अजित पवार खेमे के मंत्रियों को निशाना बनाने के लिए शरद पवार आगामी विधानसभा चुनावों में उनके निर्वाचन क्षेत्रों में मजबूत उम्मीदवारों की पहचान करने की रणनीति बना रहे हैं. कभी शरद पवार के खास रहे अजित पवार एनडीए के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में शामिल हो गए. अब शरद पवार अजित खेमे और भाजपा में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
इसी तरह, एनसीपी (सपा) खेमे की सांसद सुप्रिया सुले ने समाजवादी पार्टी के नेता और विधायक अबू आजमी के साथ 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद नवाब मलिक के प्रतिनिधित्व वाले अणुशक्ति नगर निर्वाचन क्षेत्र में एक संयुक्त रैली को संबोधित किया. नवाब मलिक अंडरवर्ल्ड से संबंधों के आरोप में जमानत पर बाहर हैं और भाजपा और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कड़ी आपत्तियों के बावजूद अजित खेमे में शामिल हो गए हैं.
इस बीच, नवाब मलिक बगल के शिवाजी नगर-मानखुर्द विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, जिसका प्रतिनिधित्व समाजवादी पार्टी से तीन बार विधायक चुने गए अबू आज़मी करते हैं. इसलिए, सुप्रिया सुले को आज अणुशक्ति नगर में एक रैली में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है, ताकि नवाब मलिक को उनके गढ़ में चुनौती दी जा सके. नवाब मलिक की बेटी सना मलिक उन्हीं अणुशक्ति नगर सीटों से चुनाव लड़ने की योजना बना रही हैं, जिसका प्रतिनिधित्व उनके पिता करते थे.
इसी तरह, शरद पवार ने अजीत खेमे के मंत्री के खिलाफ कड़ी टक्कर देने के लिए अजीत खेमे और भाजपा से कई युवा चेहरों को शामिल करना शुरू कर दिया है. इस महीने की शुरुआत में, शरद पवार ने कोल्हापुर राजघराने के समरजीत सिंह घाटगे को भाजपा से एनसीपी (सपा) में शामिल किया, ताकि वे अजीत खेमे के चिकित्सा शिक्षा मंत्री हसन मुश्रीफ के खिलाफ मैदान में उतर सकें.
अगले रडार पर कृषि मंत्री धनंजय मुंडे हैं, जो अजीत पवार के करीबी सहयोगी भी हैं, उन्हें बीड में कांग्रेस के वर्तमान जिला अध्यक्ष राजासाहेब देशमुख से चुनौती मिलेगी. उन्होंने हाल ही में शरद पवार से उनके मुंबई स्थित आवास पर मुलाकात की और संभावना है कि वह एनसीपी (सपा) में शामिल होकर परली विधानसभा क्षेत्र से मुंडे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे.
सबसे जरूरी बात यह है कि राजासाहेब देशमुख ने मराठा आरक्षण आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी और वह मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के बहुत करीबी हैं. मराठा आरक्षण लोकसभा चुनावों में महत्वपूर्ण था, जिसके कारण ओबीसी नेता पंकजा मुंडे को बीड से हार का सामना करना पड़ा.