मिली थीं. इस बार के चुनाव में 29 विधायक एक बार फिर से मैदान में हैं, जिनमें से 9 भाजपा और 8 कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. 

असम के तीसरे चरण

तीसरे चरण में वोट शेयर में कांग्रेस आगे

कांग्रेस ने भले ही बीजेपी के बराबर सीटें जीती हों, लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी से सात फीसदी ज्यादा कांग्रेस का रहा था. कांग्रेस को 27 फीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी का वोट 19.9 फीसदी रहा था. वहीं, AUIDF को 16 फीसदी, एजेपी को 10 फीसदी और अन्य को 25 फीसदी वोट मिले थे. 2016 में कांग्रेस और  एआइयूडीएफ के अलग-अलग चुनाव लड़ने से उन्हें 12 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था जबकि बीजेपी बहुत कम अंतर से यह सीटें जीत गई थी.

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बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट इस बार बीजेपी से अलग होकर कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव में किस्मत आजमा रहा है. लोअर असम इलाके में मुस्लिम वोटों का बंटवारा रोकने के लिए कांग्रेस ने एआईयूडीएफ, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट और वामदलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है. इन पार्टियों की कोशिश किसी भी तरह से तीसरे चरण में मुस्लिमों पर फोकस कर गठबंधन पार्टियों को पूरा वोट एक-दूसरे को स्थानांतरित कराने की है ताकि पिछले चुनाव जैसी गलती इस बार न हो सके. 

2016 में जीत का ज्यादा मार्जिन
तीसरे चरण में मामूली वोट शेयरों के बावजूद कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीटों का बड़ा अंतर रहा है. 2016 में 16 सीटों में से कई सीटों पर जीत का अंतर 20,000 वोटों से अधिक था जबकि 2006 में तीन और 2011 में 9 सीटें का अंतर था. इन 16 सीटों में से बीजेपी ने छह, कांग्रेस ने पांच, एजीपी ने तीन, और एआईयूडीएफ और बीओपीएफ ने एक-एक सीट 20 हजार के अंतर से जीती थी. 

असम की कांटे की लड़ाई

तीसरे चरण की कम अंतर वाली सीटें
असम चरण 3 विधानसभा सीटों पर काफी निकटतम लड़ाई रही थी. ऐसे ही सात सीटों पर जीत का अंतर 5,000 वोटों से कम था. 2006 में ऐसी 19 सीटें थीं और 2011 में नौ सीटें पर हार जीत का अंतर काफी कम था. ऐसे में इस बार इन सीटों का कांटे का मुकाबला होने की संभावना दिख रही है. अंतिम चरण की 40 सीटों में से अभयपुरी उत्तर और गोलपारा पूर्व में पिछले दो चुनावों में कड़ी टक्कर देखी गई है. अभयपुरी दक्षिण सीट पर सबसे करीबी लड़ाई देखी गई जहां मार्जिन केवल 191 वोटों का था. 

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तीसरे चरण की महत्वपूर्ण सीटें
तीसरे चरण में सबसे हाई प्रोफाइल सीट जलुकबाड़ी मानी जा रही है, जहां से सोनोवाल सरकार में मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा चुनाव लड़ रहे हैं. वह 2001 से इस सीट से लगातार जीत रहे हैं. ऐसे में इस बार उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है. पतराचरुची सीट पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रणजीत कुमार दास चुनाव लड़ रहे हैं, पिछले चुनाव में उन्होंने सोरभोग निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार पतराचरुची से मैदान में हैं. चायगांव सीट से कांग्रेस के मौजूदा विधायक रेकीबुद्दीन अहमद इस सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने 2011 में भी जीत हासिल की, ​​वह एजीपी की डॉ कमला कांता कलिता के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्होंने पूर्व में चार बार यह सीट जीती थी.

तीसरे चरण की अहम सीटें


सरुखेत्री सीट पर एजीपी के टिकट पर असम की लोक गायिका कल्पना पटोवरी चुनाव लड़ रही हैं. वह कांग्रेस से मौजूदा विधायक जाकिर हुसैन सिकदर के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं. चपागुरी सीट पर बीजेपी की सहयोगी यूपीपीएल के टिकट पर साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता उर्खा गौरव ब्रह्मा चुनावी मैदान में हैं. कोकराझार पूर्वी सीट पर छह बार की विधायक प्रमिला रानी ब्रह्मा एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं. 

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बीजेपी ने खेला मुस्लिम दांव
वहीं, बीजेपी ने असम की सियासी जंग फतह करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकी है, क्योंकि उसे विपक्षी गठबंधन से ज्यादा खतरा महसूस हो रहा है. विपक्ष के पास मजबूत नेता भले ही ना हो लेकिन विभिन्न दलों की एकजुटता ने बीजेपी के लिए चिंता बढ़ा दी है. असम के निचले हिस्से में मुस्लिम वोटों की अहमियत को देखते हुई बीजेपी गठबंधन ने भी 9 मुस्लिम प्रत्याशी उतार रखे हैं. 

बीजेपी से लाहरीघाट सीट से कादिरुज्जमान जिन्नाह मैदान में हैं तो बाघबर से मुस्लिम महिला हसीन आरा खातून को बीजेपी ने टिकट दिया है. रूपहीहाट से नाजीर हुसैन बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो शाहिदुल इस्लाम जनिया विधानसभा सीट से हैं. इनके अलावा सोनाई सीट से मौजूदा विधायक अमीनुल हक लस्कर फिर मैदान में हैं तो दक्षिण सालमारा सीट से अशदुल इस्लाम उम्मीदवार बनाए गए हैं, बिलासीपाड़ा पश्चिम से डॉ. अबू बकर सिद्दीक और जलेश्वर सीट से उस्मान गनी किस्मत आजमा रहे हैं. 

मुस्लिम सीटों का समीकरण

असम की मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईयूडीएफ के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल की अच्छी पकड़ मानी जाती है. वर्ष 2011 के चुनाव में मुस्लिम बहुल 53 सीट में से कांग्रेस ने 28 और एआईयूडीएफ ने 18 सीट जीती थी, लेकिन 2016 के चुनाव में कांग्रेस को 18 और एआईयूडीएफ 12 सीटों से संतोष करना पड़ा था. इसलिए इस बार दोनों पार्टियों ने निचले असम में पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस, यूडीएफ और लेफ्ट पार्टियां अपना वोट एक-दूसरे को स्थानांतरित कराने में सफल रहते हैं, तो जीत की दहलीज तक पहुंचने में बहुत मुश्किल नहीं होगी. 

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