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दिल्ली चुनावः राहुल गांधी सीलमपुर से ही क्यों कर रहे कांग्रेस के अभियान का आगाज? 4 Points में समझिए

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सीलमपुर में चुनावी रैली के जरिये कांग्रेस के अभियान का आगाज करने जा रहे हैं. दिल्ली में खोई सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस की पहली चुनावी रैली के लिए राहुल गांधी ने सीलमपुर को ही क्यों चुना?

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राहुल गांधी के लिए 2025 हर पसंदीदा शगल को अंजाम तक पहुंचाने का मौका दे रहा है.
राहुल गांधी के लिए 2025 हर पसंदीदा शगल को अंजाम तक पहुंचाने का मौका दे रहा है.

दिल्ली के दंगल में आज से कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की एंट्री हो रही है. राहुल गांधी सीलमपुर में रैली के जरिये दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के प्रचार अभियान का आगाज करेंगे. राहुल की यह जनसभा इस लिहाज से भी अहम मानी जा रही है कि कांग्रेस के तेवर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ और तल्ख होंगे या पार्टी के हमलों का केंद्र भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) होगी, यह भी साफ हो जाएगा. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने दिल्ली चुनाव की पहली रैली के लिए सीलमपुर को ही क्यों चुना?

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 1- कांग्रेस का गढ़ रहा है सीलमपुर

साल 1998 से 2013 तक, लगातार 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी के मजबूत उभार के बाद से ही हाशिए पर है. 2015 और 2020, पिछले दो चुनावों में तो कांग्रेस खाता खोलने में भी विफल रही है. ऐसे में अब पार्टी की रणनीति दिल्ली में खोई सियासी जमीन वापस पाने के लिए पुराने गढ़, पुराने समीकरण पर लौटने की है. सीलमपुर भी कांग्रेस का गढ़ रहा है और मुस्लिम-दलित के साथ फॉरवर्ड का कॉम्बिनेशन पार्टी की ताकत. सीलमपुर में रैली से चुनाव अभियान का आगाज इसी रणनीति का हिस्सा है.

2- सीलमपुर में सर्वाधिक मुस्लिम

दिल्ली की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाली सीट है सीलमपुर. इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 55 से 60 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो नतीजा तय करने में अहम भूमिका अदा करते हैं. कभी कांग्रेस के साथ रहा मुस्लिम वर्ग ने आम आदमी पार्टी के उभार के बाद हाथ का साथ झटक झाड़ू थाम लिया. पिछले दो चुनावों से यह सीट आम आदमी पार्टी जीत रही है.

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हाल के दिनों में कुछ बड़े राजनीतिक बदलाव भी सीलमपुर ने देखे हैं. कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे चौधरी मतीन अहमद पिछले दिनों आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे. आम आदमी पार्टी ने चौधरी मतीन के बेटे जुबैर अहमद को चुनाव मैदान में भी उतार दिया है. सत्ताधारी दल के सीटिंग विधायक अब्दुल रहमान ने टिकट कटने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया था. राहुल गांधी का सीलमपुर से चुनाव प्रचार शुरू करना मुस्लिम वोटर्स के बीच पार्टी की सियासी जमीन फिर से मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

3- पुराने समीकरण पर लौटने का संकेत

सीलमपुर में राहुल गांधी की पहली चुनावी रैली को 'जय भीम, जय संविधान' नाम दिया गया है. यह कांग्रेस के दलित-मुस्लिम के पुराने समीकरण की ओर लौटने का भी संकेत माना जा रहा है. इस नाम के सहारे डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की विरासत के सहारे दलितों को फिर से अपने पाले में लाने की कोशिश है तो साथ ही संविधान के सहारे ऐसे वर्गों और मतदाताओं को लामबंद करने की, जो संविधान को लेकर चिंतित हैं.

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राहुल गांधी अपने संबोधनों में बीजेपी को संविधान के मुद्दे पर घेरते रहे हैं, आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाते रहे हैं. दिल्ली में 20 फीसदी से अधिक दलित आबादी है जो गोकुलपुरी, सीमापुरी, तिमारपुर, बुराड़ी, कृष्णा नगर और लक्ष्मी नगर जैसी विधानसभा सीटों के नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका निभाती है. राहुल गांधी की सीलमपुर रैली दलित-मुस्लिम वोटबैंक को एकजुट अपने पाले में वापस लाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है.

4- रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है सीलमपुर

सीलमपुर न सिर्फ विधानसभा, लोकसभा चुनावों के लिहाज से भी रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है. यह इलाका तीन महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों के बीच पुल की तरह काम करता है. ये तीन लोकसभा सीटें हैं- नॉर्थ ईस्ट दिल्ली, ईस्ट दिल्ली और चांदनी चौक. राहुल गांधी का फोकस राज्यों से अधिक राष्ट्रीय राजनीति पर रहा है. ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से भी यह विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है.

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विधानसभा के लिहाज से देखें तो सीलमपुर के साथ ही आसपास की सीटों पर भी दलित-मुस्लिम वोटर विनिंग कॉम्बिनेशन बनाते हैं. दिल्ली में दलित और मुस्लिम आबादी करीब-करीब 30 फीसदी पहुंचती है और इन वर्गों का वोटिंग पैटर्न भी कुछ ऐसा रहा है कि जिस तरफ जाते हैं, लगभग एकमुश्त जाते हैं. ऐसे में अगर पार्टी इन वर्गों को अपने पाले में ला पाती है तो दिल्ली की सियासत में खोई जमीन तलाश रही कांग्रेस के लिए यह संजीवनी की तरह होगा.

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