
दिल्ली में इस बार का विधानसभा चुनाव तीनों ही प्रमुख दलों के लिए आसान लड़ाई नहीं है. पिछले 10 साल से सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है, इस बार हार से AAP के राष्ट्रीय पटल पर विस्तार के प्लान को झटका लगेगा. करीब तीन दशक से दिल्ली की सत्ता से बाहर भारतीय जनता पार्टी के लिए हार उसे क्षेत्रीय क्षत्रपों में कमजोर साबित करेगी. कांग्रेस के लिए हार से एक बार फिर उसके चुनाव लड़ने की ताकत पर सवाल उठेंगे और संगठन को मजबूत बनाने की जरूरत महसूस होगी. इस वजह से इन तीनों ही दलों के लिए जीत हर कीमत पर जरूरी है.
हरियाणा और महाराष्ट्र दोहराने की चुनौती
लोकसभा चुनाव में 10 में से पांच सीटें जीतने के बाद भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस हरियाणा में पसंदीदा थी और पहलवानों, किसानों और अग्निवीर योजना का विरोध केंद्र में रहा. महाराष्ट्र में भी महा विकास अघाड़ी ने 48 लोकसभा सीटों में से 30 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति पिछड़ गई. हालांकि विधानसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी ने रिकॉर्ड तीसरी बार जीत हासिल की और महाराष्ट्र में महायुति ने रिकॉर्ड तीन-चौथाई सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया. यह माइक्रो-मैनेजमेंट, छोटी नुक्कड़ सभाओं और सीट दर सीट मुकाबलों से संभव हुआ, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी एनडीए के पक्ष में वोट मांगे.
जेजे क्लस्टर्स पर पार्टियों का फोकस
दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ी (जेजे) कॉलोनी में रहने वाले मतदाता पिछले दो चुनावों से AAP का समर्थन कर रहे हैं. इनमें से ज्यादातर गरीब हैं और मुफ्त बिजली-पानी, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, मोहल्ला क्लीनिक और अन्य योजनाओं के लाभार्थी हैं. AAP का दावा है कि ऐसे लोग सरकार की योजनाओं के कारण हर महीने 25,000 रुपये तक बचा रहे हैं. दिल्ली में ऐसे 675 जेजे क्लस्टर हैं, इनमें से ज़्यादातर नई दिल्ली और दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीटों के तहत आते हैं, जिनकी संख्या क्रमशः 146 और 143 है. झुग्गियों की सबसे कम संख्या उत्तर पूर्व और उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीटों में है.
ये भी पढ़ें: दिल्ली की इन 12 सीटों पर AAP के लिए चुनौती बनी कांग्रेस! दलित-मुस्लिम वोटर्स पर निगाहें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी की शुरुआत में जेजे क्लस्टर के निवासियों के लिए 1,675 फ्लैटों का उद्घाटन किया था. बीजेपी ने जेजे कॉलोनियों के कई लोगों को नए स्वाभिमान अपार्टमेंट में ले जाकर इस बात पर जोर दिया कि जिन लोगों के पास पक्के घर नहीं हैं, उन्हें जल्द ही ऐसे घर मिलेंगे. AAP ने जवाब दिया कि इस परियोजना को पूरा होने में 100 साल से अधिक का समय लगेगा.
एमसीडी जीतने वाले की हार का ट्रेंड
जेजे क्लस्टर और AAP के बेस वोटबैंक के बीच एक मजबूत संबंध है. सबसे ज़्यादा जेजे क्लस्टर वाली विधानसभा सीटों- नई दिल्ली, चांदनी चौक और दक्षिणी दिल्ली में 2020 में AAP का वोट शेयर और बीजेपी पर बढ़त सबसे ज़्यादा थी. करीब 21 प्रतिशत जेजे क्लस्टर दक्षिणी दिल्ली में, 21 प्रतिशत नई दिल्ली में और 19 प्रतिशत चांदनी चौक में स्थित हैं, जहां AAP को 15 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 20 प्रतिशत की बढ़त मिली थी.
