महाराष्ट्र में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावों के ऐलान से पहले सत्ताधारी महायुति के घटक दलों में सीट बंटवारे की प्रक्रिया अब रफ्तार पकड़ रही है. गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और सहयोगी दलों के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर सीट शेयरिंग, विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति पर चर्चा की थी. अमित शाह ने एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को सम्मानजनक संख्या में सीटें देने का आश्वासन दिया. लेकिन पिछले कुछ दिनों से अजित पवार बदले-बदले से नजर आ रहे हैं.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा गिरने की घटना को लेकर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने वाले महायुति के पहले नेता थे. वह बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी को मैदान में उतारने को गलती बताते हुए भी माफी मांग चुके हैं, यह कह चुके हैं कि परिवार और राजनीति को अलग रखा जाना चाहिए. अब ताजा मामला परिवार तोड़ने को लेकर है. अजित पवार ने गढ़चिरौली में जन-सम्मान रैली को संबोधित करते हुए कहा कि समाज कभी भी यह स्वीकार नहीं करता कि कोई अपने परिवार को तोड़े.समाज को ये पसंद नहीं है, यही अनुभव किया है और अपनी गलती स्वीकार की है.
एनसीपी के 40 विधायकों को अपने साथ लाकर अजित पवार ने अपने ही चाचा शरद पवार को उनकी ही बनाई पार्टी से बेदखल कर दिया था. शरद पवार को एनसीपी के नाम-निशान की लड़ाई में मात खाने के बाद नई पार्टी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था. अब उनके रुख में अचानक इतना बदलाव क्यों आ गया है, क्या अजित की एनसीपी हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की राह पर है? महाराष्ट्र में अब इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. सवाल है कि ऐसी अटकलें क्यों लगाई जा रही हैं?
क्या जेजेपी की राह पर है एनसीपी?
हरियाणा में लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की अगुवाई वाली जननायक जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया था. वह भी तब, जब दोनों दलों के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर बातचीत चल रही थी और दुष्यंत बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव में जाने की बात कर रहे थे. अजित पवार भी बीजेपी और महायुति के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने की बात कर रहे हैं. चर्चा है कि बीजेपी हरियाणा की ही तर्ज पर एनसीपी से गठबंधन तोड़ सकती है.
बीजेपी नेताओं को लगता है कि अजित की पार्टी एमवीए और महायुति से अलग चुनाव मैदान में उतरती है तो इससे एंटी वोट का बिखराव होगा जिससे लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की संभावनाएं मजबूत हो सकती हैं. अजित अगर घर वापसी कर लेते हैं या एमवीए के साथ चुनाव मैदान में जाते हैं तो यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है.
एक वजह अजित की बगावत के बाद शरद पवार को लेकर सिम्पैथी फैक्टर भी बताया जा रहा है जिसे पार्टी गठबंधन टूटने के बाद पवार परिवार का आंतरिक मामला बता अधिक मजबूती से काउंटर कर सकेगी. लोकसभा चुनाव में शरद पवार नए नाम-निशान के साथ मजबूत होकर उभरे और इसने भी महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं की टेंशन बढ़ा दी है. अब अजित एकला चलो का नारा देते हैं या बीजेपी या महायुति अपने वर्तमान स्वरूप में ही चुनाव मैदान में उतरेगी? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन पिछले कुछ महीनों के ये घटनाक्रम इसी बात का संकेत माने जा रहे हैं कि महायुति में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा.
1- लोकसभा चुनाव के नतीजे
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 29, शिंदे की शिवसेना ने 15 और अजित की एनसीपी ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. बीजेपी नौ सीटें ही जीत सकी तो वहीं शिंदे की पार्टी सात और एनसीपी केवल एक सीट ही जीत सकी. शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार स्टेबल होने के बावजूद बीजेपी ने एनसीपी को साथ लिया तो इसके पीछे उद्धव ठाकरे से अलगाव के बाद नुकसान की भरपाई करने की रणनीति वजह बताई जा रही थी.
बीजेपी और एनडीए को कहां अजित के साथ से फायदे की उम्मीद थी, चुनाव नतीजे आए तो उल्टा नुकसान हो गया. इसके उलट, नए निशान के साथ चुनाव में उतरे शरद पवार की पार्टी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़कर आठ सीटें जीत लीं और विपक्षी एमवीए को 31 सीटों पर जीत मिली. इन नतीजों के बाद यह कहा जाने लगा कि जनता ने अजित के असली एनसीपी वाले दावे को नकार दिया है और पार्टी का वोटर शरद पवार के साथ ही रहा. संघ से संबंधित एक मराठी साप्ताहिक ने भी लोकसभा चुनाव में एनडीए के खराब प्रदर्शन के लिए अजित से गठबंधन को वजह बताया था.
