पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दक्षिण का रुख किया है. विधानसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं और बीजेपी ने ममता बनर्जी का गढ़ समझे जाने वाले दक्षिण बंगाल को घेरने के लिए सेना तैयार कर ली है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में दक्षिण बंगाल का दो दिवसीय दौरा किया. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भगवा पार्टी के नेताओं के बीच वाकयुद्ध से इस जंग की शुरुआत भी हो चुकी है. ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर में बीते गुरुवार को जेपी नड्डा और बंगाल बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के काफिले पर हमला किया गया.
नड्डा ने डायमंड हार्बर को अपनी रैली के लिए चुना, जिसका अपना महत्व है. राज्य की राजधानी कोलकाता से मात्र 50 किलोमीटर दूर स्थित इस सीट से अभिषेक बनर्जी ने लगातार दूसरी बार 3.2 लाख वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की. दरअसल, घनी आबादी वाले दक्षिण 24 परगना जिले को टीएमसी के गढ़ के रूप में जाना जाता है. 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने जिले की 31 में से 29 सीटें जीतकर क्लीन स्वीप किया था.
भाजपा को अच्छी तरह से पता है कि 2021 में ममता को मात देने के लिए उसे उनके गढ़ दक्षिण बंगाल में सेंध लगाने की जरूरत है. 294 सीटों वाली विधानसभा में 64 सीटें सिर्फ 24 परगना उत्तर और दक्षिण को मिलाकर हैं. 2016 में बीजेपी को यहां एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी.
बीजेपी झोंक रही पूरी ताकत
ये हैरानी की बात नहीं है कि भाजपा दक्षिण और उत्तर 24 परगना, दोनों जिलों में अपनी ताकत झोंक रही है. उत्तर 24 परगना में पार्टी ने बढ़त हासिल कर ली है क्योंकि टीएमसी से बीजेपी में आए दिग्गज नेता मुकुल रॉय भी इसी क्षेत्र से हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने टीएमसी से बैरकपुर और बनबांव दो अहम लोकसभा सीटें छीन ली थीं. अब पार्टी आक्रामक रूप से मतुआ समुदाय को लुभाने में लगी है जिनकी इन दोनों क्षेत्रों में अच्छी-खासी संख्या है. इसलिए नड्डा ने अभिषेक बनर्जी के घरेलू मैदान डायमंड हार्बर पर मोर्चा खोला तो गृहमंत्री अमित शाह पिछले ही महीने उत्तर 24 परगना में मतुआ समुदाय के लोगों के बीच पहुंचे थे.
बंगाल में बीजेपी लगातार अपना संगठन खड़ा करने का प्रयास कर रही है. संभव है कि तृणमूल कांग्रेस नेता शुभेंदु अधिकारी भी बीजेपी कैंप में शामिल हो जाएं. ऐसा होता है तो दक्षिण बंगाल के एक अन्य महत्वपूर्ण जिले पूर्वी मिदनापुर में पार्टी को सीधे एंट्री मिल जाएगी. ये जिला शुभेंदु अधिकारी के गढ़ के रूप में जाना जाता है. यहां के नंदीग्राम में चले भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन ने ममता को जबरदस्त समर्थन दिलाया था जिसके जरिये वे राज्य की सत्ता तक पहुंच गईं.
एक और चीज बीजेपी के पक्ष में जा सकती है और वो है टीएमसी के भीतर अभिषेक बनर्जी खेमे से असंतुष्ट नेताओं की गुटबाजी.
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक संदीप घोष का कहना है, “ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी की बड़ी समस्या बीजेपी से निपटने के बजाय तृणमूल कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी है. तृणमूल कांग्रेस में प्रशांत किशोर की एंट्री ने ममता और उनके प्रति समर्पित दूसरे पायदान के पार्टी नेताओं के बीच एक खाई पैदा की है.”
ममता के कुछ निष्ठावान लोग खुद को दरकिनार और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, इसलिए आने वाले दिनों में और भी नेता पार्टी छोड़ सकते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक इमान कल्याण लाहिड़ी ने कहा, “राज्य के ज्यादातर लाभार्थियों तक पहुंच रही केंद्र सरकार की योजनाएं और उत्तर बंगाल में विकास इस हिस्से में भाजपा के उदय का कारण हैं. बीजेपी का मुख्य लक्ष्य दक्षिण बंगाल में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के प्रभाव वाले क्षेत्रों में उनका मुकाबला करना है. इन इलाकों में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है और स्थानीय लोगों को उज्जवल भविष्य का आश्वासन देकर इन क्षेत्रों में कब्जा करना बीजेपी के लिए काफी अहम है.”
