
दिल्ली के चुनाव में वोटिंग के बाद भले नतीजों की तस्वीर 8 फरवरी को साफ होगी, लेकिन एक बात साफ है कि दिल्ली में जो होगा वो इतिहास ही होगा. फिर चाहे वो अरविंद केजरीवाल फिर से जीतें या फिर बीजेपी जीते. नतीजों से पहले अलग-अलग 11 एग्जिट पोल आए हैं. 9 एग्जिट पोल्स में बीजेपी को बहुमत तो 2 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का अनुमान है. इनके बीच सबसे पहले इन संभावनाओं को एक-एक कर समझते हैं...
अगर केजरीवाल की सरकार नहीं बनी तो क्या होगा?
तमाम एजेंसियों के एग्जिट पोल के आधार पर मानें कि अगर अरविंद केजरीवाल की सरकार नहीं बनती है तो क्या होगा? जिस दिल्ली से आम आदमी पार्टी निकली है, जिस दिल्ली से निकले अपनी सरकार के म़ॉडल को पूरे देश में केजरीवाल सर्वश्रेष्ठ बताते रहे हैं, उसी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार होगी. यानी जहां से पार्टी का बीज फूटा, वहीं हार का झटका पार्टी के लिए बहुत बड़ा होगा. अगर आम आदमी पार्टी हारी तो केजरीवाल के लिए एक बड़ा व्यक्तिगत झटका होगा, जिससे राजनीति में उनके भविष्य को लेकर सवाल उठ सकते हैं. आम आदमी पार्टी की तरफ से चुनाव प्रक्रिया पर सियासी सवाल उठाया जाएगा. बीजेपी की जीत को फर्जी वोटर के दम पर मिली जीत बताया जा सकता है, क्योंकि ऐसे आरोप पहले से आम आदमी पार्टी लगाती आ रही है. विपक्षी दल मिलकर ये बहस तेज कर सकते हैं कि क्या नए फर्जी वोट जोड़कर चुनाव में जीत हासिल की जा सकती है.
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इंडिया ब्लॉक के साथियों की तरफ से कांग्रेस पर सवाल होगा कि कांग्रेस के वोट काटने से बीजेपी को फायदा मिला है. बीजेपी इस बात को प्रचारित करेगी कि घोटाले के जिन आरोपों पर अभी अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया जमानत पर हैं, उन्हें चुनावी अदालत में जनता ने दोषी मान लिया है. कहा जाएगा कि घोटाले के आरोपों पर जनता की अदालत का फैसला आ चुका है. राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के विस्तार को लेकर अरविंद केजरीवाल की योजना को झटका लगेगा. लिहाजा पंजाब में अब कांग्रेस केजरीवाल को घेरने के लिए मजबूती से लग जाएगी. जो केजरीवाल इंडिया ब्लॉक में गैर कांग्रेसी दल जैसे शरद पवार की पार्टी, उद्धव ठाकरे की पार्टी, अखिलेश यादव की पार्टी, ममता बनर्जी के दल के पसंदीदा रहे हैं, केजरीवाल के उस गठजोड़ को झटका लगेगा.
(नोट: 2025 का आंकड़ा शाम 5 बजे तक का है)
अगर AAP जीती तो क्या होगा?
आम आदमी पार्टी फिर से चुनाव जीतती है, तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता होंगे और लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर दिल्ली में चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को हराने वाले नेता बनेंगे. अगर आम आदमी पार्टी जीतती है तो 2014 से अब तक देश में बीजेपी को किसी राज्य में लगातार तीन बार हराने वाले पहले नेता केजरीवाल होंगे. वह इस बात को जमकर प्रचारित करेंगे कि घोटाले के आरोप सियासी साजिश हैं और जनता की अदालत ने उन आरोपों को खारिज करके फैसला सुनाया है. पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर और व्यापक बनाने के प्लान में मजबूती मिलेगी. गुजरात, पंजाब, दिल्ली के बाद केजरीवाल दूसरे राज्यों में विस्तार पर काम करने की ताकत हासिल कर लेंगे.
