कांग्रेस के दिग्गज प्रचारक राहुल गांधी के चुनावी मैदान में उतरने से न केवल दिल्ली के चुनावी रण में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं, बल्कि इससे गठबंधन की रणनीति भी गड़बड़ा गई है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोमवार को सीलमपुर रैली में AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी करके कांग्रेस के कुछ नेताओं को भी चौंका दिया, जिन्होंने उनके साथ मंच साझा किया था.
राहुल गांधी ने कहा, "मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों एक जैसे हैं, वे देश के लोगों से झूठे वादे करते हैं."
उन्होंने केजरीवाल की तुलना मोदी से की और भ्रष्टाचार, शासन और जाति जनगणना पर चुप्पी को लेकर केजरीवाल पर हमला किया. इसके साथ ही अब लोकसभा में AAP के साथ हुए 'आधे-अधूरे' गठबंधन का अंत हो गया, जो शायद कभी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया. हालांकि वे शुरू में अस्वाभाविक सहयोगी थे, लेकिन इस नतीजे का विपक्षी एकता पर असर पड़ सकता है.
अब सवाल उठता है कि क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए एक साथ आए विपक्षी महागठबंधन के लिए विनाशकारी साबित होगा? क्या यह उस महागठबंधन का अंत है? क्या INDIA ब्लॉक का टूटना अपरिहार्य है और क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव इस संभावित योजना में उत्प्रेरक मात्र हैं?
गुस्से में AAP ने भी किया पलटवार
राहुल गांधी के बयान के बाद AAP ने भी पलटवार करने में देर नहीं लगाई और अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस नेता को जवाब देते हुए पहला हमला बोला. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, "राहुल गांधी ने आज एक रैली की और मुझ पर अपशब्दों की बौछार की. राहुल गांधी कांग्रेस को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और मैं भारत को बचाने की कोशिश कर रहा हूं."
दिल्ली चुनावों में राहुल गांधी के बयान के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया. आप के अन्य नेता भी कांग्रेस पार्टी को कोसने में जुट गए. एक समय था जब सोनिया गांधी एकजुटता दिखाते हुए आप सांसद संजय सिंह से मिलने आई थीं, जब उन्हें उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया था और वे संसद के गेट पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन आज वही आप नेता कांग्रेस नेतृत्व पर निशाना साध रहे हैं.
संजय सिंह ने कहा, "राहुल गांधी झूठ का प्रचार कर रहे हैं. हमने हमेशा संसद से लेकर सड़क तक अडानी मुद्दे पर बात की है. अरविंद केजरीवाल को राहुल गांधी से सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. वास्तव में, अगर केजरीवाल कुछ कहते हैं तो भाजपा राहुल गांधी का बचाव करती है... वे एक ही हैं."
INDIA ब्लॉक में दरार?
दिल्ली में चल रहे राजनीतिक ‘दंगल’ के झटके महाराष्ट्र में भी महसूस किए गए, जहां एमवीए में दरारें पहले से ही चौड़ी हो रही हैं. स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं और पार्टियों को यह तय करना होगा कि उन्हें एकजुट होना है या नहीं?
राहुल गांधी द्वारा आरएसएस की लगातार आलोचना की पृष्ठभूमि में, एनसीपी के संरक्षक शरद पवार ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत में आरएसएस की भूमिका की प्रशंसा की. शीतकालीन सत्र के दौरान पीएम मोदी के साथ उनकी मुलाकात ने एनसीपी गुटों के फिर से एकजुट होने की अटकलों को हवा दे दी है.
महाराष्ट्र के निकाय चुनावों के मद्देनजर शरद पवार आप-कांग्रेस के बीच चल रही खींचतान को लेकर अधिक सतर्क हैं. उन्होंने कहा, "जब INDIA ब्लॉक बना था, तब चर्चा केवल राष्ट्रीय मुद्दों और चुनावों के बारे में थी. स्थानीय निकाय चुनावों या राज्य विधानसभा चुनावों के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई." हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि एमवीए जल्द ही बैठक कर आगामी मुकाबले में आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श करेगा.
वहीं एमवीए के दूसरे सहयोगी भी हैं जो अलग ही सुर में बोल रहे हैं. शिवसेना (यूबीटी) ने विधानसभा चुनावों में समर्थन के लिए कांग्रेस के बजाय AAP को चुनने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. साझेदारों ने अक्सर बढ़ते अंतर और भ्रम के लिए कांग्रेस पर संचार की कमी का आरोप लगाया है. संजय राउत ने चेतावनी देते हुए कहा, "हमें सभी को कभी-कभी समझौता करने की ज़रूरत होती है. जब हम एनडीए के साथ थे, तब सभी को साथ लेकर चलना बीजेपी की ज़िम्मेदारी थी और INDIA ब्लॉक में यह कांग्रेस की जिम्मेदारी है. लगातार संवाद होना चाहिए अन्यथा गठबंधन लंबे समय तक नहीं टिकते."
कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं
चाहे आरएसएस पर हमला करने का मुद्दा हो या ईवीएम का, गठबंधन के सहयोगी दलों ने कांग्रेस के प्रति अपना विरोध जताया है. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ईवीएम पर कांग्रेस से अलग राय रखने वाली पहली पार्टियों में से एक थी. सरकार गठन के बाद उमर अब्दुल्ला सरकार केंद्र के साथ मिलकर काम कर रही है, जबकि सीएम उमर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
एक सवाल के जवाब में उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने साफ कहा कि हम दिल्ली से नहीं लड़ने जा रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला ने कहा, 'हम दोनों को मिलकर काम करने की जरूरत है. हमारा काम कश्मीर में चुनौतियों से पार पाना है. जिसे भी लड़ना है, वह जाकर लड़ सकता है, लेकिन हम दिल्ली (केंद्र सरकार) से नहीं लड़ना चाहते. हमारा भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन हम केंद्र सरकार से नहीं लड़ सकते.'
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पहले ही अरविंद केजरीवाल के लिए प्रचार कर चुके हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बरकरार है. उन्होंने कहा, 'INDIA ब्लॉक बरकरार है. INDIA ब्लॉक क्षेत्रीय दलों को भाजपा के खिलाफ इकट्ठा करने के लिए बनाया गया था. समाजवादी पार्टी अभी भी INDIA ब्लॉक को मजबूत करने की राह पर है. यह उन दलों के साथ खड़ी है जो भाजपा के खिलाफ लड़ रहे हैं.'
डगमगा रहा INDIA गठबंधन का अस्तित्व का कारण?
अब जब सीमाएं स्पष्ट रूप से परिभाषित की जा रही हैं, तो इस बात को समझने के लिए बहुत कुछ है, और सवाल यह है कि अगर गठबंधन में भागीदार क्षेत्रीय स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने लगते हैं, तो क्या इससे गठबंधन की मूल नींव और इसके अस्तित्व में आने का कारण डगमगा नहीं जाता?
सबसे तीखा हमला तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की ओर से हुआ है, जो अक्सर कांग्रेस से विपरीत लाइन पर चलती है. हाल ही में, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि वह INDIA ब्लॉक का नेतृत्व करने में सक्षम हैं. इसने रस्साकशी शुरू कर दी और राहुल गांधी के कई विरोधी भी इसमें शामिल हो गए.
टीएमसी ने सबसे पहले अरविंद केजरीवाल का समर्थन किया और महसूस किया कि कांग्रेस दिल्ली में आप के लिए खेल बिगाड़ रही है, ठीक वैसे ही जैसे उसने पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ करने की कोशिश की थी. टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद ने कहा, "आप 2013 से दिल्ली चला रही है और हम आप का समर्थन कर रहे हैं. कांग्रेस को समझना चाहिए कि उनका कोई अस्तित्व नहीं बचा है. भाजपा ने कांग्रेस के वोट खा लिए हैं और उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि दिल्ली में उनका कोई हित नहीं है."
क्षेत्रीय चुनावों में संगठन को पुनर्जीवित करने में जुटी कांग्रेस?
हालांकि, कांग्रेस के अंदरूनी इलाकों में राहुल गांधी के हालिया हमले से हलचल मची हुई है. कई नेताओं का मानना है कि क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की कीमत पर तरक्की की है और अब समय आ गया है कि क्षेत्रीय आकांक्षाओं को परिभाषित करने और कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए युद्ध की रेखाएं खींची जाएं.
इस बारे में पूछे जाने पर सोशल मीडिया प्रभारी सुप्रिया श्रीनेत ने साफ शब्दों में कहा, "हम अपने सहयोगियों का सम्मान करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि कई लोग कांग्रेस द्वारा खोई गई जमीन पर ही आगे बढ़े हैं और कांग्रेस कोई एनजीओ नहीं है. हम एक राजनीतिक संगठन हैं और लोकतंत्र के तहत अगर हमें अपनी जमीन वापस पाने की जरूरत महसूस होती है, तो हम खुद को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ भी करेंगे."
इन सभी बातों से यही समझ आता है कि शायद कांग्रेस को यह एहसास हो गया है कि इस साल बहुत कम चुनावी लड़ाइयां हैं, और अब समय आ गया है कि पार्टी विभिन्न राज्यों में अपने संगठन को पुनर्जीवित करने में निवेश करे, भले ही इससे गठबंधन के लिए और भी मुश्किलें खड़ी हो जाएं.
(राज्यों के ब्यूरो से इनपुट के साथ)