दिल्ली में 27 साल के दीर्घकालीन विश्राम के बाद बीजेपी सत्ता में आंधी बनकर वापसी करती दिख रही है. विधानसभा चुनाव के ताजा नतीजे बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 45 से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है. दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जरूरी नंबर 36 है.
2014 के बाद बीजेपी ने देश में अदभुत चुनावी कामयाबियां हासिल की. केंद्र में बीजेपी तीसरी बार सत्ता में हैं. बीजेपी ने देश के कोने-कोने में विस्तार पाया. लेकिन जहां देश का पावर सेंटर है, जहां बीजेपी का भव्य मुख्यालय है उस दिल्ली में सरकार बनाने के लिए बीजेपी 1998 से ही तरस रही थी.
1998 से लेकर 2025. 27 साल का फासला. लेकिन अब यमुना के किनारे बसी दिल्ली का सियासी मूड बदल चुका है. दिल्ली में बीजेपी ने तगड़ी वापसी की है. लेकिन इस वापसी का X फैक्टर क्या है? कैसे बीजेपी दिल्ली में केजरीवाल के मुफ्त पानी बिजली और बस के तिलिस्म को तोड़ने में कामयाब रही 7 प्वाइंट में समझते हैं.
1. फ्रीबीज पर केजरीवाल से आगे चली गई बीजेपी
दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को उनके ही सबसे मजबूत चुनावी प्लैंक पर पटखनी दी. मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी केजरीवाल के दो ऐसे मुद्दे थे जिसने देश में चुनाव कैसे होते हैं इसकी परिभाषा ही बदल दी.
बीजेपी ने इसी मुद्दे को पाला-पोसा और इस पर केजरीवाल से आगे चली गई. दिल्ली चुनाव में बीजेपी मुफ्त दिए जाने वाले घोषणाओं पर केजरीवाल से आगे चली गई.
BJP ने महिलाओं के लिए ₹2,500 प्रति माह की आर्थिक मदद की घोषणा की है, जो केजरीवाल के ₹2,100 के प्रस्ताव से अधिक है.
इसके साथ-साथ, BJP ने 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर, होली और दीवाली पर एक-एक फ्री सिलेंडर, गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण किट, झुग्गीवासियों के लिए ₹5 में पौष्टिक भोजन और 70 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त चिकित्सा सहित कई योजनाएं की घोषणा की है. इसमें वरिष्ठ नागरिकों के मिलने वाला पेंशन 2 हज़ार से बढ़ाकर 2500 करने का वादा किया गया है. इसके अलावा बीजेपी ने दिल्ली में लोगों को 10 लाख तक मुफ्त इलाज का वादा किया है.
आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में मुफ़्त बिजली, पानी, इलाज, शिक्षा, महिलाओं को मुफ़्त बस यात्रा, बुज़ुर्गों की मुफ़्त तीर्थ यात्रा की योजना चला ही रही थी. केजरीवाल ने इसे और भी आगे बढ़ाने का वादा किया था. उन्होंने बुज़ुर्गों इलाज का पूरा खर्च, पुजारियों-ग्रंथियों को हर महीने 18 हज़ार रुपये का सम्मान और छात्रों को भी बसों में मुफ़्त यात्रा जेसे कई वादे किए थे. AAP ने दिल्ली मेट्रो में छात्रों को 50 फ़ीसदी छूट देने का वादा भी किया है.
लेकिन जनता ने बीजेपी की घोषणाओं को ज्यादा तवज्जो दी.
AAP ने प्रचार के दौरान यह भी बताने की कोशिश की कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो मुफ्त बिजली पानी बंद कर देगी. इस आशंका को निराधार साबित कराने के लिए बीजेपी ने खुद पीएम मोदी को मैदान में उतारा. पीएम ने चुनावी रैलियों में कहा कि कुछ भई मुफ्त योजनाएं बंद नहीं होगी बल्कि इसमें इजाफा ही होगा. दिल्ली के मतदाताओं को फोन आ रहे थे कि बीजेपी आई तो मुफ्त की योजनाएं बंद हो जाएगी इसके जवाब में बीजेपी ने भी ये स्कीम अपनाई और लोगों को फोन कर कहा कि कोई भी मुफ्त की स्कीम बंद नहीं होगी.
2.शीशमहल का मुद्दा उठाकर केजरीवाल की 'कट्टर ईमानदार' छवि को तोड़ा
कोई कहे या न कहे पिछले 11 सालों में केजरीवाल खुद को कट्टर ईमानदार बताते रहे. चुनाव के दौरान पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के आवास को रिमॉड्यूल कराने में हुए सरकारी खर्च का मुद्दा जोर-शोर से उठा. बीजेपी ने इसे जनता की कमाई पर केजरीवाल का शीशमहल बताया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी भाषणों, संसद में दिये बयानों में ये मुद्दा उठाकर केजरीवाल की कट्टर ईमानदार की छवि को तोड़ दिया. उन्होंने ये मैसेज दिया कि 'सादगी' और 'ईमानदारी' का ताना-बाना बुनकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी भी दूसरी पार्टियों जैसी ही है. जिसे जनता से नहीं बल्कि अपनी सुख सुविधा से मतलब है.
