दिल्ली में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. सभी दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. लेकिन दिल्ली की सियासत के कई किस्से ऐसे हैं जो आज भी चर्चा में रहते हैं. आज स्पेशल सीरीज में हम दिल्ली के उस मुख्यमंत्री के बारे में आपको बताएंगे, जिसे प्याज की महंगाई के चलते सीएम की कुर्सी मिली थी. लेकिन महज 52 दिनों में ही उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. दरअसल, हम बात कर रहे हैं दिल्ली की पांचवीं और पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज की. आइए जानते हैं कैसा रहा इनका सियासी सफर...
अंबाला से शुरू किया सियासी सफर
सुषमा स्वराज ने अपना सियासी सफर हरियाणा के अंबाला से शुरू किया था. वह लंबे समय तक हरियाणा की राजनीति में सक्रिय रहीं. लेकिन 1996 में सुषमा स्वराज ने दिल्ली की ओर रुख किया और लोकसभा चुनाव जीता. पहली बार वो साउथ दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ीं और जीतीं. उन्हें 13 दिनों की वाजपेयी सरकार में सूचना व प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी.
इसके बाद 1998 में फिर उन्होंने दिल्ली से ही लोकसभा का चुनाव जीता. लेकिन इसी बीच, दिल्ली की सियासत में बड़ा उलटफेर हुआ और सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गईं.
प्याज की महंगाई और सुषमा स्वराज बनीं मुख्यमंत्री
सुषमा स्वराज के सीएम बनने की कहानी को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा. बात दिल्ली में 1993 में हुए विधानसभा चुनाव की है. इस चुनाव में बीजेपी ने 70 में से 49 सीटों पर जीत हासिल की थी. मदनलाल खुराना को दिल्ली का सीएम बनाया गया था. लेकिन 1996 में जैन हवाला केस में मदन लाल खुराना का नाम सामने आया, जिसके बाद उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
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अब दिल्ली में सीएम को लेकर एक नए नाम की तलाश शुरू हो गई. दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में थे. एक नाम था तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का तो दूसरा नाम सुषमा स्वराज का था. लेकिन जब विधायक दल की बैठक हुई तो एक तीसरे नाम पर मुहर लगी और वो नाम था साहिब सिंह वर्मा का. आखिरकार साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के चौथे सीएम बन गए.
2 साल फिर हुआ 'खेल'
साहिब सिंह वर्मा के सीएम बनने के बाद भी दिल्ली में सियासी भूचाल कम नहीं हुआ. इसी बीच मदन लाल खुराना को हवाला केस में क्लीनचिट मिल गई, जिसके बाद उनके समर्थन उन्हें फिर से सीएम बनाने की मांग करने लगे. दोनों नेताओं में टकराव साफ दिखने लगा. इसी बीच, दिल्ली में प्याज की कीमतें आसमान छूने लगीं. एक किलो प्याज का दाम 60-80 रुपये किलो हो गया. इसको लेकर विपक्ष हमलावर था.
कुछ ही दिन में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने थे. ऐसे में बीजेपी ने साहिब सिंह वर्मा को सीएम पद से हटाने का फैसला लिया. आखिरकार साहिब सिंह वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने सुषमा स्वराज को अगले सीएम के नाम पर प्रस्तावित किया. इस तरह 12 अक्तूबर 1988 को सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री पद पर काबिज हो गईं और दिल्ली की पहली महिला सीएम बनीं.
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केवल 52 दिन ही रहीं मुख्यमंत्री
लेकिन सुषमा स्वराज ऐसे समय में सीएम बनीं थीं, जब दिल्ली में दो महीने के भीतर ही चुनाव होने थे. यह चुनाव सुषमा स्वराज के नेतृत्व में लड़ा गया. साहिब सिंह वर्मा ये चुनाव नहीं लड़े. उन्होंने सुषमा स्वराज के पक्ष में प्रचार किया. लेकिन हाल ये हुआ कि बीजेपी महज 15 सीटों पर सिमट गई. इस तरह से सुषमा स्वराज को 3 दिसंबर 1998 को 52 दिन के भीतर ही पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद सुषमा स्वराज ने केंद्र की राजनीति की ओर रुख कर लिया था.
सुषमा स्वराज के इस्तीफे के बाद दिल्ली में बीजेपी का राज नहीं आया. इसके बाद कांग्रेस की शीला दीक्षित ने दिल्ली की सत्ता को 15 साल 25 दिन तक संभाला. फिर आम आदमी पार्टी सत्ता पर काबिज हो गई.
सुषमा का राजनीतिक सफर
1977-82 और 1987-89: हरियाणा विधानसभा की सदस्य रहीं
1990: राज्यसभा सदस्य बनीं
1996 और 1998: दक्षिण दिल्ली से लोकसभा सांसद चुनी गईं
1998: दिल्ली की सीएम बनीं
2000 से 2003: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं
2003 से 2004: स्वास्थ्य मंत्री का कार्यभार संभाला
2014 में मोदी सरकार में विदेश देश मंत्री बनीं.