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हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टियों के सामने वजूद का संकट... अर्श से फर्श पर पहुंचे इनेलो-जेजेपी, जानें ऐसा क्यों हुआ

इस बार के लोकसभा चुनाव में जननायक जनता पार्टी सिर्फ 0.87 प्रतिशत मत हासिल कर सकी, वहीं इंडियन नेशनल लोकदल को मात्र 1.74 फीसदी वोट मिले. जाट समुदाय इनेलो और जेजेपी का प्राथमिक वोट बैंक रहा है. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जाट कांग्रेस की तरफ चले गए. ऐसे में पार्टी का अस्तित्व बचाए रखने के लिए इस विधानसभा चुनाव में जहां इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया हैं, वहीं जेजेपी ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से हाथ मिलाया है. 

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जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला और इनेलो महासचिव अभय चौटाला. (PTI Photo)
जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला और इनेलो महासचिव अभय चौटाला. (PTI Photo)

हरियाणा में राष्ट्रीय पार्टियों की बढ़ती लोकप्रियता और प्रभाव क्षेत्रीय दलों पर भारी पड़ रहा है. विगत कुछ वर्षों के चुनावी आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. साल 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिली थी. दोनों दलों का वोट शेयर क्रमशः 36.49 और 28.08 प्रतिशत रहा था. मत प्रतिशत के लिहाज से जननायक जनता पार्टी 10 सीटें जीतकर तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. उसे 14.80 फीसदी वोट मिले थे. 

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वहीं 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा 33.5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही थी. इंडियन नेशनल लोकदल 24.11 प्रतिशत वोट लेकर दूसरे और कांग्रेस 20.58 फीसदी मतों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी. साल 2018 तक इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) हरियाणा की लोकप्रिय और दमदार क्षेत्रीय पार्टी हुआ करती थी. लेकिन चौटाला परिवार में फूट पड़ी और इसका सीधा असर 1996 में चौधरी देवीलाल द्वारा स्थापित पार्टी पर पड़ा. दुष्यंत चौटाला ने अपने पिता अजय सिंह चौटाला के साथ इंडियन नेशनल लोकदल से रिश्ता तोड़ा और जननायक जनता पार्टी के नाम से नई पार्टी स्थापित की.

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लोकसभा चुनाव में जेजेपी-इनेलो का सुपड़ा साफ

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इसके बाद 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनेलो का मत प्रतिशत सिर्फ 2.44 प्रतिशत रह गया और पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई. वहीं जेजेपी ने 14.80 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीतने में कामयाब रही और बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हुई. राजनीतिक विश्लेषकों ने संभावना जतायी कि जेजेपी अब इनेलो की जगह हरियाणा की सबसे मजबूत क्षेत्रीय पार्टी के रूप में उभरेगी. लेकिन सिर्फ 5 साल के अंदर ही दुष्यंत चौटाला की पार्टी भी बिखरनी शुरू हो गई. पार्टी के 10 में से चार विधायक देवेंद्र सिंह बबली, जोगीराम सिहाग, अनूप धानक और रामकुमार गौतम भाजपा में शामिल हो गए. वहीं तीन कांग्रेस के पाले में चले गए. 

अब जेजेपी के कुनबे में सिर्फ तीन विधायक रह गए, जिनमें स्वयं दुष्यंत चौटाला और उनकी माता नैना चौटाला भी शामिल हैं. जेजेपी और इनेलो की लोकप्रियता किस हद तक गिर चुकी है, इसका अंदाजा 2024 के लोकसभा चुनाव  नतीजों से लगाया जा सकता है. इस बार के लोकसभा चुनाव में जननायक जनता पार्टी सिर्फ 0.87 प्रतिशत मत हासिल कर सकी, वहीं इंडियन नेशनल लोकदल को मात्र 1.74 फीसदी वोट मिले. जाट समुदाय इनेलो और जेजेपी का प्राथमिक वोट बैंक रहा है. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जाट कांग्रेस की तरफ चले गए. ऐसे में पार्टी का अस्तित्व बचाए रखने के लिए इस विधानसभा चुनाव में जहां इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया हैं, वहीं जेजेपी ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से हाथ मिलाया है. 

