scorecardresearch
 

दिल्ली विधानसभा चुनाव पर कैसे असर डालेगी आंबेडकर की विरासत पर चल रही सियासत!

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही आंबेडकर के कथित अनादर की भावना का सियासी लाभ उठाने के लिए उत्सुक हैं. दोनों ही दल खुद को दलित अधिकारों और कल्याण के चैंपियन के रूप में पेश कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि शाह का बयान इन आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों को जीतने में सहायक हो सकता है.

Advertisement
X
दिल्ली चुनाव से पहले आंबेडकर बने सियासी मुद्दा
दिल्ली चुनाव से पहले आंबेडकर बने सियासी मुद्दा

गृहमंत्री अमित शाह द्वारा संसद में डॉ. भीमराव आंबेडकर पर दिए गए बयान को ना केवल कांग्रेस बल्कि आम आदमी पार्टी ने भी प्रमुखता से उठाना शुरू कर दिया है. फरवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने इसे बाबा साहब का अपमान बताते हुए चुनावी मुद्दा बनाने की बात कही है.

Advertisement

यह मुद्दा दिल्ली की तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों- AAP, कांग्रेस और भाजपा - के लिए केंद्र बिंदु बन गया. आंबेडकर की विरासत को लेकर आरोप-प्रत्यारोप से चुनावी चर्चा प्रभावित होने की उम्मीद है, खासकर दिल्ली की कुल 70 में से उन 12 सीटों पर जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.

दलितों के बीच अहम मुद्दा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बीते 26 साल से बीजेपी दिल्ली की सत्ता से दूर है और इस बार वह यहां सत्ता हासिल करने कि लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. जिस दलित वोट बैंक पर कभी कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था वो अब पूरी तरह से AAP की तरफ शिफ्ट हो चुका है. बीजेपी के लिए ऐसी विधानसभा सीटों पर प्रदर्शन को बेहतर करने की चुनौती है. दलितों के बीच पूज्यनीय डॉ. बीआर आंबेडकर समुदाय के सशक्तिकरण और अधिकारों के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं. इसलिए, उनके योगदान के प्रति किसी भी तरह की उपेक्षा की धारणा इस महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग को भाजपा से और दूर कर सकती है. साथ ही, भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों के बारे में कहती रही है कि वे आंबेडकर की विरासत का सम्मान करने के लिए कभी गंभीर नहीं रहे हैं.

Advertisement

यह भी पढ़ें: अमित शाह के अधूरे वीडियो क्लिप से आंबेडकर को लेकर कैसे हुई राजनीति गर्म

 कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही आंबेडकर के कथित अनादर की भावना का सियासी लाभ उठाने के लिए उत्सुक हैं. दोनों ही दल खुद को दलित अधिकारों और कल्याण के चैंपियन के रूप में पेश कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि शाह का बयान इन आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों को जीतने में सहायक हो सकता है. दिल्ली की सियासत में दलित समुदाय दिल्ली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

इन सीटों पर है सीधा असर

दिल्ली की महानगरीय प्रकृति को देखें तो इसमें दलितों की आबादी 16.7 प्रतिशत है. इस ताने-बाने में, कुछ क्षेत्र अपनी दलित आबादी के केंद्रित होने के कारण अलग अलग महत्व रखते हैं. उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सुल्तानपुरी विधानसभा क्षेत्र में 44 प्रतिशत मतदाता दलित हैं, जो इसे सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाला क्षेत्र बनाता है. इसके ठीक बगल में करोल बाग है, जहां लगभग 41 प्रतिशत मतदाता अनुसूचित जाति समुदाय के हैं. इसके अलावा, गोकलपुर, सीमापुरी, मंगोलपुरी, त्रिलोकपुरी और आंबेडकर नगर जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक में 30 प्रतिशत से अधिक दलित निवासी हैं, जो दिल्ली भर में उनकी पर्याप्त उपस्थिति को दर्शाता है.

दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां स्थानीय लोगों के अलावा प्रवासियों की संख्या भी ठीक-ठाक है और इसकी दलित आबादी में भी कई जातियां यहां रहती हैं जिनमें जाटव, बाल्मीकि, खटीक, रैगर, कोली, बैरवा और धोबी जैसी कई उपजातियां हैं. प्रत्येक की अलग-अलग सांस्कृतिक पहचान और क्षेत्रीय प्रभुत्व है. इनमें से, जाटव सबसे अधिक आबादी वाले समूह के रूप में सामने आते हैं, जो दिल्ली की दलित आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं. डॉ. बीआर आंबेडकर सभी दलित उप-समुदायों के लिए प्रेरणा के एक बड़े व्यक्तित्व हैं. हालांकि, उनका प्रभाव विशेष रूप से जाटवों के बीच गहरा है, जो शहरी क्षेत्रों में प्रमुख होने के अलावा, दिल्ली के ग्रामीण परिदृश्य में भी एक मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं.

Advertisement

यह भी पढ़ें: '...तो अमित शाह अपना असली बयान बता दें', बाबा साहेब विवाद पर बोले प्रकाश आंबेडकर

 पिछले 4 विधानसभा चुनावों में 12 रिजर्व सीटों का प्रदर्शन
पिछले चार विधानसभा चुनावों में 12 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के मतदान रुझानों का आंकलन करने पर यह दिखता है कि इन सीटों पर राजनीतिक बदलाव स्पष्ट रूप से होता रहा है. शुरुआत में, 2008 में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 12 में से 9 सीटें जीती थीं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सिर्फ़ दो सीटें जीतीं, और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक सीट पर कब्ज़ा किया था. इस दिखाता है कि कैसे ये सीटें कभी कांग्रेस का गढ़ रही थीं, वो भी तब जब आम आदमी पार्टी आस्तित्व में नहीं थी. 

2013 के विधानसभा चुनाव में जब आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय हुआ तो सियासी परिदृश्य नाटकीय रूप से बदलने लगा. AAP ने इन 12 सीटों में से 9 पर कब्ज़ा किया और यही एक बड़ा कारण था कि वह उस विधानसभा चुनाव में भाजपा के बाद दूसरे स्थान पर रही. भाजपा ने दो सीटों पर अपना कब्ज़ा बनाए रखा, लेकिन कांग्रेस पिछले कार्यकाल के दौरान 9 में से सिर्फ़ एक सीट बचा पाई. (ग्राफ़िक्स)

2015 के विधानसभा चुनावों ने AAP ने अपने वर्चस्व को और मजबूत कर लिया और पार्टी ने सभी 12 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करते हुए बंपर जीत हासिल कर ली. इस चुनाव ने अनुसूचित जाति के मतदाताओं को AAP की ओर निश्चित रूप से झुकाव का संकेत दिया, मुख्य रूप से केजरीवाल द्वारा किए गए मुफ़्त बिजली और पानी जैसे वादों के कारण.

Advertisement

यह भी पढ़ें: दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरेंगे वामपंथी दल, कांग्रेस-AAP से इंडिया गठबंधन में शामिल होने की अपील

2020 के चुनावों ने इस प्रवृत्ति को और मजबूत किया, जिसमें AAP ने एक बार फिर सभी 12 सीटें जीतीं. लगातार दो चुनावों में इस तरह के लगातार प्रदर्शन ने AAP की विशेष रूप से दलित मतदाताओं के बीच गहरी लोकप्रियता को दर्शाया. AAP की बढ़त मुख्य रूप से कांग्रेस के लिए नुकसान के लिए नुकसानदायक रही लेकिन साथ ही साथ भाजपा का महत्वपूर्ण दलित वोट बैंक भी साफ हो गया.

