यूं तो सियासत में हर कदम पर जोड़-घटाव, गुना-भाग लगा रहता है. इसी तरीके से हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन बनते-बनते रह गया तो उसमें भी नफा-नुकसान तो होगा ही. चुनाव से पहले गठबंधन की कोशिश दोनों पार्टियों में चलती रही. जाहिर सी बात है उम्मीदें दोनों को कुछ न कुछ रही होंगी. तोल-मोल भी चला होगा, कई राउंड बातचीत में मान मनौव्वल के साथ ही तल्खी भी देखने को मिली ही होगी.
सूत्रों के मुताबिक गठबंधन की राह में सबसे बड़ा रोड़ा सीटों की डिमांड को लेकर हुआ. आम आदमी पार्टी की तरफ से करीब 10 सीटों की डिमांड रखी गई जबकि कांग्रेस की तरफ से 3 से 5 सीटों का ऑफर दिया. आम आदमी पार्टी की तरफ से जो सीटें मांगी गई, उन सीटों को कांग्रेस देने को तैयार नहीं हुई. कई राउंड की बातचीत के बाद 5 सीटों तक बात पहुंची, कांग्रेस पांच सीटें देने को राजी हुई लेकिन उन सभी सीटों पर BJP का होल्ड है. यानी गठबंधन के बावजूद जीत की गुंजाइश कम है.
AAP ने जारी की 20 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट
दूसरी तरफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की लोकल लीडरशिप गठबंधन के खिलाफ है. आम आदमी पार्टी की ओर से साफ किया गया है कि अगर गठबंधन नहीं होता है तो वो 90 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है. उधर कांग्रेस के स्थानीय नेता भी आप के साथ गठबंधन का विरोध कर रहे हैं.
अब जबकि आम आदमी पार्टी ने अपने 20 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है तो आधिकारिक तौर पर कहा जा सकता है कि गठबंधन की उम्मीद टूट गई लेकिन इससे फायदा किसे होगा, बड़ा सवाल ये है. AAP ने अपनी पहली लिस्ट में 20 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है. जिन 11 सीटों पर कांग्रेस पहले ही उम्मीदवार घोषित कर चुकी है, वहां पर भी AAP ने प्रत्याशी उतारे हैं. ये सीटें हैं- उचाना कलां, मेहम, बादशाहपुर, नारायणगढ़, समालखा, दाबवली, रोहतक, बहादुरगढ़, बादली, बेरी और महेन्द्रगढ़.
आम आदमी पार्टी के पैर जमेंगे या उखड़ेंगे?
दरअसल गठबंधन की बातचीत में जो सबसे अहम बात थी वो कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का ये डर था कि कहीं आम आदमी पार्टी को गठबंधन के बहाने पैर जमाने का मौका तो नहीं मिल जाएगा. हरियाणा दिल्ली और पंजाब के बीच की कड़ी है और दिल्ली-पंजाब दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी की सत्ता है.
सत्ता से बेदखल होने वाली पार्टी इन दोनों राज्यों में कांग्रेस ही रही है. यानी जो वोट बैंक कांग्रेस का माना जाता रहा उसे आम आदमी पार्टी ने हथिया लिया. कांग्रेसी ये गलती हरियाणा में नहीं करना चाहते. इसलिए आम आदमी पार्टी उनके सहारे हरियाणा में पैर जमा ले, ये उन्हें कतई गंवारा नहीं है.
क्या कांग्रेस अकेले ही जीत को लेकर है आश्वस्त?
कांग्रेस खेमे में ये बात है कि ग्राउंड पर उनके पक्ष में हवा है. पार्टी के प्रदेश स्तर के नेता ये मानते हैं कि आम आदमी पार्टी इसी हवा का फायदा उठाने के लिए गठबंधन का हिस्सा बनना चाहती थी ताकि उसे प्रदेश में फायदा मिले. लेकिन जितनी संख्या में सीट आम आदमी पार्टी मांग रही थी वो देना कांग्रेस की तरफ से संभव नहीं था.
साथ ही साथ जिन सीटों की फेहरिस्त आम आदमी पार्टी की तरफ से आई थी, वहां कइयों पर कांग्रेस के अपने ही दावेदार मजबूत थे. ऐसे में खुलेआम बगावत का खतरा भी मंडराने लगता जो माहौल बिगाड़ सकता था और ऐसे मौके पर जबकि पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है ऐसा करना उसे उचित नहीं लगा.
आम आदमी पार्टी लगा सकती थी बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंध
जानकारों का ये भी मानना है कि आम आदमी पार्टी से अलायंस कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा भी साबित हो सकता था. कई सीटों पर शहरी आबादी ज्यादा है और शहरी वोटरों में आम आदमी पार्टी का समर्थन कांग्रेस की तुलना में बेहतर है. खास तौर पर वो इलाके जो दिल्ली या फिर रंजाब से सटे हुए हैं, वहां आम आदमी पार्टी को सीटें देकर कांग्रेस एक तीर से दो निशाने साध सकती थी.
एक तो बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंधमारी और दूसरा कांग्रेस के वोट बैंक का ट्रांसफर होकर आम आदमी पार्टी के लिए विनिंग कांबिनेशन बन सकता था. लेकिन आरोप है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इस समीकरण की अनदेखी कर दी.
क्या कांग्रेस को था चुनाव से पहले माहौल बिगड़ने का खतरा?
कांग्रेस पहले ही अपने अंदर के गतिरोध से जूझ रही है. कई सीनियर नेताओं के खेमे बंटे हुए हैं. आलाकमान को हुड्डा खेमे, शैलजा और सुरजेवाला जैसे खेमों में तालमेल बिठाने में ही पसीना आ रहा है. ऐसे में 90 सीटों के लिए हजारों दावेदार पार्टी के अंदर ही मौजूद हैं. इन दावेदारों की नाराजगी के साथ ही गठबंधन का खेल साधना दोहरी चुनौती बन जाती.
अंदरूनी तौर पर ये भी डर सता रहा है कि अगर कुछ सीटें कमजोर कड़ी साबित हो गईं तो फिर माहौल बदलने में वक्त नहीं लगेगा और फायदा अपने अंदर फिलहाल संकट से जूझ रही बीजेपी को भी हो सकता है.
गठबंधन न होने से फायदा बीजेपी को होगा या किसी और?
इसी बात पर सबकी नजर होगी कि अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ आते तो क्या वोटरों को भी साथ लाते या फिर पार्टियों के वोटर कहीं और छिटक सकते थे. बीजेपी यही उम्मीद करेगी कि सत्ता विरोधी वोटर जितने ज्यादा हिस्सों में बंटे उतना ही बेहतर होगा. पहले ही आईएनएलडी-बीएसपी और आजाद समाज पार्टी-जेजेपी का गठबंधन सामने है. ऐसे में आम आदमी पार्टी का अलग जाना कांग्रेस के वोट को अपने साथ ले जाएगा या फिर बीजेपी के ये गिनती के वक्त निर्णायक हो सकता है.