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'गैरों में कहां दम था, मुझे हमेशा जयचंदों ने ही मारा', दौसा में भाई की हार पर छलका किरोड़ी लाल मीणा का दर्द

दौसा से बीजेपी ने कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को टिकट दिया था. उनके सामने कांग्रेस के दीन दयाल बैरवा थे. उन्होंने 2300 वोटों के अंतर से जगमोहन मीणा को मात दी. भाई की हार पर किरोड़ी लाल मीणा का दर्द छलका है.

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बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री करोड़ी लाल मीणा. (Photo: X/@DrKirodilalBJP)
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री करोड़ी लाल मीणा. (Photo: X/@DrKirodilalBJP)

राजस्थान में विधानसभा की 7 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी ने 5 पर जीत दर्ज की, जबकि दौसा सीट पर उसे करीबी हार का सामना करना पड़ा. दौसा से बीजेपी ने कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को टिकट दिया था. उनके सामने कांग्रेस के दीन दयाल बैरवा थे. उन्होंने 2300 वोटों के अंतर से जगमोहन मीणा को मात दी. भाई की हार पर किरोड़ी लाल मीणा का दर्द छलका है.

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उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर एक भावुक पोस्ट में दौसा सीट पर अपने भाई की हार के लिए भितरघात को दोषी ठहराया है. राजस्थान के ग्रामीण विकास एवं कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने अपने लोगों पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए लिखा, '45 साल हो गए. राजनीति के सफर के दौरान सभी वर्गों के लिए संघर्ष किया. जनहित में सैंकड़ों आंदोलन किए. साहस से लड़ा. बदले में पुलिस के हाथों अनगिनत चोटें खाईं. आज भी बदरा घिरते हैं तो समूचा बदन कराह उठता है. मीसा से लेकर जनता की खातिर दर्जनों बार जेल की सलाखों के पीछे रहा.'

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उन्होंने आगे लिखा, 'संघर्ष की इसी मजबूत नींव और सशक्त धरातल के बूते दौसा का उपचुनाव लड़ा. जनता के आगे संघर्ष की दास्तां रखी. घर-घर जाकर वोटों की भीख भी मांगी. फिर भी कुछ लोगों का दिल नहीं पसीजा. भितरघाती मेरे सीने में वाणों की वर्षा कर देते तो मैं दर्द को सीने में दबा सारी बातों को दफन कर देता. लेकिन उन्होंने मेघनाथ बनकर मेरे लक्ष्मण जैसे भाई पर शक्ति का बाण चला डाला. साढ़े चार दशक के संघर्ष से न तो हताश हूं और न ही निराश. पराजय ने मुझे सबक अवश्य सिखाया है लेकिन विचलित नहीं हूं.'

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किरोड़ी लाल मीणा ने लिखा, 'आगे भी संघर्ष के इसी पथ पर बढते रहने के लिए कृतसंकल्पित हूं. गरीब, मजदूर, किसान और हरेक दुखिया की सेवा के व्रत को कभी नहीं छोड़ सकता. परंतु ह्रदय में एक पीड़ा अवश्य है. यह बहुत गहरी भी है और पल-प्रति-पल सताने वाली भी. जिस भाई ने परछाईं बनकर जीवन भर मेरा साथ दिया, मेरी हर पीड़ा का शमन किया, उऋण होने का मौका आया तो कुछ जयचंदों के कारण मैं उसके ऋण को चुका नहीं पाया. मुझमें बस एक ही कमी है कि मैं चाटुकारिता नहीं करता. इसी प्रवृत्ति के चलते मैंने राजनीतिक जीवन में बहुत नुकसान उठाया है. स्वाभिमानी हूं. जनता की खातिर जान की बाजी लगा सकता हूं. गैरों में कहां दम था, मुझे तो सदा ही अपनों ने ही मारा है.'

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