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हरियाणा में प्रचार के लिए बचे महज 20 दिन, क्या पार्टी को 10 साल की सत्ता विरोधी लहर से पार दिला पाएंगे पीएम मोदी?

हरियाणा में बीजेपी को 10 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 दिनों के प्रचार अभियान में इसे तोड़ने और मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में करने का प्रयास करेंगे. जातीय समीकरण, किसान आंदोलन और जेजेपी से गठबंधन का टूटना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौतियां हैं.

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पीएम मोदी (फाइल फोटो)
पीएम मोदी (फाइल फोटो)

हरियाणा विधानसभा चुनावों में इस बार सत्ता की लड़ाई बेहद दिलचस्प हो गई है. पिछले 10 सालों से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को इस बार सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकम्बेंसी) का सामना करना पड़ रहा है. इस लहर को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (14 सितंबर) से कुरुक्षेत्र में रैली कर अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करेंगे. बीजेपी के पास अब सिर्फ 20 दिन का समय है, जिसमें उसे मतदाताओं को अपने पक्ष में करने और नाराज वोटरों को मनाने की कोशिश करनी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुरुक्षेत्र में होने वाली रैली से राज्य में बीजेपी के चुनावी अभियान का औपचारिक आगाज भी हो जाएगा. 

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कुरुक्षेत्र की लाडवा सीट से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी बीजेपी उम्मीदवार हैं, जो पहले कुरुक्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं. मोदी की रैली इसलिए भी अहम है क्योंकि कुरुक्षेत्र क्षेत्र में पार्टी को मजबूत पकड़ बनाए रखने की जरूरत है. लेकिन इस बीच बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या चुनाव प्रचार के लिए बचे केवल 20 दिनों में मोदी हरियाणा में पार्टी को लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज करा पाएंगे?

पीएम नरेंद्र मोदी इस रैली के साथ हरियाणा में चुनाव प्रचार की शुरुआत करने जा रहे हैं. राज्य में 3 अक्टूबर को चुनाव प्रचार समाप्त हो जाएगा. ऐसे में मोटा-माटी मोदी को हरियाणा की 10 साल की सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए केवल 20 दिनों का समय मिला है. इसके अलावा, उन्हें इसी बीच जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव प्रचार करना है, जहां 10 साल बाद और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में पीएम मोदी का सीमित समय, वोटिंग की लगातार नजदीक आती तारीख और राज्य में बढ़ती चुनौतियां बीजेपी के लिए बड़े सवाल खड़ी कर रही हैं. 

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बीजेपी की रणनीति

बीजेपी के चुनावी अभियान का प्रमुख चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं. उनके पास केवल 20 दिनों का समय है, जिसमें उन्हें राज्य के विभिन्न हिस्सों में रैलियों के जरिए मतदाताओं को लुभाना है. पीएम मोदी के प्रचार कौशल पर पार्टी को पूरा भरोसा है, खासकर राज्य की सत्ता विरोधी लहर से पार पाने के लिए. मोदी अपने चुनावी अभियानों में कांग्रेस के भ्रष्टाचार, विकास कार्यों, और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को जोर-शोर से उठाते हैं. हरियाणा में भी इसी रणनीति के तहत, पार्टी प्रधानमंत्री के जरिए भ्रष्टाचार और विकास को मुद्दा बनाएगी.

बीजेपी के नेता भी अपने चुनावी प्रचार में भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं. खासकर कांग्रेस के भ्रष्टाचार को. पार्टी पीएम मोदी का चेहरा और उनकी अपील को प्रमुख हथियार बना रही है. राज्य की 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद, पार्टी मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है. इसलिए राज्य में पार्टी बिना किसी सीएम फेस के उतर रही है.

कांग्रेस की तुलना में बीजेपी बेहतर आर्थिक विकास, रोजगार के अवसर और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है. इसके अलावा भाजपा जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की भी कोशिश में लगी है. साथ ही भाजपा के बड़े नेता चुनाव प्रचार के दौरान किसानों के मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को साफ कर सकते हैं, ताकि आंदोलन के कारण पैदा हुए असंतोष को कम किया जा सके.

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हरियाणा में इस बार बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

किसान आंदोलन का प्रभाव

किसान आंदोलन का असर हरियाणा में बीजेपी के चुनावी अभियान पर महत्वपूर्ण रूप से देखा जा सकता है. 2020-21 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनका केंद्र बिंदु हरियाणा और पंजाब थे. किसानों ने लंबे समय तक धरना देकर इन कानूनों का विरोध किया, और उनकी मांगों के कारण अंततः सरकार को इन कानूनों को वापस लेना पड़ा. 

हालांकि, आंदोलन के दौरान सरकार और किसानों के बीच टकराव ने बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचाया. हरियाणा के किसानों, खासकर जाट समुदाय में, बीजेपी के प्रति नाराजगी अभी भी देखी जा सकती है. इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के वोट बैंक पर पड़ सकता है, क्योंकि कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. चुनाव में बीजेपी को इस असंतोष से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति बनानी होगी, ताकि वह किसान समुदाय का विश्वास फिर से जीत सके.

खिलाड़ियों का विरोध प्रदर्शन

खिलाड़ियों के विरोध प्रदर्शन का बीजेपी के चुनावी अभियान पर गहरा असर पड़ सकता है, खासतौर पर हरियाणा जैसे राज्य में, जहां खेल और खिलाड़ी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. महिला पहलवानों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों, जो यौन उत्पीड़न के आरोपों और न्याय की मांग पर केंद्रित थे, ने राज्य में बीजेपी की छवि को झटका दिया है. 