लाहिड़ी का कहना है, “बंगाल में बीजेपी के मजबूत होने का मुख्य कारण तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं. सरकारी शिक्षण संस्थानों में नौकरियां दे पाने की असफलता ने आम लोगों को बहुत प्रभावित किया है. अम्फान चक्रवात के दौरान राहत प्रदान करने में भी भ्रष्टाचार टीएमसी के खिलाफ गया.”
बीजेपी की रणनीति
अपने दो दिवसीय पश्चिम बंगाल दौरे के दौरान नड्डा ने पार्टी की गतिविधियों का जायजा लिया और नवनिर्मित भवानीपुर पार्टी चुनाव कार्यालय में विभिन्न स्तर के कार्यकर्ताओं से बातचीत की.
नड्डा ने भवानीपुर के मतदाताओं के साथ भाजपा के ‘आर नोई अन्याय’ (अब और अन्याय नहीं) अभियान के तहत डोर-टू-डोर प्रचार किया, जिसका मकसद उन लोगों को अपनी तरफ लाना है जो वर्षों से टीएमसी के ‘अत्याचार’ से पीड़ित हैं.
बीजेपी ममता के निर्वाचन क्षेत्र भवानीपुर और अभिषेक बनर्जी के डायमंड हार्बर में क्रमशः 120 दिन के अभियान की योजना बना रही है.
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में 185 वोटों की मामूली बढ़त हासिल की थी और 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट पर उसे 3,168 वोटों की बढ़त हासिल हुई. हालांकि, 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता ने कांग्रेस की दीपा दासमुंशी को 25,000 वोटों के अंतर से हरा दिया था और बीजेपी तीसरे स्थान पर रही थी. ममता की विधानसभा सीट पर 45,000 मुस्लिम वोटर, 50,000 गैर-बंगाली वोटर और बाकी 90,000 बंगाली वोटर हैं.
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नड्डा की यात्रा शुरू होने के साथ बीजेपी ने मुख्यमंत्री को उनकी अपनी ही सीट पर घेरने के लिए लगातार गतिविधियां आयोजित करने की योजना बनाई है.
बीजेपी का दूसरा बड़ा लक्ष्य अभिषेक बनर्जी की सीट डायमंड हार्बर है. डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र की सभी सात विधानसभा सीटों में मुस्लिम आबादी अच्छी संख्या में है और 2019 के लोकसभा चुनावों में अधिकांश विधानसभा सीटों पर बीजेपी दूसरे स्थान पर रही. बीजेपी ने तय किया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह इन सात में से कम से कम चार सीटें हासिल करेगी.
डायमंड हार्बर में बीजेपी हिंदू वोटों को मजबूत करने के साथ-साथ स्थानीय टीएमसी नेताओं में बढ़ती अभिषेक विरोधी भावना का दोहन करने की भी योजना बना रही है.
हालांकि, टीएमसी के मंत्री सुजीत बोस आत्मविश्वास के दावा करते हैं कि नड्डा की यात्रा के बाद भी कुछ भी बदलने वाला नहीं है.
बंगाल बीजेपी प्रमुख दिलीप घोष ने पिछले महीने कहा था कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और नड्डा विधानसभा चुनाव तक हर महीने पश्चिम बंगाल का दौरा करेंगे. टीएमसी सांसद सौगत राय ने कहा कि लोग जेपी नड्डा को नहीं जानते. उन्होंने कहा, “ज्यादातर लोग जेपी नड्डा का नाम भी नहीं जानते. वे हिमाचल से हैं और उन्हें वहीं जाना चाहिए, उन्हें बंगाल नहीं आना चाहिए.”
उत्तर-दक्षिण की लड़ाई
2019 में टीएमसी और बीजेपी के बीच करीबी लड़ाई को क्षेत्र के हिसाब से बेहतर समझा जा सकता है. राज्य में मुख्य रूप से चार क्षेत्र हैं - गंगीय बंगाल, उत्तर बंगाल, राढ़ और दक्षिण बंगाल. 2019 के आम चुनावों में बीजेपी ने उत्तर बंगाल और राढ़ क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया था जबकि गंगीय और दक्षिण बंगाल के क्षेत्रों में टीएमसी का प्रदर्शन बेहतर था.
