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हरियाणा की सियासत में दुष्यंत चौटाला अपने लिए नीतीश वाला रोल क्यों तलाश रहे हैं?

हरियाणा चुनाव में दुष्यंत चौटाला अपने लिए नीतीश कुमार वाला रोल तलाश रहे हैं. दुष्यंत ने दावा किया है कि इस बार ताला भी हमारा होगा और चाबी भी हमारी होगी. दुष्यंत के इस नए रोल के तलाश के पीछे क्या है और क्यों उन्हें हरियाणा में नीतीश कुमार वाले रोल की उम्मीद है?  

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Dushyant Chautala, Nitish Kumar
Dushyant Chautala, Nitish Kumar

हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने चुनाव बाद गठबंधन को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जिक्र करते हुए कहा है कि कौन मेरे पीछे आता है, किसको पता है? आज नीतीश कुमार 42 विधायकों के साथ बीजेपी संग मिलकर भी सरकार बना गए और आरजेडी के साथ भी. दुष्यंत चौटाला ने पंचायत आजतक हरियाणा के मंच से एक बात और कही, "राजनीति में उतार, चढ़ाव और बदलाव आखिरी क्षण तक होता है. इस बार मेरे सहयोगी चंद्रशेखर और हमारी जो जोड़ी है वो ताला भी हमारा होगा,चाबी भी हमारी होगी और अगर हमें किसी का हाथ या साथ चाहिए होगा तो देखेंगे."

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दुष्यंत चौटाला की इन बातों के भीतर दो बातें हैं. एक ये कि जेजेपी ने बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही दलों के साथ चुनाव बाद गठबंधन का विकल्प खुला रखा है और दूसरा ये दावा कि इस बार दुष्यंत किंगमेकर नहीं किंग बनेंगे. नीतीश कुमार और 42 सीटों के बावजूद उनकी अगुवाई वाली सरकार का जिक्र तो यही संकेत कर रहा है. अब सवाल है कि दुष्यंत हरियाणा में नीतीश वाला रोल तलाश रहे हैं तो क्यों? इसके पीछे कुछ आधार भी हैं या यह बस खयाली पुलाव भर ही है? 

दुष्यंत क्यों तलाश रहे नीतीश वाला रोल?

हरियाणा की राजनीति में राष्ट्रीय दलों के वर्चस्व की जगह हमेशा एक क्षेत्रीय ताकत रही है. खुद वह जिस चौटाला परिवार से आते हैं, उसी परिवार की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) भी हरियाणा में सरकार चला चुकी है. वर्षों तक हरियाणा की राजनीति कांग्रेस और आईएनएलडी के इर्द-गिर्द घूमती रही है. साल 2014 में बीजेपी के उभार के बाद आईएनएलडी कमजोर पड़ी.

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जेजेपी के गठन के बाद चुनावी लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस होती चली गई और कोर वोटर जाट पर भी पार्टी की पकड़ ढीली पड़ती चली गई. पिछले चुनाव में जेजेपी 10 सीटें जीतकर किंगमेकर के तौर पर उभरी थी. अब दुष्यंत नीतीश वाला रोल तलाश रहे हैं तो उसके पीछे यह भी एक मुख्य आधार है. इसे तीन पॉइंट में समझा जा सकता है.

1- जाट से आगे महिला-युवा पर फोकस

दुष्यंत चुनाव प्रचार के दौरान भी रोजगार में स्थानीय नागरिकों के लिए 75 फीसदी आरक्षण, पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण जैसे खट्टर सरकार के कदमों को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच ले जा रहे हैं. कार्यक्रम और मंच कोई भी हो, दुष्यंत अपनी और अपने गठबंधन सहयोगी एडवोकेट चंद्रशेखर की उम्र 36 साल है, ये बताना नहीं भूल रहे. जाहिर है दुष्यंत का फोकस हरियाणा में नीतीश की तरह महिला वोटबैंक में मजबूत जमीन बनाने के साथ ही खुद को युवाओं के नेता के तौर पर स्थापित करने पर है. 

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2- क्षेत्रीय विकल्प

हरियाणा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला बताया जा रहा है लेकिन सूबे में क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी सियासी जमीन उर्वर रही है. दुष्यंत चौटाला जिस आईएनएलडी को छोड़ जेजेपी बनाए हैं, वह भी सूबे में सरकार चला चुकी है. प्रदेश में हरियाणा जनता कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी से लेकर गोपाल कांडा और विनोद शर्मा की पार्टियों तक, बीजेपी-कांग्रेस से इतर राजनीतिक दलों के उम्मीदवार भी चुनाव जीतते रहे हैं. जेजेपी के गठन और जाट वोटबैंक पर पकड़ ढीली होने के बाद आईएनएलडी कमजोर हुई है और इस वजह से भी हो सकता है कि दुष्यंत को मजबूत क्षेत्रीय विकल्प की जमीन पर अपने लिए अवसर दिख रहा हो.

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3- कोड़ा-कुमारस्वामी चैप्टर

दुष्यंत चौटाला की उम्मीदों का एक आधार झारखंड और कर्नाटक चैप्टर भी हो सकते हैं. झारखंड में हंग असेंबली होने पर एक बार निर्दलीय मधु कोड़ा भी सीएम बन गए थे. वहीं, कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने बड़ी पार्टी होने के बावजूद जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को सीएम बना दिया था. बिहार में भी नीतीश की पार्टी ही सत्ता का फिलर है. समीकरण ऐसे हैं कि जेडीयू आरजेडी के साथ जाएगी तो उसकी सरकार बन जाए और एनडीए में आ जाए तो उसकी. नीतीश के सरकार का इंजन बने रहने के पीछे इस समीकरण का भी बड़ा रोल है.

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