जम्मू कश्मीर में चुनाव हैं और अनुच्छेद 370 पर सियासत गरम है. कांग्रेस को अपना स्टैंड साफ करने की चुनौती मिल रही है. इस बीच, लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी बुधवार को जम्मू कश्मीर में चुनावी प्रचार का आगाज करने पहुंचे. उन्होंने वहां रामबन और अनंतनाग जिले में दो मेगा रैलियां कीं. राहुल ने जम्मू कश्मीर के लोगों से खुद को जोड़ने की कोशिश की और वहां की समस्याएं गिनाईं. कांग्रेस की सरकार बनने पर स्टेटहुड लौटाने की बात भी कही, लेकिन एक बार फिर अनुच्छेद 370 के मसले पर कोई बयान नहीं दिया. एक हफ्ते पहले भी जब राहुल गांधी जम्मू कश्मीर के दौर पर पार्टी नेताओं का फीडबैक लेने पहुंचे थे, तब भी वे अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर साइलेंट मोड में देखे गए थे. जबकि कांग्रेस की सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणा पत्र में साफ कर दिया है कि अगर हमारी सरकार बनती है तो अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली की जाएगी.
कांग्रेस की चुप्पी पर बीजेपी लगातार हमलावर है. बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस को चुनाव में जाने से पहले अनुच्छेद 370 पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए. इतना ही नहीं, बीजेपी ने जम्मू कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठबंधन को भी आरक्षण और राष्ट्रवाद के खिलाफ बताया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर को लेकर कांग्रेस से 10 सवाल भी पूछे हैं. शाह ने पूछा, क्या राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35A को वापस लाकर जम्मू-कश्मीर को फिर से अशांति और आतंकवाद के युग में धकेलने के नेशनल कॉन्फ्रेंस के निर्णय का समर्थन करती है? क्या कांग्रेस ‘नेशनल कांफ्रेंस’ के जम्मू-कश्मीर में फिर से ‘अलग झंडे’ के वादे का समर्थन करती है? क्या राहुल गांधी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र में उल्लेखित दलितों, गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ियों के आरक्षण को समाप्त करने वाले आरक्षण विरोधी प्रस्ताव का समर्थन करते हैं? नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन करने के बाद कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को देश के सामने अपनी आरक्षण नीति को स्पष्ट करना चाहिए.
अनुच्छेद 370 पर साइलेंट क्यों हैं राहुल गांधी?
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी अनुच्छेद 370 पर सीधे तौर पर टिप्पणी करने से बच रहे हैं. क्योंकि यह मुद्दा जम्मू-कश्मीर की राजनीति और राष्ट्रीय स्तर पर एक अत्यधिक संवेदनशील और विवादास्पद विषय है. अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला मोदी सरकार द्वारा 2019 में लिया गया था और यह बीजेपी का प्रमुख एजेंडा रहा है, इसे लेकर कांग्रेस पार्टी के भीतर भी मतभेद देखने को मिलते रहे हैं. इसकी कई वजहें हो सकती हैं. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर चुनाव में अनुच्छेद 370 पर चुप रहना कांग्रेस की एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति हो सकती है, जो पार्टी के आंतरिक संतुलन और बाहरी राजनीतिक रणनीति को ध्यान में रखते हुए अपनाई जा रही है. अनुच्छेद 370 पर टिप्पणी करने से राहुल को बीजेपी के हमलों का सामना भी करना पड़ सकता है. बीजेपी ने इस मुद्दे को हमेशा से अपने राष्ट्रवाद के एजेंडे से जोड़ा है और कांग्रेस को 'राष्ट्रविरोधी' करार देने की कोशिश की है. राहुल के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वो इस मामले पर चुप रहकर पार्टी के हितों की रक्षा करें.