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हरियाणा के खिलाड़ी, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, सरकार के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन के लिए चर्चा में रहे हैं. खिलाड़ियों का आंदोलन एक अलग ही दिशा में राजनीतिक बहस को ले गया, जहां सरकार पर ध्यान न देने के आरोप लगा. यह विरोध प्रदर्शन सरकार के खिलाफ असंतोष का प्रतीक बन गया. बीजेपी को इन विरोधों से हुए नुकसान से निपटने के लिए संवेदनशीलता के साथ ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि वह खेल जगत के समर्थन को खोए बिना अपने चुनावी अभियान को सफल बना सके.

विपक्षी दलों की रणनीति

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), और इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) जैसी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ अपने-अपने तरीके से गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं. यदि इन विपक्षी दलों के एकजुट होने का असर जमीन पर दिखता है तो बीजेपी के लिए चुनावी जीत की राह और कठिन हो सकती है. कांग्रेस, खासतौर पर, दलित और जाट वोट बैंक पर फोकस कर रही है, और उसने राज्य के भीतर जातिगत समीकरणों को साधने की रणनीति तैयार की है.

जातीय समीकरण

हरियाणा की राजनीति में जातीय समीकरण का बड़ा महत्व है. जाट समुदाय, जो राज्य की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, उसका एक बड़ा हिस्सा बीजेपी से नाराज चल रहा है. पार्टी को गैर-जाट मतदाताओं पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है. वहीं, अन्य समुदायों के साथ गठजोड़ बनाना भी पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है. बीजेपी के सामने इस बार जातीय संतुलन साधने और सभी वर्गों को साथ लाने की बड़ी जिम्मेदारी है.

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दुष्यंत चौटाला और जेजेपी का प्रभाव

2019 में बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी. लेकिन इस बार JJP से गठबंधन टूट गया है, जिससे बीजेपी अकेले दम पर चुनावी मैदान में है. जेजेपी का प्रभाव खासतौर पर जाट समुदाय में है, और इस गठबंधन के टूटने से बीजेपी को जाट वोटों के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. जेजेपी के बिना, बीजेपी को अपने दम पर जाट और अन्य ग्रामीण वोटों को आकर्षित करना होगा, जो आसान नहीं होगा. जेजेपी का अलग होना बीजेपी के लिए एक और मुश्किल खड़ी कर सकता है.

बीजेपी का एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर

10 साल की सत्ता के बाद बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का बड़ा खतरा है. सत्ता में रहते हुए किसी भी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है, और बीजेपी इससे अछूती नहीं है. विकास कार्यों के बावजूद, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोप जैसे मुद्दे विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे हैं, जिससे मतदाताओं का असंतोष बढ़ सकता है. खासकर, लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हरियाणा की 10 में से सिर्फ 5 सीटें मिली थीं, जो पार्टी के लिए चेतावनी संकेत हैं.

मुख्यमंत्री बदलने का फैसला

हरियाणा में चुनाव से कुछ महीने पहले ही बीजेपी ने राज्य में मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय लिया था. मनोहर लाल खट्टर की जगह नए चेहरे नायब सिंह सैनी को सत्ता सौंपी गई. लेकिन क्या यह फैसला पार्टी के भीतर और जनता के बीच भी सत्ता के प्रति असंतोष को कम करने में मददगार साबित होगा, क्योंकि चुनाव के इतने करीब मुख्यमंत्री बदलने के फैसले का असर पार्टी के चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है. 

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लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन 

हरियाणा में बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में बड़ी सफलता हासिल की थी, जब उसने राज्य की 10 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अपने प्रदर्शन को और बड़ा कर दिखाया, और उसने 10 में से 10 सीटें जीतीं. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ 5 सीट जीतने में सफल हो सकी. पार्टी की सीटें राज्य में बीते चुनाव के मुकाबले आधी रह गईं. यह आंकड़ा बीजेपी के लिए संतोषजनक भले कहा जा सकता है, लेकिन इससे यह भी स्पष्ट संकेत था कि पार्टी को विपक्ष से कड़ी चुनौती मिल रही है. विधानसभा चुनावों में, स्थानीय मुद्दों और जातीय समीकरणों का अधिक प्रभाव होता है, और यही कारण है कि बीजेपी को इस बार राज्य में अधिक मेहनत करनी पड़ रही है.

बीते विधानसभा चुनावों में कैसा रहा प्रदर्शन

हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी, जब उसने 47 सीटें जीतीं और स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई. लेकिन 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन उतना प्रभावशाली नहीं रहा, और उसे सिर्फ 40 सीटें मिलीं, जो बहुमत से कम थीं. इसके बाद, जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई गई. इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन कैसा रहता है.

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हरियाणा में बीजेपी का पूरा फोकस प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार पर है, और पार्टी को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में पार्टी यहां लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी कर सकेगी. पार्टी अपने चुनाव प्रचार में जातीय समीकरणों को साधने, कांग्रेस के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने, और विकास कार्यों का हवाला देकर वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करेगी.

हालांकि, एंटी इनकम्बेंसी, किसान आंदोलन, और जेजेपी से गठबंधन का टूटना बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है. विपक्षी दलों की एकजुटता और जातीय समीकरणों का प्रभाव भी चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है. अब देखना यह होगा कि क्या पीएम मोदी को मिले 20 दिनों और पार्टी के धारदार प्रचार अभियान से बीजेपी हरियाणा की सत्ता में लौट पाती है या नहीं.

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