साल 2022 में एमसीडी चुनाव में AAP की जीत के बाद बीजेपी को उम्मीद है कि वह सड़क-पानी जैसे रोजमर्रा के मुद्दों पर असंतोष को विधानसभा चुनाव में भुना सकती है क्योंकि कई झुग्गियों में अभी भी सफाई की कमी है और सीवेज की समस्या है. एमसीडी चुनाव जीतने वाली पार्टी के विधानसभा चुनाव हारने का एक मजबूत ट्रेंड है, बीजेपी के साथ भी ऐसा ही हुआ था. पार्टी ने 2007, 2012 और 2017 का एमसीडी चुनाव जीता और 2008, 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में लगातार हारती चली गई.
कम वोट शेयर के बाद भी जीत सकती है बीजेपी?
हरियाणा में बीजेपी ने वोट शेयर में एक फीसदी से भी कम अंतर से कांग्रेस को हराया था. कांग्रेस से 1.18 लाख ज़्यादा वोट पाकर बीजेपी ने 48 सीट जीतीं, जो बहुमत से तीन ज़्यादा थीं. कांग्रेस ने 2019 के मुक़ाबले 11 फीसदी ज्यादा वोट शेयर हासिल किया, लेकिन सिर्फ सात सीटें ज्यादा जीत सकी. इसी तरह ओडिशा में भी बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीता, जहां उसे 78 सीटें मिलीं, बीजेडी को 51 सीटें हासिल हुई. बीजेडी 40.22 प्रतिशत के साथ 40.07 फीसदी वोट शेयर हासिल करने वाली बीजेपी से इस मामले में थोड़ा आगे रही. दिल्ली में भी 2020 चुनाव के वोट शेयर से पता चलता है कि कम वोट शेयर के साथ भी बीजेपी सत्ताधारी AAP से जीत सकती है.
साल 2020 में बीजेपी के खिलाफ वोट शेयर में AAP की कुल बढ़त 15 प्रतिशत थी, जबकि एनडीए के खिलाफ 14 प्रतिशत, जिसमें जेडीयू और लोजपा जैसे सहयोगी शामिल थे, जिन्होंने 70 में से तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. हालांकि, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी 12 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली AAP को इन सीटों पर 23 प्रतिशत की भारी बढ़त हासिल थी. मुस्लिम बाहुल 9 सीटों पर AAP को 27 प्रतिशत की भारी बढ़त मिली. वहीं, 49 सामान्य सीटों पर AAP की बढ़त सिर्फ 10 प्रतिशत रही. आरक्षित सीटों पर AAP को 58 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बीजेपी को सिर्फ 35 प्रतिशत वोट मिले. मुस्लिम सीटों पर AAP को 60 प्रतिशत समर्थन मिला, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 33 प्रतिशत रहा.
6 फीसदी वोट स्विंग से पलटेगी बाजी?
सामान्य सीटों पर AAP को 51 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बीजेपी ने 41 प्रतिशत वोटों के साथ अंतर को कम किया. साल 2025 के चुनावों में AAP के खिलाफ और बीजेपी के पक्ष में 6 प्रतिशत वोटों का झुकाव होने पर AAP का वोट शेयर 48 प्रतिशत और बीजेपी का 45 प्रतिशत हो जाएगा. जबकि एससी आरक्षित और मुस्लिम बाहुल सीटों में छह प्रतिशत का बदलाव 2025 में दोनों जगह तीन-तीन सीटें जीतने में BJP की मदद करेगा. दिल्ली में इस बार सामान्य सीटें गेम चेंजर साबित हो सकती हैं. AAP ने ऐसी 41 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 8 पर जीत हासिल की. हालांकि 6 प्रतिशत का बदलाव होने की स्थिति में बीजेपी का वोट शेयर 47 प्रतिशत और AAP का 45 प्रतिशत होगा. इससे बीजेपी को इन इलाकों में 30 सीट (+22) जीतने में मदद मिलेगी जबकि AAP 19 सीट (-22) ही हासिल कर पाएगी. इस तरह तीन प्रतिशत कम वोट शेयर के बावजूद बीजेपी दिल्ली में जीत हासिल कर सकती है.