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यूपी से चुनाव लड़ने वाली शीला दीक्षित की दिल्ली की सियासत में हुई थी सरप्राइज एंट्री, फिर बनाया हैट्रिक...

शीला दीक्षित ने राजनीतिक गुर अपने ससुर उमा शंकर दीक्षित से सीखे थे. उमा शंकर दीक्षित कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के गवर्नर भी रहे हैं. इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे...

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शीला दीक्षित के CM बनने की कहानी.
शीला दीक्षित के CM बनने की कहानी.

दिल्ली में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. इसको लेकर अब माहौल गरमाने लगा है. आज स्पेशल सीरीज में बात दिल्ली के उस मुख्यमंत्री की होगी, जिसकी दिल्ली की सियासत में एंट्री तो सरप्राइज थी, लेकिन उसका कद इतना बड़ा बना कि उसने राजधानी की राजनीति को एक नया आयाम दिया. दरअसल, हम बात कर रहे हैं शीला दीक्षित की. जिनके नाम दिल्ली के सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड है. आइए जानते हैं उनके सियासी सफर के बारे में...

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यूपी की सियासत से की शुरुआत

कहा जाता है कि शीला दीक्षित का जीवन कई राज्यों में बीता. उनका जन्म पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को हुआ था. लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में हुई. सियासत की शुरुआत यूपी से हुई और फिर राजनीति का शिखर उन्हें दिल्ली में मिला. दरअसल, शीला दीक्षित ने राजनीतिक गुर अपने ससुर उमा शंकर दीक्षित से सीखे थे. उमा शंकर दीक्षित कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के गवर्नर भी रहे हैं. इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे.

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साल 1984 में पहली बार शीला दीक्षित ने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया था. उन्हें यूपी की कन्नौज सीट से लोकसभा का टिकट मिला था. उन्होंने चुनाव जीता था संसद पहुंच गईं. 1986-89 तक वह केंद्रीय मंत्री भी रहीं. इसी वजह से उन्हें 'यूपी की बहू' कहा जाता था.

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1998 आते-आते शीला दीक्षित ने अपनी अलग सियासी पहचान बना ली थी. गांधी परिवार के करीबियों में उनकी गिनती होने लगी थी. कहा जाता है कि कांग्रेस की कमान जब सोनिया गांधी को मिली तो उन्होंने शीला दीक्षित को 1998 में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बना दिया. उसी साल लोकसभा के चुनाव हुए और शीला दीक्षित को पूर्वी दिल्ली से टिकट मिला. लेकिन इस चुनाव में शीला दीक्षित को हार का सामना करना पड़ा.

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ऐसे हुई दिल्ली की सियासत में एंट्री

लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद शीला दीक्षित ने संसद की राजनीति को छोड़ दिया और दिल्ली की सियासत में इंटरेस्ट लेने लगीं. ये वो दौर था जब दिल्ली में बीजेपी की सरकार थी. 1993 में बीजेपी ने बड़े बहुमत से सरकार बनाई थी. लेकिन 5 साल में उसे 3 सीएम बदलने पड़े थे. मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और फिर 52 दिन की सीएम सुषमा स्वराज थीं. 

महंगाई को बनाया मुद्दा...

1998 का विधानसभा चुनाव आते-आते बीजेपी दिल्ली में कई मोर्चों पर घिर गई थी. पार्टी में खेमेबाजी चरम पर थी. उधर, प्याज की महंगाई दिल्ली में उस वक्त बड़ा मुद्दा बन गई थी. शीला दीक्षित ने बीजेपी के इस विरोध को खूबव भुनाया और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया. आखिरकार कांग्रेस ने बीजेपी को 15 सीटों पर समेद दिया और कांग्रेस ने 52 सीटें जीत लीं. 52 दिन की सीएम सुषमा स्वराज का सिंहासन हिल चुका था और दिल्ली में दूसरी महिला सीएम के रूप में शीला दीक्षित ने मुख्यमंत्री की शपथ ली थी. एक खास बात ये भी है कि 1998 में मिली हार के बाद बीजेपी कभी भी दिल्ली की सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी.

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गोल मार्केट से लड़ा था चुनाव

1998 में शीला दीक्षित ने गोल मार्केट विधानसभा से चुनाव लड़ा था. बीजेपी के कीर्ति आजाद को उन्होंने बड़े अंतर से हराया था. दिल्ली की छठी सीएम के रूप में शपथ लेने के बाद शीला दीक्षित ने राजधानी को कांग्रेस के गढ़ में बदल दिया.

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15 साल सीएम रहकर बनाया रिकॉर्ड...

दिल्ली के सीएम के रूप में शुरू हुआ शीला दीक्षित का सफर 2013 तक चला. 1998, 2003 और फिर 2008 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में शीला दीक्षित ने कांग्रेस को जीत दिलाई और सीएम बनीं रहीं. लगातार तीन बार महिला सीएम रहने का रिकॉर्ड भी शीला दीक्षित के नाम था. 

2013 में शीला दीक्षित को लगा झटका

15 साल दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने के बाद 2013 में आखिरकार शीला दीक्षित के खिलाफ माहौल बदल गया. अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस को मजबूत चुनौती पेश की. आलम ये रहा कि नई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को चुनाव हरा दिया. शीला दीक्षित की हार के बाद से अब तक कांग्रेस दिल्ली की सत्ता वापस नहीं लौटा सकी है.

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केरल के राज्यपाल के रूप में किया काम

दिल्ली में मिली हार के बाद शीला दीक्षित को केरल के राज्यपाल के रूप में नामित किया गया था. लेकिन 5 महीने बाद ही उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया. वहीं, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी शीला दीक्षित को कांग्रेस ने चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. लेकिन सपा-कांग्रेस के गठबंधन की खबरों के बाद उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित ने कांग्रेस के टिकट से पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. लेकिन मनोज तिवारी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. आखिरकार 20 जुलाई 2019 को शीला दीक्षित का निधन हो गया. 

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