2- देवेंद्र फडणवीस से बढ़ी दूरी
अजित की पार्टी महायुति में शामिल हुई तो उसके पीछे डिप्टी सीएम और महाराष्ट्र बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे देवेंद्र फडणवीस के साथ उनकी नजदीकी के भी चर्चे रहे लेकिन पिछले कुछ दिनों में दोनों नेताओं के बीच दूरियों की चर्चा जोरों पर रही है. इस तरह की चर्चा को लड़की बहिन योजना को लेकर छिड़े क्रेडिट वॉर ने भी और हवा दे दी.
एनसीपी ने सोशल मीडिया पर एक विज्ञापन जारी कर कहा था कि लड़की-बहिन योजना के तहत अजित पवार पैसे दे रहे हैं. इसमें कहीं भी सीएम शिंदे या डिप्टी सीएम फडणवीस का जिक्र नहीं था. इसके बाद बीजेपी की ओर से बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगवाई गई थीं जिन पर पीएम मोदी और सीएम शिंदे की छोटी-छोटी तस्वीरों के साथ देवेंद्र फडणवीस की बड़ी फोटो छपी थी. इन होर्डिंग्स पर अजित की न तो फोटो थी और ना ही कहीं नाम. ये होर्डिंग्स अजित पवार के इलाके बारामती के साथ ही वहां भी लगाई गईं, जिन्हें एनसीपी का गढ़ माना जाता है.
4- शिवसेना और एनसीपी में तल्खी
शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की तल्खी भी पिछले कुछ दिनों में खुलकर सामने आई है. तानाजी सावंत से लेकर गुलाबराव पाटिल तक, शिंदे सरकार में शिवसेना के मंत्री अजित पवार को टार्गेट करने का कोई मौका नहीं चूक रहे. सावंत ने अजित पर निशाना साधते हुए कहा था कि जीवनभर कांग्रेस और एनसीपी के विरोध की राजनीति की है. कैबिनेट में उनके बगल में बैठता हूं लेकिन बाहर आने के बाद उल्टी आती है.
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वहीं, मंत्री गुलाबराव ने भी हाल ही में वित्त विभाग को सरकार का सबसे बेकार विभाग बताया था. कहा तो ये भी जा रहा है कि अजित के वित्त मंत्री होने को ही आधार बनाते हुए कई आरोप लगा शिंदे की अगुवाई में बगावत कर एमवीए सरकार गिराने वाले शिवसेना विधायक सरकार में अजित को लिए जाने, वित्त मंत्री बनाए जाने के बाद से ही असहज महसूस कर रहे हैं.
5- सीट बंटवारे का पेच
अजित पवार के अलग ट्रैक पर दौड़ने के पीछे एक वजह सीट बंटवारे के पेच को भी बताया जा रहा है. महायुति में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है जिसे पिछले विधानसभा चुनाव में 105 सीटों पर जीत मिली थी. शिंदे की शिवसेना और अजित की एनसीपी, दोनों के ही 40-40 विधायक हैं. बीजेपी 160 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है तो वहीं शिंदे की पार्टी ने भी 107 सीटों पर दावेदारी कर दी है. अजित पवार भी यह दावा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 60 से 67 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. सीट शेयरिंग के पेच को देखते हुए भी इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि महायुति से किसी एक दल की एग्जिट हो सकती है. लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अजित पवार शिवसेना से लेकर संघ तक के निशाने पर हैं. ऐसे में हो सकता है कि वह सॉफ्ट टार्गेट बन जाएं.
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दरअसल, एनसीपी और शिवसेना दोनों ही बगावत के बाद खुद को असली पार्टी बताते आए हैं. नाम-निशान की लड़ाई भी दोनों जीत चुके हैं लेकिन अब विधानसभा चुनाव में दोनों के सामने खुद को असली पार्टी के रूप में ले जाने की चुनौती भी है. 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी ने कुल 288 में से 164 और शिवसेना ने 126 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. वहीं, विपक्षी गठबंधन में एनसीपी के हिस्से 121 सीटें आई थीं. अब महायुति में शामिल हर दल चाहता है कि वह अपने पिछले चुनाव की पोजिशन बरकरार रखे.