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दिल्ली चुनाव का बजा बिगुल, जानें- AAP, BJP और कांग्रेस की ताकत और कमजोरियां

आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के चुनावों में क्रमशः 67 और 62 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की थी. बीजेपी को 2015 में 3 और 2020 में 8 सीटों से संतोष करना पड़ा था, जबकि कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी. अब 2025 के इस चुनाव में प्रत्येक पार्टी के SWOT यानी ताकत, कमजोरियों, अवसर और खतरों के बारे में भी जानना जरूरी है.

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नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल के सामने बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित मैदान में हैं
नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल के सामने बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित मैदान में हैं

चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनावों की बहुप्रतीक्षित तारीखों की मंगलवार को घोषणा कर दी. मुकाबला आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच है. तीनों पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली में लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करने के लिए जोर लगा रही है, जबकि भाजपा ने बाजी पलटने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस भी लड़ाई में है, जो अकेले चुनाव लड़ रही है. 

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आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के चुनावों में क्रमशः 67 और 62 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की थी. बीजेपी को 2015 में 3 और 2020 में 8 सीटों से संतोष करना पड़ा था, जबकि कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी. अब 2025 के इस चुनाव में प्रत्येक पार्टी के SWOT यानी ताकत, कमजोरियों, अवसर और खतरों के बारे में भी जानना जरूरी है.

AAP का SWOT विश्लेषण-

दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी में जुटी आम आदमी पार्टी (आप) को जीत की हैट्रिक लगाने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगाना होगा.

ताकत:

अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में AAP के पास एक महत्वपूर्ण ताकत है. निस्संदेह दिल्ली में सबसे प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति केजरीवाल ने एक दशक तक सत्ता बनाए रखी है, जिसका मुख्य कारण बिजली, पानी और बस सब्सिडी जैसी लोकप्रिय योजनाएं हैं जो मतदाताओं को अच्छी तरह से प्रभावित करती हैं. इन पहलों ने शहरी आबादी के साथ AAP के तालमेल को निर्विवाद रूप से मजबूत किया है.

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कमजोरियां:

AAP कुछ कमजोरियों से जूझ रही है. भ्रष्टाचार के आरोपों ने इसके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं. खास तौर पर आबकारी नीति के मामले में. वहीं विधायकों के प्रति स्थानीय लोगों में असंतोष देखने को मिल रहा है. इसके कारण उम्मीदवारों के चयन में बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत पड़ी. यमुना की सफाई, पर्याप्त जल आपूर्ति सुनिश्चित करने और स्वच्छता और बुनियादी ढांचे में सुधार जैसे कई महत्वपूर्ण वादों को पूरा करने में AAP की विफलता ने इसकी उपलब्धियों को और धुंधला कर दिया है. इसके अलावा, शहरी और ग्रामीण बुनियादी ढांचे से संबंधित निवेश में उल्लेखनीय कमी है, जो विवाद का विषय बना हुआ है.

अवसर:

इन चुनौतियों के बावजूद AAP के पास महत्वपूर्ण अवसर हैं. विपक्षी पार्टियां- कांग्रेस और भाजपा के पास राष्ट्रीय राजधानी में कमजोर नेतृत्व होने के कारण AAP के पास लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का एक उचित रास्ता है. ऐसी जीत से न केवल एक मजबूत स्थानीय ताकत के रूप में उसकी स्थिति मजबूत होगी, बल्कि एक उभरते राष्ट्रीय विपक्ष के रूप में उसकी स्थिति भी मजबूत होगी, जो लोकसभा चुनावों में अपनी बार-बार जीत के बावजूद दिल्ली में बीजेपी को दूर रखने में कामयाब रहा है.

खतरे:

फिर भी, AAP के लिए खतरे बहुत बड़े हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों की चिपचिपाहट इसकी भ्रष्टाचार विरोधी विश्वसनीयता को कम कर सकती है, जो इसके मूलभूत नारों में से एक है. इसके अलावा, मुख्यमंत्री के आवास से संबंधित कथित अपव्यय जैसे विवाद इसकी छवि के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. अगर कांग्रेस और भाजपा केजरीवाल की ईमानदारी को चुनौती देने में सफल हो जाती है, तो इससे राष्ट्रीय राजनीति में उनके प्रभाव पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है.

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भाजपा का SWOT विश्लेषण:

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राष्ट्रीय राजधानी में अपना गढ़ जीतने के लिए कड़ी रणनीति बना रही है. SWOT विश्लेषण से दिल्ली की राजनीति में अपना प्रभुत्व पुनः प्राप्त करने की उनकी संभावित यात्रा के बारे में जानकारी मिलती है.

