तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सुप्रीमो ममता बनर्जी दो दिन के दौरे पर आदिवासी क्षेत्र में पहुंचीं थीं. उन्होंने मंगलवार को पुरुलिया में जनसभा को संबोधित किया और इसके एक दिन बाद वो बांकुरा जिले में पहुंचीं. इन दोनों जिलों को जंगल महल का हिस्सा कहा जाता है, जो कभी माओवादी विद्रोह का केंद्र हुआ करता था.
प्रचार के दौरान ममता बनर्जी उन दूरदराज के गांवों पर जोर दे रही हैं जहां बंगाल के गरीब आदिवासियों के घर हैं. इन गांवों या निर्वाचन क्षेत्रों पर उनके जोर देने के पीछे क्या कारण हो सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने खाते में भारी संख्या में आदिवासी वोट बटोरे थे. परंपरागत रूप से आदिवासी वोट लेफ्ट के खाते में जाते हैं क्योंकि वामपंथी सीधे तौर पर आदिवासी आंदोलन का हिस्सा रहे और उनके लिए लड़ाई भी लड़े. लेकिन ममता बनर्जी ने आदिवासी वोटों को अपने पक्ष में मोड़ा और बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं. अब बीजेपी उन्हीं आदिवासियों के वोट को आगामी विधानसभा चुनाव में अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है.
बंगाल में 5.8 फीसदी आदिवासी
2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की जनसंख्या 52 लाख 96 हजार 963 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5.8 फीसदी है. बंगाल में आदिवासी आबादी ज्यादातर पुरुलिया, बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर और झाड़ग्राम, उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूचबिहार के जंगल महल जिलों में केंद्रित है. हुगली और बीरभूम जिलों में भी आदिवासी आबादी पाई जा जाती है.
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बांकुरा जिले में एक आदिवासी परिवार के यहां खाना खाया था. अब ममता बनर्जी की रणनीति है कि वो उस जगह पर जाएं और ये सुनिश्चित करें कि ज्यादा नुकसान नहीं हुआ हो. सीएम ममता बनर्जी की रणनीति है कि बीजेपी लोगों में गलतफहमी पैदा करना चाहती है और वो (ममता बनर्जी) वहां जाकर असली तस्वीर बताना चाहती हैं. ममता बनर्जी कहती हैं कि आदिवासी के यहां खाना खाना बीजेपी का चुनावी स्टंट है. ममता बनर्जी ने आदिवासियों के लिए पक्का मकान और मुफ्त राशन का वादा किया है.
आदिवासियों को लुभाने में जुटीं ममता बनर्जी
ममता बिरसा मुंडा के सहारे भी आदिवासियों को लुभाने में जुटी हैं. उन्होंने बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) पर राष्ट्रीय अवकाश की मांग की है. हालांकि, उन्होंने इस साल से बंगाल में छुट्टी का ऐलान किया है. संयोग से, बंगाल की कुल 294 विधानसभा सीटों में से 84 एससी और एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में इनमें से ज्यादातर सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. पिछले लोकसभा चुनाव में पुरुलिया, पश्चिम मिदनापुर, झाड़ग्राम, बांकुरा और बीरभूम के अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों ने बीजेपी का समर्थन किया था और वो यहां की 8 में से 5 सीटों पर विजयी रही थी.
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ममता बनर्जी ने आदिवासी लोगों के लिए विभिन्न विकास कार्य और शिक्षा कार्यक्रमों को लागू किया है. यहां तक कि झारग्राम के आदिवासियों के लिए एक विशेष पैकेज की घोषणा की है. झारग्राम जिले में आदिवासियों की अच्छी खासी जनसंख्या है.
इसके अलावा, झारग्राम में ममता बनर्जी ने राज्य सरकार की जमीन को रामकृष्ण मिशन को सौंप दिया, जो आदिवासी आबादी के बीच काम करता है. उन्होंने आदिवासियों के विकास के लिए विभिन्न गैर सरकारी संगठनों को भी शामिल किया है.
शुरू में ममता बनर्जी ने खुद जंगल महल में विकास गतिविधियों का समन्वय किया, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अन्य प्रशासनिक गतिविधियों की ओर ध्यान केंद्रित किया, जिससे निचले स्तर पर नौकरशाही और पार्टी के बीच अराजकता फैल गई. गुंडों ने संगठन में घुसपैठ की जिससे क्षेत्र में शांति को नुकसान पहुंचा.
इस अराजकता का फायदा आरएसएस और उसे जुड़े संगठनों ने उठाया. उन्होंने क्षेत्र में विभिन्न विकास कार्यों को अंजाम दिया. जंगल महल कभी माओवादियों का गढ़ था और ममता को इस क्षेत्र में उग्रवाद को समाप्त करने और शांति की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता था. उन्होंने अब लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को जंगल महल के दौरे पर नियुक्त किया है.
(ये लेख जयंत घोषाल ने लिखा है जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मीडिया एडवाइजर हैं.)
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