झारखंड विधानसभा चुनाव में संथाल परगना सेंटर पॉइंट बन गया है. आदिवासी अस्मिता की पिच पर लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाने के बाद विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) पर सीता सोरेन और चंपाई सोरेन के अपमान का आरोप लगाते हुए हमलावर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और निशिकांत दुबे तक, बीजेपी के तमाम नेता बेटी, रोटी और माटी की रक्षा में हेमंत सोरेन सरकार को विफल बताते हुए डेमोग्राफी में बदलाव के लिए इंडिया ब्लॉक की सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.
डेमोग्राफी में बदलाव की बात आती है तो सबसे अधिक चर्चा संथाल परगना की होती है. संथाल परगना की गोड्डा सीट से सांसद निशिकांत दुबे इस मुद्दे को संसद में भी उठा चुके हैं. बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में भी घुसपैठियों को झारखंड की सीमा से बाहर निकालने का वादा किया है. पीएम मोदी ने भी एक दिन पहले हुई रैली में कहा, "घुसपैठिए आपकी बेटियों को छीन रहे हैं, जमीन हड़प रहे हैं और आपकी रोटी खा रहे हैं. झारखंड की डेमोग्राफी बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं.".
ऐसे में अब बात इसे लेकर भी हो रही है कि कोल्हान और कोयलांचल जैसे क्षेत्र भी हैं लेकिन संथाल परगना ही पक्ष-विपक्ष का मुख्य अखाड़ा क्यों बन गया है?
संथाल परगना क्यों बना मुख्य अखाड़ा
झारखंड विधानसभा की कुल स्ट्रेंथ 81 सीटें हैं. संथाल परगना में 18 विधानसभा सीटें हैं. 18 सीटों वाला यह परगना झारखंड सरकार की अगुवाई कर रहे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का परगना है. सीएम हेमंत सोरेन जिस बरहेट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वह भी संथाल परगना में ही है. झारखंड की सत्ता निर्धारित करने में यह परगना अहम भूमिका निभाता है और यह भी एक वजह है कि हर दल का फोकस संथाल जीतने पर रहता है.
सत्ताधारी गठबंधन के लिए शिबू सोरेन का गृह क्षेत्र होने के कारण संथाल की सीटें नाक का सवाल बन गई हैं. बीजेपी भी प्रतिद्वंद्वी को उसके घर में, गढ़ में ही घेरने की रणनीति पर चल रही है. सूबे की आबादी में सबसे बड़े वर्ग आदिवासी समाज की आबादी में भी सबसे अधिक भागीदारी संथाल जनजाति की है. संथाल जनजाति का बड़ा हिस्सा संथाल परगना में निवास करता है और यहां के सियासी मिजाज का संदेश धनबाद-गिरीडीह के इलाके में रहने वाले संथाल मतदाताओं को भी प्रभावित करता है. हेमंत सोरेन खुद भी संथाल जनजाति से ही हैं.
संथाल में क्या है बीजेपी की रणनीति
बीजेपी की रणनीति संथाल में आदिवासी अस्मिता के जेएमएम के दांव को शिबू सोरेन के परिवार की ही सीता सोरेन और सिद्धो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू के जरिये काउंटर करने की है. पार्टी चंपाई को सीएम पद से हटाए जाने को भी आदिवासी अस्मिता से जोड़ जनता के बीच जा रही है. संथाल परगना में बदलती डेमोग्राफी और बांग्लादेश के नागरिकों के घुसपैठ को भी बीजेपी मुखरता से उठा रही है और इसे अपने संकल्प पत्र में भी जगह दी है. यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर आदिवासी समाज के विरोध का असर कहीं वोट के रूप में सामने न आए, इसके लिए गृह मंत्री ने पहले ही आदिवासियों को इससे बाहर रखने का ऐलान कर दिया है.
संथाल ने दिए तीन मुख्यमंत्री
नेतृत्व के लिहाज से संथाल परगना की जमीन उर्वर रही है. संथाल परगना संयुक्त बिहार से अब झारखंड तक, प्रदेश की सत्ता को नेतृत्व देने के मामले में भी पीछे नहीं है. संयुक्त बिहार में संथाल परगना के देवघर निवासी पंडित विनोदानंद झा मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे तो वहीं अलग राज्य के गठन के बाद शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन. शिबू सोरेन जामताड़ा सीट से विधायक रहते हुए सीएम बने तो हेमंत ने बरहेट का प्रतिनिधित्व करते हुए सत्ता की कमान संभाली. तीन-तीन मुख्यमंत्री देने वाले संथाल परगना से मंत्री बनने वाले नेताओं की भी लंबी लिस्ट है.
मंत्री पद तक पहुंचे संथाल परगना के ये नेता
संथाल परगना के मधुपुर से विधायक रहे कृष्णानंद झा, जामताड़ा से विधायक रहे फुरकान अंसारी और महागामा से विधायक रहे अवध बिहारी सिंह बिहार सरकार में मंत्री रहे थे. कुल मिलाकर संथाल परगना के 20 विधायक अब तक बिहार और झारखंड की सरकारों में मंत्री रहे हैं. झारखंड राज्य बनने के बाद सूबे की सरकार में 18 विधायकों वाले इस क्षेत्र के 17 विधायक अब तक मंत्री पद तक पहुंच चुके हैं जिनमें कई एक से अधिक सरकारों में कैबिनेट बर्थ पाने में सफल रहे हैं.
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एक से अधिक सरकारों में मंत्री रहे नेताओं की लिस्ट में शिकारीपाड़ा से विधायक नलिन सोरेन, मधुपुर के हाजी हुसैन अंसारी, पाकुड़ के आलमगीर आलम, पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव जैसे दिग्गजों के नाम हैं. संथाल परगना के स्टीफन मरांडी, शशांक शेखर भोक्ता, रवींद्र महतो, लुइस मरांडी, राज पलिवार, सुरेश पासवान, बादल पत्रलेख,रणधीर कुमार सिंह भी झारखंड सरकार में मंत्री रहे हैं.
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डॉक्टर इरफान अंसारी, हफीजुल हसन, दीपिका पांडेय सिंह और हरिनारायण राय भी झारखंड कैबिनेट का अंग रहे हैं. संथाल परगना के दो विधायक विधानसभा स्पीकर की कुर्सी तक भी पहुंचे हैं. शशांक शेखर भोक्ता और रवींद्र महतो झारखंड विधानसभा के स्पीकर रहे हैं.
संथाल परगना में कौन सी सीटें
संथाल परगना में कुल 18 सीटें हैं जिनमें से सात सीटें अनुसूचित जनजाति और एक सीट एससी के लिए आरक्षित है. 10 सीटें सामान्य हैं. बरहेट, दुमका, शिकारीपाड़ा, महेशपुर, लिट्टीपाड़ा, बोरियो और जामा विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं. देवघर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. सामान्य सीटों की लिस्ट में जामताड़ा, गोड्डा, मधुपुर, सारठ, जरमुंडी, पोड़ैयाहाट, महागामा, पाकुड़, राजमहल और नाला शामिल हैं.