इंडिया ब्लॉक के भीतर गैर कांग्रेसी दल फिर केजरीवाल के पक्ष में और मजबूती से जुड़ेंगे और इस बात को स्थापित कर देंगे कि जिसे बीजेपी रेवड़ी राजनीति कहती है, उसके सबसे बड़े खिलाड़ी अरविंद केजरीवाल हैं. इसके साथ ही कांग्रेस के लिए कठिन वक्त और कठिनाई दूसरे राज्यों में बढ़ने लगेगी. क्षेत्रीय दल बीजेपी के सामने कांग्रेस को कमजोर करके ही आंकेंगे. जैसे आगे बिहार में चुनाव है, तो वहां कांग्रेस की गठबंधन में सीट मांगने में मोल-भाव की ताकत में कमी रहेगी.
अगर नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए तो क्या होगा?
अगर दिल्ली की जनता ने इस बार बदलाव के लिए वोट दिया औऱ 8 फरवरी को नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए तो क्या होगा? इसे ऐसे समझिए कि अगर बीजेपी दिल्ली जीतती है तो 21वीं सदी में पहली बार दिल्ली में बीजेपी की सरकार होगी. 27 साल बाद दिल्ली विधानसभा में बीजेपी की वापसी होगी. दिल्ली में बीजेपी की पहली बार डबल इंजन सरकार होगी. लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, और अब दिल्ली यानी तीन राज्यों में बीजेपी की बड़ी जीत होगी. 2024 लोकसभा चुनाव में देश में सीटें घटने पर ब्रांड मोदी पर जो घेराव विपक्ष करता रहा, अब वो कमजोर होगा. यानी ब्रांड मोदी को मजबूती मिलेगी.
ये माना जाता रहा है कि कांग्रेस को तो बीजेपी हरा लेती है, लेकिन मजबूत क्षेत्रीय दलों के सामने बीजेपी की नहीं चलती. ऐसे में दिल्ली में बीजेपी की जीत हुई तो फिर ये नैरेटिव महाराष्ट्र के बाद ध्वस्त माना जाएगा, क्योंकि महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दलों को हराने के बाद दिल्ली में अकेले अपने दम पर रीजनल पार्टी को बीजेपी हरा देगी, तो क्षेत्रीय दलों के सामने भी बीजेपी मजबूत मानी जाएगी. लगातार दो बार देश जीतने के बाद भी दिल्ली में मिलती हार का सिलसिला टूट जाएगा. साल के अंत में बिहार चुनाव होना है, बीजेपी को उसके लिए अभी से ताकत मिलेगी. सीट बारगेनिंग में बीजेपी को जेडीयू के सामने मजबूती मिलेगी. जैसे कहा जाता है कि लोहे को लोहा काटता है ठीक उसी तरह फिर सियासी कहावत बन जाएगी कि रेवड़ी को रेवड़ी ही काटती है, यानी रेवड़ी कल्चर मॉडल को औऱ बढ़ावा मिलेगा.
अगर बीजेपी के हाथ से चुनाव फिसला तो क्या होगा?
मतदान के बाद अगर नतीजों में अबकी बार भी बीजेपी की जीत नहीं हो पाई तो क्या होगा? अगर बीजेपी हारी तो लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव और दिल्ली की सातों लोकसभा सीट जीतकर भी दिल्ली दूर रह जाएगी. केजरीवाल बताएंगे कि नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने की सबसे बड़ी ताकत उन्हीं के पास है. महाराष्ट्र-हरियाणा की बीजेपी की जीत को विपक्ष धांधली से मिली जीत कहने लग जाएगा. ये कहा जाएगा कि कांग्रेस को बीजेपी हरा लेती है, क्षेत्रीय दलों के सामने बीजेपी के लिए कठिनाई होती है. जनता को बीजेपी से ज्यादा केजरीवाल की रेवड़ी पसंद है. कहा जाएगा कि जनता वादे पर नहीं, बल्कि जो पहले से मुफ्त में मिलता आ रहा है, उस पर ज्यादा भरोसा करती है अगर बीजेपी अबकी भी नहीं जीत पाई तो इसका मतलब होगा कि अरविंद केजरीवाल पर आम आदमी वाला विश्वास जनता का अब भी कायम है.
