हरियाणा में विधानसभा चुनाव हैं और चुनावी मौसम में हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से सांसद कंगना रनौत के एक बयान ने सूबे की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को असहज कर दिया है. कंगना ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, "पंजाब में किसान आंदोलन के नाम पर उपद्रवी हिंसा फैला रहे थे. वहां रेप और हत्याएं हो रही थीं. किसान बिल को वापस ले लिया गया, वर्ना उपद्रवियों की लंबी प्लानिंग थी. वे देश में कुछ भी कर सकते थे. अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व मजबूत नहीं रहता तो पंजाब को बांग्लादेश बना दिया जाता."
कंगना ने पंजाब की परिस्थितियों का जिक्र किया है लेकिन उनका ये बयान चुनावी राज्य हरियाणा में भी पार्टी की दिक्कतें बढ़ा सकता है. हरियाणा में बीजेपी के सामने 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी से पार पाने की चुनौती है. साथ ही किसानों और पहलवानों के आंदोलन को लेकर नाराजगी, सरकारी पोर्टल के माध्यम से योजनाओं के लाभ दिए जाने को लेकर नाराजगी से पार पाने की चुनौती भी पार्टी के सामने है. ऐसे में कंगना रनौत का बयान बीजेपी के लिए हरियाणा में फजीहत की वजह बन गया है.
पंजाब के बीजेपी नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल ने इसे कंगना का निजी बयान बताया है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और बीजेपी किसानों की हितैषी है. कंगना को इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए. वहीं, हरियाणा के बीजेपी नेताओं ने कंगना के बयान पर चुप्पी साध ली है. चर्चा है कि बीजेपी नेताओं ने कंगना के इस बयान की शिकायत शीर्ष नेतृत्व से की है. वहीं, कांग्रेस ने कंगना के बयान पर हल्ला बोल दिया है. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला ने एक्स पर पोस्ट कर बीजेपी पर हमला बोला है.
सुरजेवाला ने एक्स पर लिखा है कि आखिर बीजेपी वालों को देश के अन्नदाता से इतनी नफरत क्यों है? बीजेपी ने तो हमेशा हमारे अन्नदाताओं पर झूठ, फरेब, साजिश और अत्याचार किया है और एक बार फिर हमारे अन्नदाताओं पर बीजेपी की सांसद ने अनर्गल आरोप लगाया है. उन्होंने कंगना के बयान पर सवाल उठाते हुए लिखा कि क्या बीजेपी की चुनावी रणनीति के हिसाब से कंगना ने किसानों पर ये घटिया आरोप लगाया है? क्या कंगना के सिर्फ शब्द थे या फिर कॉपी किसी और ने लिखी है? अगर नहीं तो फिर देश के प्रधानमंत्री, हरियाणा के मुख्यमंत्री और तमाम बीजेपी सांसद-विधायक इस मसले पर खामोश क्यों हैं?
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप डबास ने कहा कि किसी भी पार्टी के लिए 10 साल एंटी इनकम्बेंसी को सफलतापूर्वक पार कर तीसरी बार सरकार बनाना अपने आप में चुनौतीपूर्ण होता है. एंटी इनकम्बेंसी की चुनौती के बीच हरियाणा में परिवार पहचान पत्र से लेकर 100 से अधिक योजनाओं का लाभ पोर्टल के जरिये दिया जा रहा है जिसे लेकर आम जनता में नाराजगी है. जाट-किसान अलग नाराज हैं. ऐसे में किसान और किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी के किसी भी नेता का बयान किसानों की भावनाओं पर चोट जैसा है, कंगना रनौत तो फिर भी सांसद हैं. चुनावों के समय इस तरह के बयान पार्टी को नुकसान ही पहुंचाएंगे, लाभ नहीं हो सकता.
हरियाणा में इन चुनौतियों से घिरी है बीजेपी
किसानः तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का केंद्र पंजाब और हरियाणा थे. हरियाणा में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से लेकर उनके मंत्रियों तक को विरोध का सामना करना पड़ा था. कई गांवों में लोगों ने बीजेपी नेताओं का प्रवेश निषेध के पोस्टर भी लगा दिए थे. हालिया लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी नेताओं को कई जगह विरोध का सामना करना पड़ा था. किसानों की नाराजगी हालिया लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी झलकी. 2014 और 2019 में सूबे की सभी 10 सीटें जीतकर क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी पांच सीटें ही जीत सकी थी.
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जाटः हरियाणा में कांग्रेस का कोर वोटर रहे जाट वोटबैंक में बीजेपी ने सेंध लगा दी थी लेकिन हालिया आम चुनाव में ये ट्रेंड बदला है. जाट बीजेपी से नाराज है और ये नाराजगी लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी नजर आई. अब बीजेपी गैर जाट पॉलिटिक्स के फॉर्मूले पर बढ़ चली है. हरियाणा में सरकार की कमान ओबीसी, प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही पार्टी ने जो तीन केंद्रीय मंत्री बनाए हैं, वे भी गैर जाट चेहरे हैं. महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण की घटनाओं को लेकर बृजभूषण के खिलाफ विनेश फोगाट और पहलवानों के आंदोलन ने भी जाट वोटर्स की नाराजगी की आग में घी का काम किया है. गौरतलब है कि सी वोटर के मुताबिक बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 32.9, विधानसभा चुनाव में 24 फीसदी जाट वोट मिले थे. 2019 में ये आंकड़ा बड़ा और तब लोकसभा चुनाव में पार्टी 42.4 और विधानसभा चुनाव में 33.7 फीसदी जाट वोट हासिल करने में सफल रही थी.
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अग्निवीरः हरियाणा के युवा बड़ी संख्या में सेना का रुख करते हैं. सेना और हरियाणा का भावनात्मक जुड़ाव है. बीजेपी वन रैंक, वन पेंशन को बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करती रही है लेकिन हरियाणा चुनाव में इस बार अग्निवीर बड़ा मुद्दा बनता नजर आ रहा है. सेना भर्ती की अग्ननिवीर योजना को लेकर लोगों में नाराजगी है. अग्निवीर योजना के खिलाफ हरियाणा के युवाओं ने आंदोलन भी किया था. लोकसभा चुनाव के समय से ही कांग्रेस अग्निवीर योजना के खिलाफ मुखर है. कांग्रेस संसद में भी अग्निवीर योजना बंद करने की मांग कर चुकी है, यह कह चुकी है कि उसकी सरकार आई तो इसे बंद कर देगी.
एंटी इनकम्बेंसीः बीजेपी 2014 से ही सूबे की सत्ता में है. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा का मुख्यमंत्री बदल दिया था. मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया गया तो इसे 10 साल की सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी से पार पाने की तरकीब के रूप में ही देखा गया. इंडिया टुडे और सी वोटर के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में भी सरकार और विधायकों से एंटी इनकम्बेंसी की बात सामने आई थी. इस सर्वे में विधायकों के काम पर जहां 33 फीसदी लोगों ने संतोष जाहिर किए, वहीं 40 फीसदी लोगों ने असंतोष व्यक्त किया था. सीएम के काम से संतुष्ट लोगों की तादाद 22 फीसदी थी और 40 फीसदी लोग असंतुष्ट थे. सरकार के काम पर संतोष जाहिर करने वालों की तादाद 27 और असंतोष जाहिर करने वालों की संख्या 44 फीसदी थी.