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370 की बहाली पर असमंजस में रही है पार्टी
एक फैक्ट यह भी है कि पार्टी अनुच्छेद 370 की बहाली के सवाल पर असमंजस में रही है, लेकिन वो जम्मू-कश्मीर में जल्द चुनाव कराने और राज्य का दर्जा बहाल करने पर जोर देती रही है. दिसंबर 2023 में जब अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगी तो कांग्रेस ने आधिकारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा, अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को हटाने पर अब बहस समाप्त हो गई है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब कानून है. हालांकि, पार्टी ने राज्य का दर्जा तत्काल बहाल करने की मांग उठाई थी. इससे पहले 2019 में जब अनुच्छेद 370 हटाया गया तो कांग्रेस का रुख अलग था और पार्टी ने इस फैसले का कड़ा विरोध जताया था.
क्या विवाद से बचना चाहते हैं राहुल गांधी और कांग्रेस?
दरअसल, कांग्रेस में अनुच्छेद 370 पर एकमत नहीं है. कई नेता इसे फिर से बहाल करने की बात करते हैं, जबकि कुछ नेता इसे लेकर चुप हैं. राहुल गांधी और पार्टी हाईकमान इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाकर पार्टी के भीतर किसी भी विवाद से बचना चाहते हैं. इसके अलावा, अनुच्छेद 370 का मुद्दा सिर्फ संवैधानिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है. इस मुद्दे पर कोई भी बयान एक राजनीतिक विवाद पैदा कर सकता है और कांग्रेस इसे लेकर सतर्क रहना चाहती है और कोई नुकसान उठाने के मूड में नहीं है. चूंकि, जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव हैं और पार्टी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, ऐसे में संगठन समग्र रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है. राहुल और कांग्रेस जम्मू-कश्मीर के लोगों की अन्य समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहते है. जैसे बेरोजगारी, विकास, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवा. बुधवार को उनके भाषण में यह बातें स्पष्ट भी हो गई हैं.
राहुल ने जम्मू कश्मीर में क्या कहा है?
राहुल गांधी ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर में अपनी पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी है. राहुल का कहना था कि जम्मू-कश्मीर से स्टेटहुड छीना गया है, लेकिन हम इसे वापस दिलाएंगे. राहुल ने कहा, 1947 के बाद से पहली बार एक स्टेट से उनका अधिकार छीना गया है. सिर्फ कांग्रेस पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि जम्मू-कश्मीर को स्टेटहुड दिया जाए. बीजेपी-संघ कुछ भी कह ले, हम जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनका स्टेटहुड वापस देने जा रहे हैं. राहुल ने आगे कहा, आपका सिर्फ स्टेट नहीं छीना गया, आपके अधिकार, आपका धन आपसे छीना जा रहा है. 1947 में हमने राजाओं को हटाकर लोकतांत्रिक सरकार बनाई. आज जम्मू कश्मीर में राजा बैठा है. उसका नाम एलजी है. यहां एलजी 21वीं सदी के राजा हैं. वे जो चाहते हैं, करते हैं. यहां के लोगों को न तो रोजगार मिलता है और न ही कोई अन्य लाभ. सरकार यह सब बाहरी लोगों को देती है.
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राहुल ने कहा, आपका धन छीनकर बाहर के लोगों को दिया जा रहा है. हमारा पहला कदम जम्मू-कश्मीर को स्टेटहुड वापस देने का होगा. बीजेपी चाहे या ना चाहे, इंडिया गठबंधन दबाव बनाएगा. हमारा पहला कदम यही होगा. हम चाहते थे कि चुनाव से पहले स्टेटहुड मिले और उसके बाद चुनाव हो. बीजेपी ये नहीं चाहती है. वो चाहती है पहले चुनाव हो. राहुल ने भरोसा जताया कि उनकी पार्टी की गठबंधन सरकार अगले महीने बनने जा रही है. राहुल ने जम्मू कश्मीर की सुंदरता की प्रशंसा की और चुनाव के बाद कुछ दिन यहां बिताने की इच्छा जताई.
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अलांयस का ऐलान किया है. 90 सीटों में से 51 पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और 32 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी. पांच सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों में फ्रेंडली फाइट होगी. दो सीटें CPI (M) और पेंथर्स पार्टी को मिली हैं. यहां 18 सितंबर, 25 सितंबर और 8 अक्टूबर को तीन चरणों में मतदान होगा. यह पहली बार है जब जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने और अगस्त 2019 में इसके विशेष दर्जे को रद्द करने के बाद चुनाव हो रहे हैं.