पश्चिम बंगाल की सियासत में मुकुल रॉय, अर्जुन सिंह, सौमित्र खान, अनुपम हाजरा, शंकु देब पांडा, शुभेंदु अधिकारी, मिहिर गोस्वामी ये वो नाम हैं, जिन्होंने ममता बनर्जी को सत्ता का सिंहासन दिलाने के लिए जी जान लगा दी थी. लेकिन इन सारे नेताओं का टीएमसी से मोहभंग हो गया और अब बंगाल में बीजेपी का कमल खिलाने की जुगत में हैं.
पश्चिम बंगाल की सियासत में ममता बनर्जी के सबसे करीबी माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी ने टीएमसी से नाता तोड़ लिया है. उन्होंने सारे पदों से इस्तीफा दे दिया है केंद्रीय मंत्री शाह की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया. ममता के वो सारे सिपहसालार एक-एक कर साथ छोड़ते जा रहे हैं, जिन्होंने दस साल ममता बनर्जी को सत्ता के सिंहासन पर बैठाने के लिए जी जान एक कर दी थी. वक्त और सियासत ने ऐसी जगह खड़ा कर दिया है कि अब वही नेता ममता को सत्ता से बेदखल करने की कवायद में है. (Photo credit: PTI) (कुबूल अहमद/श्याम सुंदर गोयल की रिपोर्ट)
सब्यसाची दत्ता
सब्यसाची दत्ता टीएमसी के ऐसे नेता थे, जो ममता बनर्जी के यहां ही रहा करते थे. ममता के करीबी नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन उनका भी टीएमसी से मोहभंग हो गया. वो बिधानगर से मेयर रहे हैं राजारहाट सीट से विधायक रह चुके हैं. 2019 में उनके रिश्ते ममता बनर्जी से ऐसे बिगड़े कि सब्यसाची ने मेयर पद से इस्तीफा दे दिया और अक्टूबर 2019 में बीजेपी का दामन थाम लिया. (Photo credit: Facebook)
अर्जुन सिंह
टीएमसी में अर्जुन सिंह की अपनी तूती बोलती थी, लेकिन ममता बनर्जी के साथ ऐसे रिश्ते बिगड़े कि उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी. अर्जुन सिंह ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बैरकपुर लोकसभा सीट से सांसद बने. उनकी बीजेपी में एंट्री कराने में मुकुलरॉय की अहम भूमिका रही थी. अर्जुन सिंह की नाराजगी की असल वजह यह थी कि बैरकपुर सीट से ममता ने दिनेश त्रिवेदी को मैदान में उतारा था. इसी के चलते उन्होंने ममता का साथ छोड़ा और बीजेपी के कर्णधार बने हुए हैं. (Photo credit: ANI)
मुकुल रॉय
ममता बनर्जी के राजनीतिक चाणक्य कहे जाने वाले मुकुल रॉय बीजेपी का दामन थामकर 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना सियासी असर दिखा चुके हैं. मुकुल रॉय टीएमसी की बुनियाद रखने वाले नेताओं में थे, जिन्होंने बंगाल की सियासत में ममता बनर्जी के लिए जगह बनाने के लिए जी जान लगा दी थी.
