हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर बीजेपी को सत्ता की कमान सौंप दी है, जो अब राज्य में तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. हालांकि, एक अन्य प्रमुख घटना ये रही कि जेजेपी का राजनीतिक पटल से सफाया हो गया. 2019 के चुनाव में 'किंगमेकर' की भूमिका निभाने वाली जेजेपी को इस बार करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है.
जेजेपी के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, जो 2019 में उचाना कलां सीट से विजयी हुए थे, इस बार पांचवे स्थान पर खिसक गए हैं. मसलन, वह अपनी सीट तो बचाने से चूके ही, साथ ही उनके राजनीतिक भविष्य पर भी कुल्हाड़ी चल गया. यह हार जेजेपी के लिए किसी सदमे से कम नहीं है, जहां पार्टी पिछले चुनाव में 90 में 10 सीटें जीती थी और बीजेपी के साथ गठबंधन में सत्ता का मजा चखा.
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जेजेपी का उदय और बीजेपी के साथ गठबंधन
बीजेपी-जेजेपी का गठबंधन तब हुआ जब बीजेपी महज 40 सीटों पर सिमट गई और साधारण बहुमत से 6 सीटें दूर रह गई थी. जेजेपी 2018 में आईएनएलडी से विभाजन के बाद उभरी थी और 2019 में बीजेपी के साथ गठबंधन किया था.
हालांकि, इस साल मार्च में दोनों दलों के रास्ते अलग हो गए. बीजेपी ने कुर्सी लेवल पर बदलाव किया और मनोहर लाल की जगह नायब सिंह सैनी को सरकार की ड्राइविंग सीट पर बिठाया गया, जिसने पार्टी को चुनाव में बड़ा मुनाफा दिया है. कहा जाता है कि जेजेपी-बीजेपी के ब्रेकअप की असल वजह यही रही.
जेजेपी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त
2024 के लोकसभा चुनावों में, जेजेपी के सभी 10 उम्मीदवार कोई भी सीट जीतने में नाकाम रहे, और अधिकांश की जमानत तक जब्त हो गई. यहां तक कि जेजेपी का गठबंधन आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के साथ भी दलित मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सका. दुष्यंत चौटाला के लिए और बड़ी मुसीबत तब पैदा हो गई जब पार्टी के राज्य अध्यक्ष निशान सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद पार्टी के 10 में से 7 विधायक या तो कांग्रेस या बीजेपी में शामिल हो गए.
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दुष्यंत के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह
दुष्यंत चौटाला ने पिछले महीने यह पूर्वानुमान लगाया था कि विधानसभा चुनावों में कोई भी पार्टी 40 सीटों का आंकड़ा नहीं छू पाएगी, जो पूरी तरह गलत साबित हुआ. वह यह भी दावे करते देखे गए कि उनके बिना राज्य में सरकार ही नहीं बनेगी और इस मोर्चे पर भी वह फेल हो गए. दुष्यंत ने कभी हरी रंग के ट्रैक्टर पर संसद पहुंचकर किसानों के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया करते थे. यह उनकी राजनीतिक शैली का ही एक नमूना था, लेकिन इस बार के चुनावी प्रदर्शन ने