उत्तर बंगाल वह क्षेत्र है जहां 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी का प्रभाव बढ़ रहा है. उत्तर बंगाल कभी वामपंथियों का मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब से यहां का जनाधार टीएमसी और बीजेपी के बीच विभाजित है. 2011 के विधानसभा चुनाव में राज्य में हारने के बावजूद वामपंथी दलों को यहां 39 प्रतिशत वोट मिले थे, जो टीएमसी को मिले वोटों (20 प्रतिशत) से लगभग दोगुना थे, लेकिन 2016 के अगले विधानसभा चुनाव में वाम दलों का प्रतिशत घटकर 21 तक पहुंच गया और टीएमसी का वोट शेयर 37 प्रतिशत हो गया.
विधानसभा चुनाव-2016 में बीजेपी को महत्वपूर्ण फायदा हुआ और उसका वोट शेयर पांच प्रतिशत से 15 प्रतिशत पर पहुंच गया. तब से इस क्षेत्र में बीजेपी को बड़ा समर्थन मिल रहा है और 2019 में पार्टी ने इस क्षेत्र की सभी संसदीय सीटें जीतीं.
कांग्रेस पार्टी का इस क्षेत्र में खास प्रभाव नहीं है, लेकिन एक महत्वपूर्ण वोट शेयर उसका भी है. पार्टी को 2011 में 19 और 2016 में 17 प्रतिशत वोट मिले. हालांकि, दोनों चुनावों में कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. 2011 में कांग्रेस, टीएमसी के साथ गठबंधन में थी और 2016 में वाम दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी.
उत्तर बंगाल की तुलना में दक्षिण बंगाल को ममता के नेतृत्व वाली टीएमसी का गढ़ माना जाता है. पार्टी को इस क्षेत्र में लगातार कुल वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिलता रहा है. 2011 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ी और 2016 में अकेले चुनाव लड़ी और दोनों बार इस क्षेत्र में उसे 49 प्रतिशत वोट मिले.
यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तर बंगाल और राढ़ क्षेत्रों में हावी रही लेकिन तृणमूल ने दक्षिण में अपना किला बरकरार रखा.
2021 के लिए दक्षिण को वाम की जरूरत
बीजेपी राज्य में टीएमसी की ताकत का अंदाजा लगाने में सक्षम रही है और एक मजबूत ताकत के रूप में इसका उदय इस बात पर निर्भर करेगा कि वह दक्षिण और पश्चिम बंगाल में कैसा प्रदर्शन करती है. बीजेपी ने उत्तर बंगाल में पहले ही अपना मजबूत आधार बना लिया है लेकिन दक्षिण में उसके सामने दो चुनौतियां हैं; एक तो यह क्षेत्र टीएमसी का मजबूत गढ़ है और दूसरे लेफ्ट का भी यहां अच्छा खासा जनाधार है. इसके अलावा, ये भी गौरतलब है कि दक्षिण में अन्य क्षेत्रों की तुलना में विधानसभा सीटों की संख्या ज्यादा है.
अगर बीजेपी टीएमसी के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करना चाहती है तो उसे दक्षिण पश्चिम बंगाल में अपने प्रदर्शन को बड़े पैमाने पर सुधारना होगा और यह तभी संभव हो सकता है जब बीजेपी लेफ्ट के जनाधार को अपनी तरफ मोड़ दे. संक्षेप में कह सकते हैं कि वामपंथियों की मदद के बिना दक्षिणपंथी (बीजेपी) पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल नहीं कर पाएंगे.
वाम मोर्चा जब सत्ता में था, तब से ही पूर्वी और पश्चिमी मिदनापुर टीएमसी के गढ़ हैं. पार्टी ने पिछले एक दशक में इतिहास बनाते हुए जिला पंचायत और पंचायत चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की है और तबसे पीछे मुड़कर नहीं देखा. बीजेपी घेराबंदी के लिए आगे बढ़ रही है और अगर वह सफल रही तो पुरस्कार के रूप में उसे पश्चिम बंगाल की सत्ता मिल सकती है.
(कोलकाता से संदीप घोष के इनपुट के साथ)
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