ताकत:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गतिशील नेतृत्व में भाजपा एक मजबूत चुनाव जीतने वाली मशीन के रूप में विकसित हुई है. पिछले लोकसभा चुनावों में चुनौतियों का सामना करने के बावजूद पार्टी ने लचीलापन दिखाया और हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्य चुनावों में महत्वपूर्ण वापसी की. दिल्ली में भी इसी रणनीति को दोहराने की योजना बनाते हुए, भाजपा के पास एक बड़ा नेतृत्व कैडर है जो हाई-वोल्टेज अभियानों को बढ़ावा देता है. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से समर्थन और संघ परिवार से मजबूत समर्थन उनके आधार को और मजबूत करता है.

कमजोरियां:

ऐतिहासिक रूप से भाजपा ने 25 वर्षों से अधिक समय तक दिल्ली में खुद को एक व्यवहार्य स्थानीय विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिए संघर्ष किया है. इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण प्रेरक स्थानीय नेतृत्व की कमी है, जिसके कारण आंतरिक गुटबाजी होती है. भाजपा को अरविंद केजरीवाल की आक्रामक और करिश्माई अभियान रणनीतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करना भी चुनौतीपूर्ण लगता है, जो आम आदमी पार्टी (आप) को लाभप्रद स्थिति में रखता है.

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अवसर:

हरियाणा और महाराष्ट्र में हाल ही में मिली अप्रत्याशित जीत ने दिल्ली में AAP जैसे पसंदीदा प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ बाधाओं को दूर करने का आत्मविश्वास जगाया है. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण केजरीवाल की पार्टी पर दबाव बढ़ रहा है और कांग्रेस के मजबूत होने से AAP के वोट बैंक में विभाजन की संभावना है, ऐसे में भाजपा को दिल्ली में नियंत्रण हासिल करने का अवसर दिख रहा है. अगर पार्टी जीत दर्ज करती है तो इससे 1993 से 32 साल का सूखा खत्म होगा, जो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मील का पत्थर साबित होगा.

खतरे:

अगर दिल्ली में फिर से बीजेपी जीत दर्ज करने में विफल साबित होती है तो इससे देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच सकता है. इस तरह के परिणाम से प्रमुख नेताओं के साख पर सवाल उठना स्वभावी होगा. साथ ही स्थानीय सीएम चेहरे को प्रोजेक्ट किए बिना पीएम मोदी के प्रभाव पर निर्भर रहने की केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति को भी झटका लगेगा.

इन गतिशीलता का अपने लाभ के लिए उपयोग करके, भाजपा का टारगेट दिल्ली के जटिल राजनीतिक परिदृश्य को सफलतापूर्वक नेविगेट करना है.

कांग्रेस का SWOT विश्लेषण:

कांग्रेस इस चुनाव में खुद को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पाती है. इसकी ताकत, कमजोरियों, अवसरों और खतरों का विश्लेषण करने पर पार्टी के लिए एक मिली-जुली तस्वीर सामने आती है.

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ताकत:

हाल ही में हुई असफलताओं के बावजूद कांग्रेस में अभी भी कई प्रमुख नेता हैं, जिनमें से कई कभी प्रभावशाली व्यक्ति थे और जिनकी जन-आकर्षण शक्ति बहुत ज़्यादा थी. पार्टी ने प्रमुख जनसांख्यिकी, विशेष रूप से मुसलमानों और दलितों के बीच फिर से अपनी पकड़ बनाना शुरू कर दिया है. इसका श्रेय कुछ हद तक राहुल गांधी जैसे केंद्रीय नेताओं को दिया जा सकता है, जिन्होंने संवैधानिक और अल्पसंख्यक मुद्दों को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया है.

कमजोरियां:

हालांकि, पार्टी का संगठनात्मक ढांचा काफी कमजोर हो गया है. 15 साल तक दिल्ली पर शासन करने के बाद कांग्रेस को अब अपने राज्य नेतृत्व में पहले जैसी स्थिति नहीं दिखती. आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जैसे प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कांग्रेस जूझती नजर आ रही है. अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति न बराबर है.

अवसर:

पिछले विधानसभा चुनावों में 2020 और 2015 में 5% से भी कम वोट और शून्य सीटें मिलने के कारण कांग्रेस के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है और पाने के लिए बहुत कुछ है. दिल्ली में AAP सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावनाएं, राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के प्रति असंतोष के साथ मिलकर कांग्रेसके लिए जमीन पर फिर से कब्ज़ा करने का अवसर प्रदान करती हैं. अल्पसंख्यक और दलित मतदाताओं को रणनीतिक रूप से टारगेट करके, कांग्रेस संभावित रूप से अपने समर्थन आधार का पुनर्निर्माण कर सकती है.

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खतरे:

फिर भी चुनौतियां बड़ी हैं. दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), विधानसभा और लोकसभा चुनावों सहित हाल के चुनावों में पार्टी लगभग खत्म हो गई है. आखिरी उल्लेखनीय सफलता 2009 के लोकसभा चुनावों में मिली थी. एक और बड़ी हार पार्टी को बहुत नीचे ले जा सकती है, जिससे जल्द ही अपनी संभावनाओं को फिर से जीवंत करना लगभग असंभव हो जाएगा.

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