दुनियभार में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. इसका प्रभाव दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल रहा है. तमाम राजनीतिक पार्टियां AI जनरेटेड वीडियो का इस्तेमाल कर एक दूसरे पर निशाना साध रही हैं. इस सबके टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया है. उन्होंने AI से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को विकृत करने के बारे में चेतावनी दी है.
आजतक से बात करते हुए साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने डीपफेक वीडियो और गलत सूचना अभियानों जैसे AI-संचालित टूल्स के शोषण को रोकने के लिए नियामक मानदंडों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया. दुग्गल ने कहा, "हम दिल्ली चुनाव कैंपेन में AI के दुरुपयोग का चलन देख रहे हैं. डीपफेक वीडियो और झूठी जानकारी सहित टेक्नोलॉजी के इस दुरुपयोग को नियंत्रित करने वाले उचित मानदंडों की आवश्यकता है. टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है और वोटर्स में अक्सर नकली और वास्तविक जानकारी के बीच अंतर करने की क्षमता की कमी होती है. कुछ दल वोटर्स को प्रभावित करने और राजनीतिक दलों व नेताओं की छवि खराब करने के लिए जानबूझकर मनोवैज्ञानिक टूल्स के रूप में AI का इस्तेमाल कर रहे हैं."
कड़े नियम बनाए चुनाव आयोग: एक्सपर्ट
दुग्गल ने आगे जोर देकर कहा कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को चुनावों के दौरान तकनीक के साथ छेड़छाड़ को रोकने के लिए कड़े नियम बनाने चाहिए. उन्होंने कहा, "स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए हमें AI के दुरुपयोग को संबोधित करने के लिए मजबूत दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, खासकर विश्वसनीय लेकिन झूठे आख्यान बनाने की इसकी क्षमता के मामले में."
AI वीडियो और प्रोपेगेंडा
बता दें कि दिल्ली चुनाव में AI का इस्तेमाल तेजी से देखने को मिल रहा है. राजनीतिक दलों ने इसका इस्तेमाल उच्च प्रभाव वाले अभियान बनाने के लिए किया है. इसके साथ ही इससे डीपफेक वीडियो और भ्रामक कंटेंट में भी तेजी आई है. हाल ही में, AAP ने केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को दिखाते हुए AI द्वारा बनाया गया एक वीडियो जारी किया. ये वीडियो वायरल हो गया और इसने चुनाव प्रचार में नैतिक सीमाओं पर बहस छेड़ दी.
इसी तरह, भाजपा भी AAP के शासन पर हमला करने वाले टारगेट विज्ञापन और पोस्टर तैयार करने के लिए AI-संचालित रणनीतियों का इस्तेमाल कर रही है. चूंकि ये रणनीतियां प्रभावी हैं, ऐसे में इनके द्वारा गलत सूचना फैलाने और वोटर्स को ध्रुवीकृत करने जैसे जोखिम शामिल हैं.
टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया: दो धारी तलवार
ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म चुनावी गतिविधियों के केंद्र बन गए हैं, जिसमें AI उपकरण केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं. वायरल हैशटैग, मीम्स और लक्षित विज्ञापन पहले की तुलना में मतदाताओं की राय को आकार दे रहे हैं. भाजपा के #KejriwalFailsDelhi और AAP के #AAPKaManifesto ने डिजिटल स्पेस पर अपना दबदबा बनाया है, जिससे लाखों यूजर्स जुड़े हैं.
IAMAI की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में भारत में सबसे अधिक इंटरनेट इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में यहां डिजिटल कैंपेन चलाना सबसे अधिक प्रभावी हो सकता है. हालांकि, टेक्नोलॉजी अपनाने की तेजी में इस शहर में तथ्यों से छेड़छाड़ करना भी उतना ही आसान हो गया है.
एक्सपर्ट का मानना है कि विनियामक हस्तक्षेप के बिना AI-संचालित कैंपेन लोकतंत्र को कमजोर कर सकते हैं. लॉ एक्सपर्ट दुग्गल ने चेतावनी देते हुए कहा, "इनोवेशन और मैनिपुलेशन के बीच एक महीन लाइन है. ECI को यह सुनिश्चित करने के लिए तेजी से काम करना चाहिए कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल जिम्मेदारी से किया जाए, जिससे चुनावों की अखंडता खतरे में पड़े."