महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं. दोनों राज्यों में सभी दल ताबड़तोड़ प्रचार कर रहे हैं. लेकिन एक नारा 'बंटोगे तो कटोगे' इन दिनों चर्चा के केंद्र में है. ये इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत की राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है, जब बीजेपी ने खुलकर हिन्दू कार्ड खेला है और मुसलमानों का नाम लेकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि अगर बहुसंख्यक हिन्दू एक साथ नहीं आए तो मुसलमान उनके अस्तित्व को खतरे में डाल देंगे.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी कहा कि पहले राजनीति में इस तरह की बातें इशारों में कही जाती थीं लेकिन इस बार बीजेपी ने साफ-साफ शब्दों में मुसलमानों का नाम लेकर हिन्दू कार्ड खेला है और ये नए तरह का ध्रुवीकरण है.
लोकसभा चुनाव के बाद बदली तस्वीर
लोकसभा चुनावों में जब विपक्षी दल हिन्दुओं को जातियों में बांटने की सोशल इंजीनियरिंग कर रहे थे, तब ये कयास लगाए गए थे कि इस राजनीति के विरोध में बीजेपी हिन्दुत्व के मुद्दे को और ताकत से उठाएगी और अब वो ऐसा ही कर रही है. लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हिन्दुओं की ज़मीनें और मंगलसूत्र खतरे में है. लेकिन अब बीजेपी झारखंड और महाराष्ट्र के चुनावों में सीधे-सीधे ये कह रही है कि हिन्दुओं का पूरा अस्तित्व ही खतरे में है.
दो फॉर्मूले चर्चा में
अब देश की राजनीति में दो नए फॉर्मुले आ गए हैं, जिनमें विपक्ष का फॉर्मुला है रेवड़ी और अल्पसंख्यक जबकि बीजेपी का फॉर्मुला है, रेवड़ी और बहुसंख्यक . दरअसल, अब राजनीतिक पार्टियों को समझ आ गया है कि वो सिर्फ मुफ्त की रेवड़ियों से चुनावों में नहीं जीत सकतीं. यही कारण है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी ने महिलाओं को हर महीने 3 हज़ार रुपये देने का वादा किया है और वो अल्पसंख्यक कार्ड भी खेल रही है. जबकि बीजेपी ने हर महीने महिलाओं को 2100 रुपये देने का वादा किया है और इन रेवड़ियों के साथ वो बहुसंख्यक कार्ड भी खेल रही है.
क्यों ये 'बंटवारे' की राजनीति अहम
चुनावों का गणित कहता है कि जिस राजनीतिक पार्टी और गठबंधन को 40 पर्सेंट से ज्यादा वोट मिलते हैं, उसका जीतना लगभग निश्चित होता है. इसके लिए राजनीतिक पार्टियों ने हर राज्य में अपना 40 पर्सेंट वोटों का एक वोटबैंक बनाया हुआ है. जैसे उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल 20 पर्सेंट मुसलमानों और 10 पर्सेंट यादवों की राजनीति करते है, जो मिलकर 30 पर्सेंट हो जाते हैं और बाकी 10 पर्सेंट वोटों के लिए जातियों की सोशल इंजीनियरिंग होती है. बिहार में भी इसी तरह से 40 पर्सेंट वोटों को जोड़ा जाता है और अब महाराष्ट्र और झारखंड में भी इन्हीं 40 पर्सेंट वोटों के लिए सारी लड़ाई हो रही है.
महाराष्ट्र में 28 पर्सेंट वोटर्स मराठा हिन्दू समुदाय के हैं, 38 पर्सेंट OBC हैं, 11.8 पर्सेंट दलित हैं, साढ़े 11 पर्सेंट मुसलमान हैं और 9.4 पर्सेंट आदिवासी हैं. इसी तरह झारखंड में 46 से 50 पर्सेंट वोटर्स OBC समुदाय के हैं, 26 पर्सेंट आदिवासी हैं, साढ़े 14 पर्सेंट मुसलमान हैं और 12 पर्सेंट वोटर्स दलित हैं. और इन दोनों राज्यों के इस BREAKUP से आप ये समझ सकते हैं कि बीजेपी और विपक्षी दलों की इन चुनावों को लेकर क्या रणनीति है.
बीजेपी महाराष्ट्र के 80 पर्सेंट और झारखंड के 68 पर्सेंट बहुसंख्यक हिन्दुओं को एकजुट रखना चाहती है और इसके लिए उसने इस बार एक बहुत बड़ा मुद्दा उठाया है और वो है, बंटेंगे तो कटेंगे का मुद्दा. बीजेपी का आरोप है कि झारखंड में अल्पसंख्यक मुसलमानों की आबादी से आदिवासी हिन्दुओं की आबादी को खतरा है और अगर हिन्दू एकजुट नहीं हुए तो उनका अस्तित्व खतरे में आ जाएगा?