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जेजेपी और इनेलो के सामने वजूद बचाने की चुनौती

हरियाणा में बसपा का जनाधार भी लगातार खिसकता जा रहा है. वहीं आजाद समाज पार्टी पहली बार हरियाणा में चुनाव लड़ेगी. जेजेपी ने एएसपी को 20 सीटें दी हैं. बहुजन समाज पार्टी हरियाणा में कभी एक सीट से ज्यादा नहीं जीत पाई. उसे 2005 और 2014 में एक सीट पर जीत मिली, लेकिन 2019 में बसपा का खाता नहीं खुला. बसपा का मत प्रतिशत 2005 में 3.5 फीसदी था जो 2019 में सिर्फ 0.16 प्रतिशत रह गया. पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक गुरमीत सिंह के मुताबिक जेजेपी और इनेलो का वोट बैंक खिसक चुका है और अबकी बार ये दोनों पार्टियां सिर्फ अपना वजूद बचाने के लिए चुनाव लड़ रही हैं.

दिलचस्प बात यह है कि दोनों पार्टियां खुद को किंग मेकर के तौर पर प्रस्तुत कर रही हैं. इनेलो के महासचिव अभय चौटाला ने दावा किया है कि उनकी पार्टी कम से कम 15 सीटें जीत सकती है. वहीं जेजेपी ने नेता दुष्यंत चौटाला कांग्रेस और भाजपा दोनों को धूल चटाने का दावा कर रहे हैं. प्रोफेसर गुरमीत कहते हैं, 'दावा कुछ भी हो, लेकिन हकीकत है कि इन दोनों पार्टियों की लोकप्रियता लगातार गिर रही है. इनेलो और जेजेपी ये सोचकर चुनाव लड़ रही हैं कि वे अगर सरकार बनाने की हालत में नहीं तो कम से कम किंग मेकर की भूमिका में जरूर सफल होंगी.'

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हरियाणा में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर

चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक अबकी बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में ज्यादातर सीटों पर मुकाबला सीधा होगा यानी कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर देखने को मिलेगी. कुछ विधानसभा क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. विश्लेषक इसके लिए क्षेत्रीय पार्टियों की लगातार गिर रही साख को जिम्मेवार मान रहे हैं. प्रोफेसर गुरमीत सिंह के मुताबिक साल 2018 तक इनेलो हरियाणा में राष्ट्रीय दलों को जबरदस्त टक्कर देती आई थी, लेकिन टूट के बाद पार्टी में दमखम नहीं रहा. 

क्षेत्रीय पार्टी सिर्फ एक बार पूरा कर पाई है कार्यकाल

राव वीरेंद्र सिंह 1967 में विशाल हरियाणा पार्टी के बैनर तले क्षेत्रीय पार्टी से बनने वाले पहले मुख्यमंत्री थे, जिनकी सरकार सिर्फ 241 दिन चली. 1999 में बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाकर दूसरे क्षेत्रीय पार्टी के मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाई, लेकिन इसका कार्यकाल सिर्फ 3 साल 74 दिन रहा. इंडियन नेशनल लोक दल ने 1999 और 2000 में दो बार सरकार बनाई. इनेलो के मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का पहला कार्यकाल 224 दिन का रहा, लेकिन उन्होंने 2000 से 2005 के बीच अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. इससे पहले ओम प्रकाश चौटाला ने जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी से चुनाव जीतकर भी सरकारें बनाई थीं. लेकिन 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में राजनीतिक हालात पूरी तरह बदल चुके हैं. क्षेत्रीय पार्टियां हाशिए पर आ चुकी हैं और इनके वजूद पर सवालिया निशान लग चुका है.

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