झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता चंपई सोरेन ने X पर एक लंबा पोस्ट लिखा है, जिससे ये संकेत मिलते हैं कि वह जरूर कोई बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं. उन्होंने लंबे-चौड़े पोस्ट में अपनी ही पार्टी में उनके साथ हुए व्यवहार पर दुख व्यक्त किया है. चंपई सोरेन ने लिखा है कि जब हेमंत सोरेन के जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद उनसे विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया तो वह टूट गए, क्योंकि उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची थी. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा है कि अगर शिबू सोरेन आज सक्रिय राजनीति में होते तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होगी. हम नीचे आपको बताते हैं चंपई सोरेन के बागी लेटर की पांच बड़ी बातें...
1. मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की
चंपई सोरेन ने खुद को आंदोलन से निकला नेता बताया है. उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है कि अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है. राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं. किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे.
2. किसी के साथ न गलत किया न होने दिया
मुख्यमंत्री के रूप में अपने 5 महीने के छोटे कार्यकाल का जिक्र करते हुए चंपई सोरेन ने लिखा है कि मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा. बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी. जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था. झारखंड का बच्चा-बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया.
3. सीएम रहते मेरे सारे कार्यक्रम रद्द करवाए गए
उन्होंने हेमंत सोरेन की जेल से रिहाई और उसके बाद के घटनाक्रमों पर प्रकाश डाला है. उन्होंने अपने X पोस्ट में लिखा है कि हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है. इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था. पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते. क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे?
4. अपनों द्वारा दिए गए दर्द को मैं किसे दिखाता
हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद झामुमो विधायक दल की बैठक में हुए घटनाक्रम चंपई सोरेन ने अपना अपमान बताया है. उन्होंने लिखा है कि अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इनकार कर दिया गया. पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनीतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. दो दिन तक चुपचाप बैठकर आत्ममंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा. सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्मसम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता?
5. ऐसा लगा मानो JMM में मेरा कोई वजूद नहीं
चंपई सोरेन ने लिखा कि मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था. पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था. मुझे ऐसा लगा मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा- 'आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है'. इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे. पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना. उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं.