कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी हरियाणा में आम चुनाव की तर्ज पर विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी से गठबंधन चाहते हैं. राहुल गांधी ने हरियाणा चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने के लिए हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में राज्य के नेताओं से गठबंधन को लेकर फीडबैक मांगा. उन्होंने एक वरिष्ठ नेता को गठबंधन की संभावनाएं टटोलने की जिम्मेदारी सौंपी है. आम आदमी पार्टी पहले ही सूबे की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी कहते आए हैं कि हम अकेले ही लड़ेंगे और जीतेंगे. हरियाणा में जीत को लेकर कांग्रेस कॉन्फिडेंट है. फिर भी राहुल गांधी आम आदमी पार्टी से गठबंधन क्यों चाहते हैं?
1- नेशनल पॉलिटिक्स का गणित
राहुल गांधी का फोकस राज्य से अधिक राष्ट्रीय राजनीति है. हरियाणा में जीत के विश्वास के बावजूद अगर वह आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन चाहते हैं तो उनकी रणनीति लोकसभा चुनाव में तमाम विरोधाभास और अगर-मगर के बीच खड़े हुए इंडिया ब्लॉक के दलों की एकजुटता बनाए रखने, सहयोगी दलों में कांग्रेस को लेकर विश्वास बढ़ाने की भी है. मध्य प्रदेश चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ अंतिम समय तक बातचीत के बावजूद गठबंधन नहीं किया था. तब पार्टी पर आरोप लगे थे कि वह उन राज्यों में छोटी पार्टियों को दरकिनार कर देती है जहां वो मेन प्लेयर है. कांग्रेस अब इस टैग से बाहर निकलना चाहती है. राहुल गांधी की इस मंशा के पीछे फ्यूचर पॉलिटिक्स है और इसीलिए वह हरियाणा से देश के बाकी राज्यों, इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों को एक संदेश देना चाहते हैं.
2- दिल्ली-गुजरात प्लान
हरियाणा के जरिये राहुल गांधी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और गुजरात की पिच सेट करना चाहते हैं. दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनाव से कांग्रेस पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई है. वहीं, पिछले गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था. 2017 के चुनाव में 42.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2022 में 27.28 फीसदी वोट के साथ महज 17 सीटें ही जीत सकी थी जो प्रदेश में पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन भी है. इसी चुनाव में आम आदमी पार्टी करीब 13 फीसदी वोट शेयर के साथ 35 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. राहुल गांधी संसद में भी यह दावा करते आए हैं कि इस बार कांग्रेस पार्टी गुजरात में बीजेपी को हराने जा रही है. हरियाणा चुनाव में गठबंधन की मंशा को उनकी दिल्ली-गुजरात रणनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है.
3- एंटी इनकम्बेंसी के एकमुश्त वोट
हरियाणा में 2014 से ही बीजेपी की सरकार है. बीजेपी सरकार के खिलाफ 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी है और जाट-किसान भी नाराज हैं. कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि इस बार परिस्थितियां उनके अनुकूल है लेकिन चुनौती इन एंटी वोटों का बिखराव रोकने की है. इंडियन नेशनल लोक दल और जननायक जनता पार्टी जैसे दल मैदान में हैं. जेजेपी हाल तक बीजेपी के साथ गठबंधन में थी. आईएनएलडी अपनी खोई जमीन तलाश रही है लेकिन ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव मैदान में उतरती है तो कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है.
4- बीजेपी की जमीनी रणनीति
राहुल गांधी की आम आदमी पार्टी से गठबंधन की चाहत के पीछे एक फैक्टर अति आत्मविश्वास भी है. छत्तीसगढ़ चुनाव नतीजों के बाद पार्टी अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है. बीजेपी जमीन पर एक्टिव है. सत्ताधारी दल ने दुष्यंत चौटाला की जेजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. जाट पॉलिटिक्स की पिच पर अब तीन प्लेयर हो गए हैं- कांग्रेस, आईएनएलडी और जेजेपी. दूसरी तरफ बीजेपी गैर जाट जातियों को अपने पाले में गोलबंद करने की रणनीति पर भी काम कर रही है. सीएम नायब सैनी ओबीसी हैं तो प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण.
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बीजेपी ने छोटे-छोटे पॉकेट्स पर फोकस करने के साथ ही दूसरे दलों के ऐसे नेताओं को भी अपने पाले में लाने की कवायद भी तेज कर दी है जो किसी खास बेल्ट में प्रभावी हैं. एक-एक सीट का गणित सेट करने की रणनीति के तहत ही बीजेपी ने अंबाला की मेयर शक्तिरानी शर्मा से लेकर जेजेपी के विधायक जोगीराम सिहाग तक, हाल के दिनों में दूसरे दलों के कई मजबूत चेहरों को पार्टी में शामिल कराया. डेरा फैक्टर भी है. ऐसे में सतर्क कांग्रेस किसी भी तरह से जमीन पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.
5- हुड्डा से ऊपर आलाकमान
ऐसी धारणा बन चुकी है कि हरियाणा कांग्रेस में होता वही है जो मंजूर-ए-हुड्डा होता है. पार्टी में हुड्डा के विरोधी धड़े की अगुवाई कुमारी शैलजा करती हैं. कुमारी शैलजा बड़ा दलित चेहरा हैं, सिरसा से सांसद हैं और सीएम पद की रेस में भी शामिल मानी जाती हैं. दीपेंद्र हुड्डा जहां 'हरियाणा मांगे हिसाब' यात्रा निकाल रहे थे, वहीं कुमारी शैलजा ने भी अंबाला से अलग पदयात्रा निकाली. सूबे में जाट-दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी कांग्रेस के लिए गुटबाजी बड़ी समस्या रही है. बीजेपी ने पिछले दिनों कुमारी शैलजा को सीएम फेस घोषित करने की चुनौती दी तो इसके पीछे भी गुटबाजी को हवा देने की रणनीति ही वजह बताई जा रही थी.
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कांग्रेस चुनाव में बगैर सीएम फेस घोषित किए उतरने की तैयारी में है. अब मुश्किल ये है कि पिछली बार पार्टी ने सीएम फेस घोषित करने से परहेज किया था लेकिन तब हुड्डा ने खुद ही खुद को सीएम फेस घोषित कर लिया था. अब आलाकमान के सामने अपनी सुपीरियरिटी साबित करने की चुनौती भी है. हुड्डा ये साफ कहते आए हैं कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले लड़ेगी और जीतेगी. वह किसी भी दल से गठबंधन के खिलाफ हैं. ऐसे में राहुल का यह स्टैंड 'हरियाणा में हुड्डा ही कांग्रेस' के नैरेटिव की काट की रणनीति भी हो सकती है.