चुनाव कोई भी जीते, जनता को क्या मिलेगा?
8 फरवरी को बीजेपी की जीत होगी या दिल्ली में फिर केजरीवाल जीतेंगे, इसका फैसला जनता ईवीएम में दर्ज कर चुकी है. इस फैसले से ये भी तय होगा कि जनता को क्या मिला. दिल्ली का चुनाव इस बार ये बता रहा है कि जनता को मुफ्त वाली रेवड़ी मिलेगी ही चाहे कोई भी जीते. दिल्ली का चुनाव इस बार ये भी बता रहा है कि मिडिल क्लास नागरिक जो लंबे वक्त तक सीधा फायदा सरकार से नहीं पाता रहा, फिलहाल वो भी अब वोटबैंक की तरह देखा जाने लगा है.
वोटिंग घटने-बढ़ने का क्या असर?
एक सवाल ये भी है कि क्या वोट घटने-बढ़ने से कुछ बदलता है. राजनीतिक विश्लेषकों का ये मानना रहा है कि अगर वोटिंग ज्यादा होती है, तो जनता परिवर्तन सोचती है, वोटिंग घटती है तो बदलाव की गुंजाइश कम होने का दावा होता है, लेकिन दिल्ली के मामले में क्या यही फॉर्मूला चल सकता है? सारे चुनावों को एकसाथ देखें तो 1993 के विधानसभा चुनाव में 61 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था. सरकार बीजेपी की बनी थी. 5 साल बाद 1998 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में 12 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग घट गई थी. औऱ तब सत्ता परिवर्तन हुआ था, कांग्रेस की सरकार आई थी. 2003 के चुनाव में दिल्ली में देखा गया कि जनता ने ज्यादा मतदान किया. करीब साढ़े चार फीसदी वोटिंग हुई थी. शीला दीक्षित की सरकार फिर से बनी थी. 2008 में लगातार तीसरी बार वोटिंग बढ़कर हुई औऱ फिर से कांग्रेस की ही सरकार दिल्ली में बनी थी. 2013 के चुनाव में जनता ने 2008 के मुकाबले 8 प्रतिशत से ज्यादा मतदान किया, लेकिन कांग्रेस की हार हुई. हंग असेंबली नतीजों में सामने आई. ये पहला चुनाव था, जब अरविंद केजरीवाल पार्टी बनाकर उतरे थे. 2015 में फिर चुनाव हुए तो अब तक का सबसे ज्यादा मतदान देखने को मिला. वोटिंग बढ़ी तो अरविंद केजरीवाल को रिकॉर्ड बहुमत मिला. 2020 में फिर वोट घटा, 2015 के मुकाबले तब साढ़े चार फीसदी वोटर कम निकले, लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी की सरकार बनी.
इस बार कितनी वोटिंग हुई?
अब आज के मतदान का हिसाब देखिए. 2020 के मुकाबले अबकी बार पूरा वोटिंग डेटा तो सामने नहीं आया है, लेकिन जो जानकारी चुनाव आयोग ने दी है, उसके मुताबिक 60.5 फीसदी मतदान हुआ है, जो कि जो कि पिछले चुनाव के मतदान प्रतिशत से 2 फीसदी कम है. अबकी बार दिल्ली में हुआ. यानी 2 प्रतिशत मतदान कम हुआ है. वोटिंग घटी तो अब क्या होगा? ये कहना अभी कठिन है, क्योंकि दिल्ली में कम और ज्यादा वोटिंग के आधार पर सही नतीजों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.