असम में विधानसभा चुनाव प्रचार जोरों पर है और सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस समेत कई पार्टियां लगातार प्रचार में जुटी हुई हैं. राज्य में चुनाव प्रचार में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) भी मुद्दा बना हुआ है. कांग्रेस सीएए के मुद्दे को बड़ा मुद्दा बनाने में कोशिश में लगी है जबकि सत्तारुढ़ बीजेपी इससे बचने की कोशिश कर रही है.
करीब 15 महीने पहले संसद में चली लंबी बहस के बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित किया गया था और इसके खिलाफ गुवाहाटी में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोली से पांच लोग मारे गए थे. 2019 में सीएए के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुआ था और आज यह चुनाव के समय असम के लिए यह कई अहम मुद्दों में से एक है.
चुनावी माहौल में आजतक/इंडिया टुडे ने मतदाताओं की नब्ज टटोलने के लिए असम के 2 विधानसभा क्षेत्रों की यात्रा की. फैंसी बाजार से उत्तरी गुवाहाटी तक कई लोगों से बात की गई तो पता चला कि गुवाहाटी के लोगों का कहना है कि सीएए से भी अधिक कई अन्य अहम चुनावी मुद्दे हैं.
'विकास को वोट करूंगा'
उत्तरी गुवाहाटी से 32 साल की वकील हमीदा खातून ने कहा, 'यहां तक कि मैंने भी सीएए के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया था, लेकिन अब जब मैं वोट देने जा रही हूं, तो मैं राज्य में विकास, महिला सुरक्षा, मुद्रास्फीति के आधार पर वोट करूंगी. जो पार्टी कीमतों में वृद्धि को कम करती है और हमारे विकास को सुनिश्चित करती है, मैं उन्हें वोट दूंगी. हकीकत यह है कि बीजेपी ने गुवाहाटी में कुछ अच्छा विकास कार्य किया है.'
गुवाहाटी युनिवर्सिटी के एक अन्य छात्र ने आजतक/इंडिया टुडे से कहा, 'अगर आप मुझसे पूछते हैं तो सीएए निश्चित तौर एक मुद्दा होगा, लेकिन मैं यह नहीं कहूंगा कि यह अन्य बहस पर हावी होगा. मेरे कई सीनियर्स को पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद भी कोई नौकरी नहीं मिली. हम परिवारों को खाना खिलाते हैं.' उन्होंने कहा कि हमें नौकरियों की जरुरत है. राज्य के युवा काम की तलाश में किसी अन्य राज्य में नहीं जाना चाहते हैं. एनआरसी या सीएए की जगह इस सरकार को असम में अपने रोजगार के मुख्य चुनावी मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए. हम मतदान करने जा रहे हैं.
'हमारी स्थिति नहीं बदली'
सेंट्रल असम विधानसभा क्षेत्र के नागांव में भी यही भावना है. असम के सबसे बड़े शहरों में से एक इसमें दो चचेरे भाइयों के बीच जंग देखी जा रही है. बीजेपी के रूपक सरमा कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे अपने चचेरे भाई शांतनु सरमा के खिलाफ मैदान में हैं, जबकि भाई एक-दूसरे पर ध्रुवीकरण के आरोप लगाते हैं. नागांव के मतदाता 'वास्तविक मुद्दों' में ध्रुवीकरण की बहस के शिकार होने से इनकार करते हैं.
52 साल के रामधीर बरुआ ने कहा, 'सीएए के साथ या उसके बिना मेरा जीवन कैसे बदल जाएगा. मैं एक दुकानदार हूं, जिन्होंने इस कानून का राजनीतिकरण किया वो स्टार बन गए, जो लोग इसे लागू करना चाहते थे वो आज इसके बारे में बात नहीं कर रहे हैं. मैं 2019 में जहां था वहीं रह गया. मेरे लिए कुछ भी नहीं बदला. यहां तक की हमारे क्षेत्र की स्थिति भी नहीं बदली.'
उन्होंने कहा, 'मैं सीएए के खिलाफ हूं, लेकिन यह मेरे दिमाग में चल रहा है, जब मैं अपना वोट डालूंगा. मैं अपने क्षेत्र, अपने समुदाय, अपने परिवार का विकास चाहता हूं. हमने पिछले लोकसभा चुनावों में सीएए की वजह से नहीं बल्कि कांग्रेस के खिलाफ इसलिए बीजेपी को था, क्योंकि पूर्व सांसद ने नागांव के विकास के लिए कोई काम नहीं कर रहे थे. अब इस चुनाव में भी हम वही करेंगे. हम अभी सीएए को लेकर परेशान नहीं हैं, भले ही हम इसके खिलाफ हों लेकिन हम विकास चाहते हैं. जिसने भी नागांव के लिए काम किया उसे वोट देंगे.