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जम्मू-कश्मीर में 10 साल में पहली बार हो रहे विधानसभा के चुनाव, क्या पोलिंग बूथों पर उमड़ेगी वोटरों की भीड़?

जम्मू और कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद यह पहला चुनाव है. यह चुनाव लोकसभा चुनाव 2024 की उच्च मतदान प्रतिशत को दोहरा पाएगा या नहीं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा.

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पहले चरण में जिन 24 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 16 कश्मीर घाटी में और आठ जम्मू क्षेत्र में हैं। (फोटो: पीटीआई/फाइल)
पहले चरण में जिन 24 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 16 कश्मीर घाटी में और आठ जम्मू क्षेत्र में हैं। (फोटो: पीटीआई/फाइल)

लोकसभा चुनाव 2024 में जम्मू और कश्मीर ने 35 वर्षों में सबसे अधिक मतदान प्रतिशत देखा. अब एक दशक में पहली बार होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सवाल उठता है कि क्या इस केंद्र शासित प्रदेश के लोग आगामी चुनाव में उसी उत्साह के साथ मतदान करेंगे? 2024 का विधानसभा चुनाव अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर में पहला विधानसभा का चुनाव होगा, जिससे यह पता चलेगा कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में देखी गई उच्च मतदान दर बरकरार रहेगी या नहीं.  

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इतिहास पर अगर नजर डाला जाए तो कश्मीर में मतदान प्रतिशत में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता रहा है, लेकिन 2000 के दशक में इसमें तेज वृद्धि देखी गई. 2014 के चुनाव में अलगाववादी संगठनों के बहिष्कार के बावजूद 65.5 प्रतिशत मतदान हुआ था. विधानसभा चुनाव इस बात का संकेत हो सकता है कि क्या मतदाता चुनावी प्रक्रिया में पहले से अधिक विश्वास जता रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में बड़ी बढ़त हासिल की थी, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक मतदान के साथ उसने 25 सीटें जीती थीं, जबकि कभी प्रभावशाली रही नेशनल कांफ्रेंस का असर कम होता दिखा था. यह चुनाव क्षेत्र के राजनीतिक भविष्य को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण होगा.

क्यों है महत्वपूर्ण

यह चुनाव कश्मीर की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक अहम क्षण है. यह कई वर्षों की उथल-पुथल और विशेष दर्जे को खत्म किए जाने के बाद क्षेत्र की भविष्य की शासन व्यवस्था में संभावित स्थायी बदलाव को दर्शाता है.

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क्या कहते हैं आंकड़े 

जम्मू और कश्मीर के विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में भारी उतार-चढ़ाव रहा है. 1962 में मतदान लगभग 40 प्रतिशत था, जो 1987 तक बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया. यह राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि को दिखाता है. 1960 के दशक और शुरुआती 1970 के दशक में कांग्रेस सत्ता में रही, जबकि 1980 के दशक में नेशनल कांफ्रेंस का दबदबा रहा. 2002 में पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के दौरान मतदान 61 प्रतिशत से अधिक रहा. 2014 में 65.5 प्रतिशत मतदान के साथ पीडीपी ने नेशनल कांफ्रेंस को सत्ता से बाहर कर दिया.  जम्मू-कश्मीर में मतदाताओं की भागीदारी लगातार बढ़ी है, जिसमें महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिए हैं.

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गहराई से देखने पर

जम्मू और कश्मीर के लिए 2014 का विधानसभा चुनाव राज्य के लिए एक अहम मोड़ था. अलगाववादी समूहों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद 66 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ. पहले चरण में उत्तरी कश्मीर ने 70 प्रतिशत से अधिक मतदान के साथ शुरुआत की. अंत तक 46 में से 30 निर्वाचन क्षेत्रों में 50 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ और 13 निर्वाचन क्षेत्रों में यह 70 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया. यहां तक कि केंद्रीय कश्मीर, जहां ऐतिहासिक रूप से मतदान कम रहा है, में भी सुधार देखा गया.

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2014 के चुनाव में जनता ने खंडित जनादेश दिया था, जिसमें पीडीपी ने 28 सीटें तो जीतीं लेकिन वह बहुमत से चूक गई. भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी, एनसी ने 15 सीटें जीतीं, और कांग्रेस ने 12 सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा ने 23 प्रतिशत मतों के साथ बढ़त बनाई. उसके बाद पीडीपी ने लगभग 23 प्रतिशत, एनसी ने 21 प्रतिशत और कांग्रेस ने 18 प्रतिशत मत हासिल किए.

बड़ी तस्वीर

2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल गया है. एक दशक में होने वाले पहले विधानसभा चुनाव क्षेत्र की भविष्य की शासन व्यवस्था को परिभाषित करेंगे. 

कश्मीर की जनसंख्या का 96 प्रतिशत से अधिक हिस्सा मुस्लिम है. यह क्षेत्र दशकों से अलगाववाद और उग्रवाद से प्रभावित रहा है, विशेषकर 1987 के चुनाव के बाद. लेकिन 1990 के दशक के बाद जैसे-जैसे उग्रवाद कम हुआ, चुनावी राजनीति फिर से प्रभावी होती गई. अशांति के बावजूद 2002, 2008 और 2014 के चुनावों में असरदार तरीके से मतदान हुआ.

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2014 में भाजपा ने महत्वपूर्ण बढ़त बनाई. पार्टी ने 60 प्रतिशत से अधिक मतदान के साथ 25 सीटें जीतीं. कांग्रेस ने उच्च मतदान वाले क्षेत्रों में स्थिर परिणाम बनाए रखा. वहीं एनसी ने उच्च मतदान (हाई वोटिंग परसेंटेज) वाले क्षेत्रों में अपना प्रभाव खो दिया, जबकि पीडीपी ने 2002 में कम मतदान वाले क्षेत्रों में अपना करिश्मा दिखिया. ये बदलाव राजनीतिक गतिशीलता में परिवर्तन का संकेत देते हैं, जिसमें उच्च मतदान प्रतिशत भाजपा और कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है.

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विशेषज्ञ की राय

कश्मीर की राजनीतिक विशेषज्ञ रेखा चौधरी बताती हैं, 'कश्मीर में चल रहे 2024 के विधानसभा चुनाव में चुनावी जोश को समझना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. इस बार पहले की तरह उच्च मतदान को वैधता का एकमात्र संकेतक नहीं माना जा रहा है. बल्कि, चुनावी प्रक्रिया में व्यापक रुचि और भागीदारी वास्तव में महत्वपूर्ण है.'

जम्मू और कश्मीर में चुनाव 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होंगे.

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