दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग आम आदमी पार्टी की वापसी होगी या बीजेपी को मौका मिलेगा? लेकिन आज सबसे पहले हम दिल्ली के वोटिंग पैटर्न को डिकोड करेंगे. आज रात 8 बजे तक दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर 58 प्रतिशत मतदान हुआ है, जो अंतिम आंकड़ों में 60 प्रतिशत पहुंच सकता है. ये आंकड़ा साल 2024 के लोकसभा चुनावों से 0.7 प्रतिशत कम है. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों से साढ़े 4 प्रतिशत कम है और वर्ष 2015 के चुनावों से 9 प्रतिशत कम है.
दिल्ली में देश का सबसे जागरुक और सबसे शिक्षित वोटर रहता है और यहां लगभग हर व्यक्ति के पास स्मार्टफोन है लेकिन इसके बावजूद आज दिल्ली के 1 करोड़ 56 लाख वोटर्स में से 65 लाख लोगों ने वोट नहीं डाला. भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है लेकिन सच्चाई ये है कि लोकसभा चुनावों में दिल्ली के 63 लाख और आज विधानसभा चुनावों में 65 लाख लोगों ने अपना वोट नहीं डाला. ये आंकड़े न्यूजीलैंड जैसे देश की कुल आबादी से भी ज्यादा हैं.
60 प्रतिशत से कम रहा वोट प्रतिशत
किसी भी व्यक्ति को मतदान करने में औसतन 5 मिनट का समय लगता है और ये 5 मिनट ही तय करते हैं कि अगले 5 साल सरकार में कौन रहेगा. दिल्ली के लोगों ने इस बार न सिर्फ पिछली बार से कम मतदान किया बल्कि इस बार ये आंकड़ा अब भी 60 प्रतिशत को छू नहीं पाया है. पिछली बार जब आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती थीं, तब लगभग साढ़े 62 प्रतिशत मतदान हुआ था और वर्ष 2015 में जब 70 में से 67 सीटें जीती थी, तब 67 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था.
किस जिले में कितना मतदान हुआ?
दिल्ली में कुल 11 जिले हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 64 प्रतिशत मतदान उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुआ है. ये दिल्ली का वही जिला है, जहां वर्ष 2020 में साम्प्रदायिक दंगे हुए थे और जहां हिन्दू वोटर्स 68 प्रतिशत हैं और मुस्लिम वोटर्स 30 प्रतिशत हैं. सबसे कम 55 प्रतिशत मतदान नई दिल्ली जिले में हुआ है, जहां हिन्दू वोटर्स 88 प्रतिशत हैं और मुस्लिम वोटर्स सिर्फ 6 प्रतिशत हैं. इससे ये पता चलता है कि दिल्ली में जिन सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 20 पर्सेंट या उससे ज्यादा है, वहां सबसे ज्यादा मतदान हुआ है और जहां हिन्दू वोटर्स की संख्या ज्यादा है, वहां कम मतदान हुआ है.
नई दिल्ली सीट पर दो प्रतिशत वोटिंग बढ़ी
इनमें भी जिस नई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल, बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित चुनाव लड़ रहे हैं, उस सीट पर 54 प्रतिशत वोटिंग हुई है और ये पिछले चुनावों से 2 प्रतिशत ज्यादा है. पिछली बार इस सीट पर 52 प्रतिशत वोटिंग हुई थी और इस बार 54 प्रतिशत वोटिंग हुई है. हालांकि पिछली बार कम मतदान के बावजूद केजरीवाल इस सीट से 21 हजार वोटों से चुनाव जीते थे.
जिस कालकाजी सीट से मुख्यमंत्री आतिशी चुनाव लड़ रही हैं, उस सीट पर 52 प्रतिशत मतदान हुआ है और ये पिछली बार से साढ़े 5 प्रतिशत कम है. सबसे बड़ी बात ये है कि जिन सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 20 प्रतिशत या उससे ज्यादा है, उन सीटों पर पूरी दिल्ली से ज्यादा मतदान हुआ है. दिल्ली की 70 सीटों पर 58 प्रतिशत मतदान हुआ है जबकि मुसलमानों के प्रभाव वाली 12 सीटों पर 63 प्रतिशत मतदान हुआ है और ये कुल मतदान से 5 पर्सेंट ज्यादा है.
मुस्तफाबाद सीट पर हुई सबसे ज्यादा वोटिंग
दिल्ली की 70 सीटों में से जिन दो सीटों पर सबसे ज्यादा मतदान हुआ, वहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या 40 पर्सेंट से ज्यादा है. जिस मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में 41 प्रतिशत मुस्लिम और 56 प्रतिशत हिन्दू रहते हैं, वहां पूरी दिल्ली में सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत मतदान हुआ है. ये वही सीट है, जहां वर्ष 2020 में दिल्ली के साम्प्रदायिक दंगे हुए थे और इस बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने इन दंगों के मुख्य आरोपी ताहिर हुसैन को अपना उम्मीदवार बनाया है.
मुस्तफाबाद के बाद सीलमपुर में सबसे ज्यादा साढ़े 66 प्रतिशत मतदान हुआ, जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं. इस सीट पर 57 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है और 40 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है. जिस सीट पर सबसे कम मतदान हुआ, उस सीट का नाम है, करोल बाग. इस सीट पर सिर्फ साढ़े 47 प्रतिशत मतदान हुआ है और यहां 91 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है और सिर्फ 4.2 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. इस वोटिंग पैटर्न से आपको ये समझ आएगा कि जहां हिन्दुओं की आबादी ज्यादा है, वहां कम मतदान हुआ है और जहां मुसलमानों की आबादी ज्यादा है, वहां जबरदस्त वोटिंग हुई है.
क्या कहता है वोटिंग पैटर्न?
हाल ही में हरियाणा और झारखंड के चुनावों में पिछली बार से कम या लगभग बराबर मतदान हुआ था, जिससे वहां सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ. जबकि महाराष्ट्र में साढ़े 5 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ था और वहां भी सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ. इसके अलावा दिल्ली में जब आखिरी बार सत्ता परिवर्तन हुआ था, तब उन चुनावों में पिछली बार से 8 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग हुई थी. वर्ष 2008 के चुनावों में साढ़े 57 प्रतिशत मतदान हुआ था और वर्ष 2013 के चुनावों में साढ़े 65 प्रतिशत मतदान हुआ था.
ये वही चुनाव थे, जब आम आदमी पार्टी ने 15 वर्षों के बाद दिल्ली में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार को हराया था. इसके अलावा वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों में जब 2 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ, तब आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थीं जबकि वर्ष 2020 में जब 5 प्रतिशत कम मतदान हुआ था, तब आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती थीं. इससे ये पता चलता है कि दिल्ली में कम और ज्यादा वोटिंग के आधार पर नतीजों का सही अनुमान शायद गलत होगा.