झारखंड का क्या है मुद्दा
साल 1951 में जब झारखंड, बिहार राज्य का हिस्सा था, तब झारखंड के इस क्षेत्र में ''आदिवासी समुदाय'' की आबादी 35.38 पर्सेंट थी, जो झारखंड बनने के बाद वर्ष 2011 में 26.2 पर्सेंट रह गई जबकि इसी समय अवधि में मुसलमानों की आबादी वर्ष 1951 में 8.9 पर्सेंट से बढ़कर वर्ष 2011 में 14.5 पर्सेंट हो गई. बहुत सारे लोगों को लगता है कि झारखंड में ये सारा विवाद मुसलमानों की आबादी को लेकर हो रहा है जबकि हकीकत में इस विवाद का भारत और झारखंड के मुसलमानों से ज्यादा लेना-देना नहीं है. ये सारा विवाद उन मुसलमानों से जुड़ा हुआ है, जो बांग्लादेश से घुसपैठ करके झारखंड के इस सबसे बड़े क्षेत्र में आए हैं. इस क्षेत्र को संथाल-परगना का क्षेत्र कहा जाता है, जहां कुल 6 ज़िले आते हैं. इनमें गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ शामिल हैं.
ये वो 6 ज़िले हैं, जहां वर्ष 1951 में आदिवासी समुदाय की आबादी 44 पर्सेंट थी, जो वर्ष 2011 में घटकर सिर्फ 26 परसेंट हो गई, जबकि मुसलमानों की आबादी इन जिलों में वर्ष 1951 में 9 पर्सेंट थी, जो वर्ष 2011 में बढ़कर 23 पर्सेंट हो गई. इससे ये पता चलता है कि संथाल परगना के इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय और मुसलमानों की आबादी अब लगभग बराबर है. मुसलमान 23 पर्सेंट हैं और आदिवासी 26 पर्सेंट हैं और ये आंकड़े भी वर्ष 2011 के हैं और हो सकता है कि आज 13 वर्षों के बाद इस क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी, आदिवासी समुदाय से ज्यादा हो.
झारखंड के इस क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी उन लोगों से बढ़ी है, जो बांग्लादेश से घुसपैठ करके भारत में आए हैं. संथाल-परगना के इस क्षेत्र में जो 6 ज़िले हैं, उनमें पाकुड़ ज़िले की सीमा बांग्लादेश की सीमा से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है और ये 10 किलोमीटर का इलाका भी पश्चिम बंगाल में पड़ता है, जो वहां के मुर्शिदाबाद जिले में आता है.
संथाल-परगना के इस इलाके में आदिवासियों की आबादी को संरक्षित रखने के लिए एक बहुत बड़ा कानून आया था, जिसका नाम है, संथाल-परगना TENANCY ACT कहते हैं. इस कानून के तहत संथाल-परगना के इलाके में आदिवासी समुदाय के लोग ना तो अपनी जमीनें किसी को बेच सकते हैं और ना ही इन जमीनों को लीज़ पर दिया जा सकता है.
मुर्शिदाबाद में मुसलमानों की आबादी 66 पर्सेंट है और इस इलाके में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं और उनकी आबादी सिर्फ 33 पर्सेंट है. आरोप लगता है कि बांग्लादेश से जो मुसलमान घुसपैठ करके पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में आए, उससे वहां हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए और अब मुर्शिदाबाद की सीमा से लगने वाले झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में भी यही हो रहा है और वहां आदिवासी समुदाय की आबादी 44 से 26 पर्सेंट रह गई है और मुसलमानों की आबादी 9 पर्सेंट से 23 पर्सेंट हो गई है.
जानें क्या है जमीनी हकीकत
आजतक की टीम जब इस इलाके में घूम रही थी, तब हमने ऐसी कई मस्जिद और मदरसा देखे, जिनका निर्माण पिछले कुछ वर्षों में हुआ है और इससे ये सवाल उठता है कि जब आदिवासी समुदाय इस इलाके में अपनी जमीनें नहीं बेच सकता है तो यहां इन जमीनों पर ये मस्जिदें कैसे बन रही हैं तो इसके पीछे एक बहुत बड़ी साजिश हो सकती है.
असल में बहुत सारे मामलों में जब मुस्लिम पुरुषों की शादी आदिवासी समुदाय की महिलाओं से हो जाती है तो वो मुस्लिम पुरुष आदिवासी महिलाओं की जमीनों के केयर-टेकर बन जाते हैं और इस तरह ये जमीनें एक खास धर्म के लोगों द्वारा इस्तेमाल होने लगती हैं. इसके अलावा हमें ये भी पता चला कि इस क्षेत्र में बांग्लादेश से घुसपैठ करके आए मुसलमानों के लिए अपना आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड बनवाना बहुत आसान है और कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां मुस्लिम पुरुषों ने गांवों की हिन्दू महिला सरपंच से शादी की हुई है और अब गांवों की सत्ता इन्हीं मुसलमानों के पास है.
हाईकोर्ट में भी उठा है मामला
ये सारा मामला झारखंड के हाई कोर्ट में उठ चुका है और इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भूमिका को लेकर इसलिए सवाल उठाए जाते हैं क्योंकि हेमंत सोरेन इसी संथाल परगना क्षेत्र से आते हैं. उन पर आरोप है कि उन्होंने इस मुद्दे को कभी गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि उन्हें चुनावों में इन घुसपैठियों के वोट मिलते हैं.