 बीजेपी की नजर इस वोट बैंक पर

चूंकि भाजपा अगले साल होने वाले चुनावों में AAP से सत्ता छीनने की कोशिश कर रही है, इसलिए दलित उसकी योजना में अहम मायने रखते हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दिल्ली में सत्ता हासिल करने के लिए एक ठोस प्रयास कर रही है, और उसकी नज़र 2025 के विधानसभा चुनावों पर है. पार्टी का लक्ष्य अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी (आप) को सत्ता से बेदखल करना है, जिसने लोकप्रिय सामाजिक और आर्थिक पहलों की बदौलत राजधानी में अपनी पकड़ बनाए रखी है. भाजपा चुनावी नतीजों को आकार देने में दलित मतदाताओं की अहम भूमिका को पहचानती है, इसलिए वह अपने पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिए इस समुदाय पर खास ध्यान केंद्रित कर रही है.

Advertisement

दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए, भाजपा  झुग्गी बस्तियों और जेजे कॉलोनियों को लक्षित कर लगातार कार्यक्रमों और डोर-टू-डोर कैंपने कर कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है. यह रणनीति इन समुदायों से सीधे जुड़ने, उनकी चिंताओं को दूर करने और भाजपा को AAP सरकार के लिए एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश को दर्शाती है. इस बीच, राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस भी दलितों का समर्थन पाने पूरी जुगत में लगी है. गांधी अपने अभियान भाषणों में संविधान के महत्व पर जोर दे रहे हैं, ताकि मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके.

यह भी पढ़ें: दिल्ली चुनाव: बीजेपी के सामने 'प्रॉब्लम ऑफ प्लेंटी', कई सीटों पर उम्मीदवार चयन में कंफ्यूजन

केजरीवाल इसलिए लोकप्रिय

हालांकि, भाजपा और कांग्रेस दोनों को एक कठिन लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें दलित समुदाय के बीच AAP के आधार को काफी हद तक खत्म करना होगा. केजरीवाल के प्रशासन ने अपनी लक्षित योजनाओं के कारण लोकप्रियता हासिल की है, जिसका उद्देश्य दलितों सहित हाशिए के समूहों की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है. इन पहलों ने AAP को कई मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बना दिया है, जो चुनावी लाभ कमाने की चाह रखने वाले किसी भी विपक्ष के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं.

Advertisement

जैसे-जैसे 2025 का दिल्ली विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, यह स्पष्ट है कि तीनों ही पार्टियां अनुसूचित जाति समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए जी तोड़ मेहनत करेगी. यह लड़ाई काफ़ी कड़ी होने वाली है, जिसमें प्रत्येक पार्टी एक-दूसरे को मात देने और जीत के लिए ज़रूरी वोट हासिल करने की कोशिश करेगी.

हरियाणा चुनावों में हुआ असर

इस साल की शुरुआत में हरियाणा विधानसभा चुनावों में, एक बदलाव देखा गया. जो दलित वोट परंपरागत रूप से कांग्रेस के प्रति वफादार था उसका झुकाव भाजपा की तरफ देखा गया.  यह बदलाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिससे उन्हें राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में मदद मिली. दिल्ली का सबसे करीबी पड़ोसी हरियाणा लंबे समय से ऐसा राज्य रहा है जहां दलित समुदाय चुनावी नतीजों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ऐतिहासिक रूप से, कांग्रेस पार्टी को इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति की आबादी का मजबूत समर्थन प्राप्त था, लेकिन इस साल के चुनावों ने परंपरा से हटकर एक बदलाव किया. भाजपा ने एकजुट मोर्चा पेश करके और विकास और समावेश पर जोर देकर कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी का फायदा उठाया. हरियाणा में अपनी सफलता से उत्साहित, भाजपा अब दिल्ली पर नज़र गड़ाए हुए है, जिसका लक्ष्य राष्ट्रीय राजधानी में अपने लंबे समय से चले आ रहे दलितों के संकट को दूर करना है.

Live TV

Advertisement
Advertisement