टीएमसी संगठन के बूथ मैनेजमेंट के मैनेजर माने जाते थे, लेकिन ममता के दूसरी बार सीएम बनने के बाद उनके रिश्ते बिगड़ गए और आखिरकार उन्होंने टीएमसी छोड़ दी. 2017 में ममता का साथ छोड़ कर बीजेपी जॉइन करने वाले मुकुल रॉय के नए संगठन में अच्छे दिन आने में काफी देर लगी. अभी कुछ ही दिन पहले जेपी नड्डा ने जब अपनी टीम बनायी थी तो मुकुल रॉय को बीजेपी में उपाध्यक्ष बनाया गया है. (Photo credit: Facebook)
अनुपम हाजरा
ममता बनर्जी के युवा ब्रिगेड का चेहरा अनुपम हाजरा थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले टीएमसी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला देते हुए उन्हें निकाल दिया था. बोलपुर से टीएमसी से अनुपम हाजरा सांसद रह चुके हैं और मौजूदा समय में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. दक्षिण 24 परगना जिला में हाजरा का राजनीतिक आधार है. (Photo credit: Facebook)
मिहिर गोस्वामी
बंगाल के कूच बिहार दक्षिण से टीएमसी विधायक रहे मिहिर गोस्वामी ममता के शुरुआती दौर के साथी रहे हैं, लेकिन अब वो बीजेपी के सिपहसालार बन चुके हैं. मिहिर स्वच्छ छवि वाले नेता माने जाते हैं और उन्होंने पार्टी की खामियों को लेकर मोर्चा खोल दिया था, जिसे लेकर पार्टी सुप्रीमो काफी खफा हो गई थीं. ऐसे में उन्होंने नवंबर के आखिरी सप्ताह में टीएमसी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है. जमीनी स्तर पर काफी मजबूत पकड़ वाले नेता माने जाते हैं. (Photo credit: PTI)
शोभन चटर्जी
ममता बनर्जी के राइट हैंड माने जाने वाले शोभन चटर्जी भी साथ छोड़ चुके हैं. ममता के हर एक आंदोलन में साथ खड़े रहने वाले शोभन चटर्जी के बैशाखी बंद्योपाध्याय के साथ रिश्ते ने उन्हें टीएमसी से दूर कर दिया. ममता बनर्जी ने पार्टी बैठक में शोभन के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की थी, जिसके बाद से उनका टीएमसी से मोहभंग गया. साल 2019 में उन्होंने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. (Photo credit: Facebook)
शुभेंदु अधिकारी
ममता बनर्जी को सत्ता दिलाने में सबसे बड़े मददगार नंदीग्राम आंदोलन के आर्किटेक्ट माने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी का टीएमसी से मोहभंग हो गया है. शुभेंदु अधिकारी का टीएमसी छोड़ना ममता बनर्जी के लिए बड़ा सियासी झटका माना जा रहा है. वो पूर्वी मिदनापुर के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं.
शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी और छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी दोनों ही टीएमसी सांसद हैं. उन्होंने अपने असर वाले इलाकों की 49 में से 36 सीटें ममता बनर्जी की झोली में भर दी थीं. उन्होंने सारे पदों से इस्तीफा दे दिया है केंद्रीय मंत्री शाह की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया. (Photo credit: Facebook)
सौमित्र खान
ममता बनर्जी के एक दौर में सबसे भरोसेमंद नेताओं में सौमित्र खान शामिल थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. इसके बाद विष्णुपुर सीट से बीजेपी के टिकट पर सौमित्र खान सांसद बनने में कामयाब रहे. पश्चिम बंगाल में सौमित्र खान बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाल रहे हैं और टीएमसी के युवा को बड़ी तादाद में अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे. (Photo credit: Facebook)
शंकु देब पांडा
टीएमसी संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने वाले नेताओं में शंकु देब पांडा का नाम भी आता है. टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था, जो ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक तौर पर बड़ा झटका था. शंकु देब पांडा को बीजेपी में लाने में मुकुल रॉय की अहम भूमिका मानी गई थी. (Photo credit: Facebook)
शीलभद्र दत्त
बैरकपुर सीट से टीएमसी विधायक शीलभद्र दत्त की नाराजगी के पीछे पीके यानी प्रशांत किशोर माने जाते हैं. शीलभद्र दत्त लगातार पीके पर सवाल खड़े कर रहे थे. उन्होंने कहा था कि 10 साल की उम्र से राजनीति कर रहा हूं और अब एक मार्केटिंग कंपनी बताएगी कि हम कैसे चुनाव लड़ेंगे. ऐसे वातावरण में राजनीति नहीं की जा सकती और न ही पार्टी को आगे बढ़ाया जा सकता है. (Photo credit: Facebook)