बीजेपी ने "शीशमहल" को चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनाया, खासकर केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए. यह उनकी "आम आदमी" की छवि के खिलाफ एक नैरेटिव सेट करने का प्रयास था. बीजेपी ने इसे भ्रष्टाचार और जनता के पैसे के दुरुपयोग के प्रतीक के रूप में पेश किया, खासकर उन लोगों को जो केजरीवाल की सादगी पर विश्वास करते थे.
दिल्ली में चुनाव से महज एक दिन पहले पीएम मोदी ने संसद में कहा कि उनकी सरकार ने लाखों करोड़ रुपये बचाकर इसका इस्तेमाल देश बनाने में किया, शीश महल बनाने में नहीं. दिल्ली की रैली में पीएम मोदी ने कहा कि वह भी अपने लिए शीशमहल बना सकते थे लेकिन उनका सपना गरीबों के लिए पक्का मकान बनाने का था.
3.यमुना प्रदूषण पर जनता का नैरेटिव चेंज किया
दिल्ली चुनाव में राजधानी की लाइफलाइन रही यमुना नहीं के प्रदूषण पर घनघोर हंगामा हुआ. केजरीवाल ने कई चुनावों में यमुना को स्वच्छ बनाने का वादा किया था. उन्होंने कहा था कि वे यमुना को डुबकी लगाने लायक स्वच्छ बना देंगे लेकिन वे इस फ्रंट पर कामयाब नहीं हो सके. इस चुनाव में इस मुद्दे पर काफी आरोप-प्रत्यारोप हुए.
मतदाता जागरूकता अभियानों में, यमुना की सफाई एक प्रमुख विषय था. स्थानीय समूहों, NGOs, और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को इस मुद्दे के प्रति सचेत किया, जिससे यह चुनावी बहस का एक केंद्रीय बिंदु बन गया.
चुनाव के आखिर में केजरीवाल ने यमुना के प्रदूषण के लिए हरियाणा (जहां बीजेपी सत्ता में है) से आने वाले जहरीले पानी के लिए BJP को जिम्मेदार ठहराया. अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि हरियाणा सरकार ने जानबूझकर यमुना को प्रदूषित किया है.
सीएम आतिशी ने तो यहां तक कहा कि चुनाव में हार के डर से भाजपा दिल्ली वालों को प्यासा मारना चाहती है. भाजपा अपनी हरियाणा सरकार से यमुना नदी में जहरीला पानी छुड़वा रही है.
लेकिन जनता ने AAP के इस नैरेटिव को नहीं माना. वहीं बीजेपी ने ये मैसेज दिया कि अगर केंद्र, हरियाणा और दिल्ली तीनों ही जगह बीजेपी की सरकार रही तो यमुना को मिशन स्तर पर साफ किया जाएगा. अब बीजेपी के सामने इस मिशन पर सफल उतरने की चुनौती है.
4.साफ पानी जैसा जनता से सीधा जुड़ा मुद्दा उठाया
आम आदमी पार्टी दिल्ली वालों को मुफ्त पानी तो दे रही थी. लेकिन ये मुफ्त का पानी पीने लायक था भी? दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब भुनाया. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने घर में सप्लाई होने वाले सीवर मिश्रित पानी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं. आप नेताओं से सवाल पूछे.
केजरीवाल गंदे पानी पर दिल्ली वालों के गुस्से का जवाब नहीं दे सके. उल्टा उन्होंने बीजेपी की हरियाणा सरकार पर ऐसा आरोप लगाया कि दिल्ली का चुनाव प्रचार उबलने लगा.
केजरीवाल ने 27 जनवरी को एक रैली में कहा,'लोगों को पानी से वंचित करना, इससे बड़ा पाप कुछ भी नहीं है. भाजपा अपनी गंदी राजनीति से दिल्ली की जनता को प्यासा छोड़ना चाह रही है. वे हरियाणा से भेजे जा रहे पानी में जहर मिला रहे हैं."
उन्होंने आगे कहा था,'यह प्रदूषित पानी इतना जहरीला है कि इसे दिल्ली में मौजूद वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से ट्रीट नहीं किया जा सकता है. भाजपा दिल्लीवासियों की सामूहिक हत्या करना चाहती है. पर हम ऐसा नहीं होने देंगे.'
ये बेहद गंभीर आरोप था. चुनाव नतीजे बताते हैं कि लोग केजरीवाल की इस सफाई से भड़क गए. क्योंकि साफ पानी सप्लाई करने के लिए केजरीवाल के पास 11 साल थे. लेकिन दिल्ली वालों को साफ पानी नहीं मिल पाया.
5.AAP के दिग्गजों को घर में घेरा
इस चुनाव में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं को सांस लेने का मौका भी नहीं दिया और अपने दिग्गज नेता उनके खिलाफ उतारे. बीजेपी ने पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ परवेश वर्मा को उतारा, सीएम आतिशी के खिलाफ रमेश बिधूड़ी को टिकट दिया. बीजेपी ने इन नेताओं की लोकप्रियता और राजनीतिक अनुभव का इस्तेमाल AAP के खिलाफ किया.
बीजेपी की किलेबंदी की वजह से मनीष सिसोदिया को भी अपनी सीट बदलनी पड़ी.
BJP की किलेबंदी की वजह से AAP के बड़े नेताओं का ज्यादा ध्यान अपनी ही सीट पर रहा. वे दिल्ली की दूसरी सीटों पर प्रचार करने तो गए मगर वहां वे माइक्रो मैनेजमेंट नहीं कर सके.
6.बिना सीएम के चेहरे के फाइट
बीजेपी के चुनावी तरकश में ये एक ऐसा तीर है जिसका सफल इस्तेमाल बीजेपी कई चुनावों में करती आई है. चुनावी गुटबाजी, जातीय गोलबंदी, क्षेत्रीय पहचान से पैदा होने वाली दिक्कतों को देखते हुए बीजेपी पिछले कुछ चुनावों में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं करती आ रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने ऐसा ही किया.
इसका नतीजा ये हुआ कि दिल्ली के बीजेपी के वोटर और समर्थक पूर्वांचली, पहाड़ी, पंजाबी में नहीं बंटे. उन्होंने एकमुश्त होकर बीजेपी को वोट किया. सीएम कैंडिटेट न होने की वजह से सवर्ण, दलित, ओबीसी, बनिया जैसे गैरजरूरी बहस से बीजेपी बच गई. उसका सारा फोकस आम आदमी पार्टी के नैरेटिव को फेल करने में था. और बीजेपी इस फॉर्मूले में कामयाब भी रही.
बीजेपी इस फॉर्मूले पर हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में चुनाव जीत चुकी है.
7.मुस्लिम बहुल सीटों पर समीकरण काम आए
सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, बाबरपुर, गांधीनगर, सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, किराड़ी, जंगपुरा, ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक संख्या में हैं. इन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार थे, AAP के उम्मीदवार थे. मुस्तफाबाद और ओखला पर तो AIMIM ने भी अपने उम्मीदवार उतारे. इन सीटों के नतीजे/रुझान बताते हैं कि यहां के समीकरण ऐसे बने कि बीजेपी को फायदा हुआ.
मुस्तफाबाद का उदाहरण लें. यहां से बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट ने 17578 वोट से आम आदमी पार्टी के अदील अहमद खान को हराया है. वे दूसरे नंबर पर रहे हैं. उन्हें 67637 वोट मिले हैं. तीसरे नंबर पर दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन हैं. उसे 33474 वोट मिले हैं. कांग्रेस के उम्मीदवार अली मेहदी को 11763 वोट मिले हैं.
जंगपुरा की बात करें तो ये भी मुस्लिम बहुल सीट है. इस सीट पर बीजेपी के तरविंदर सिंह मारवाह ने मनीष सिसोदिया को हराया है. यहां सिसोदिया महज 675 वोटों से हारे हैं. मनीष सिसोदिया को 38184 वोट मिले हैं. इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार फरहाद सूरी को 7350 हजार वोट मिले हैं.
AAP का अभ्युदय
बता दें कि 2013 में जब दिल्ली का विधानसभा चुनाव हुआ तो बीजेपी को बड़ी उम्मीद थी. लेकिन बीजेपी इस चुनाव में 31 सीटों पर आकर अटक गई. फिर 2015 की चुनावी रणभूमि रोमांच और टकराव का जबर्दस्त मिश्रण लिए हुई थी. 2014 में नरेंद्र मोदी देश में चुनावी चमत्कार करते हुए केंद्र की सत्ता पर काबिज हो चुके थे. बीजेपी को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिला था. इधर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता आसमान पर थी.
2015 की टक्कर में केजरीवाल ने जादू किया और 70 में 67 सीटें जीतकर AAP के प्रचंड आमद का नगाड़ा बजा दिया. बीजेपी हक्की-बक्की थी. बीजेपी तरसती रह गई. पांच साल बाद 2020 में यही कहानी रिपीट हुई. 2019 में पीएम मोदी ने केंद्र में भले ही अपना करिश्मा दोहराया लेकिन 2020 में दिल्ली में बीजेपी एक बार फिर मनमसोस कर रह गई. इस चुनाव में भी AAP ने 62 सीटें आलोचकों की जुबान बंद और बीजेपी-कांग्रेस को निरुत्तर कर दिया.
लेकिन 11 सालों बाद AAP का अभिमान निस्तेज हो गया है.