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नॉर्थ ईस्ट को शेष भारत से जोड़ने वाले कोरोनेशन पुल की हालत जर्जर, मरम्मत की दरकार

बंगाल सरकार कहती है कि सेवोक का दूसरा ब्रिज केंद्र को बनाना है वो इसमें ज्यादा कुछ नहीं कर सकती. खुद ममता बनर्जी ने कहा है कि इस मामले में राज्य सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर सकती है.

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कोरोनेशन ब्रिज अब जर्जर हो चुका है
कोरोनेशन ब्रिज अब जर्जर हो चुका है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ये ब्रिज नॉर्थ ईस्ट समेत बंगाल के लिए भी जरूरी
  • ब्रिटिश काल में बना था पुल, भूकंप से पड़ी दरार
  • केंद्र और राज्य सरकार दोनों एक दूसरे पर टालते रहे हैं

भारत के नॉर्थ ईस्ट से शेष भारत को जोड़ने वाला सेवोक का ऐतिहासिक कोरोनेशन ब्रिज जर्जर हो चुका है और आए दिन यात्रियों की मौत का कारण बनता जा रहा है. लेकिन केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही इसे लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखा रही है. 18 सितंबर 2011 को रेक्टर स्केल पर 6.8 की गति से आए भूकंप के कारण इस पुल में क्रैक आ गया था. इस ब्रिज को चिकन नेक भी कहा जाता है. यहां की बड़ी आबादी की मांग और लगातार आंदोलनों के बावजूद केंद्र और राज्य के बीच नए पुल की मांग अभी भी फंसी हुई है. जाहिर है लोगों का जो मूड है उससे कई राजनेताओं के लिए कोलकाता (विधानसभा) तक की यात्रा भी मुश्किल हो जाएगी.

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1937 में 7 सिस्टर्स राज्य (नॉर्थ ईस्ट) समेत डोकलाम और ऊपर के आर्मी बेस को जोड़ने के लिए ब्रिटिश काल में बना ऐतिहासिक कोरोनेशन ब्रिज अपने आप में खूबसूरती की मिसाल है और काफी महत्वपूर्ण भी है. भारत के इस हिस्से में रहने वालों के लिए ये लाइफ लाइन है. लेकिन 1937 में बने इस ब्रिज की लाइफ अब खत्म हो चुकी है. ये देखने में जितना खूबसूरत है उतना ही खतरनाक भी. ब्रिज के हालात ठीक नहीं है, किसी दिन किसी बड़ी दुर्घटना होने की संभावना बनी रहती है. इसके इतर यहां दोनों तरफ से पैसेज इतना पतला है कि आए दिन दुर्घटना होती है और बरसात में इन पहाड़ों पर भूस्खलन हो जाता है तो और भी मुश्किल हो जाता है. यहां के लोगों की पुरानी मांग है कि एक नया ब्रिज इस रेलवे लाइन के बगल से बना दिया जाए तो समय की काफी बचत होगी और पर्वत से लैंडस्लाइड होने का डर भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. लेकिन वर्षों के संघर्ष के बाद भी कोई नतीजा नही निकल पाया है. 

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यहीं रहने वाले एक नागरिक चंदन रॉय ने इसी ब्रिज के कारण अपने भाई को खोया था. तीन साल पहले जब बरसात में भूस्खलन हुआ था, तो घंटों रोड जाम रहा. वे दुर्घटना में घायल अपने भाई को वक्त पर अस्पताल नहीं पहुंचा पाए. बिजय मंडल और उनके पुत्र विकास आज भी साल 2000 का वो मंजर नहीं भूल पाते, जब इसी पतले रास्ते से गुजर रही बस अनियंत्रित होकर तीस्ता नदी में जा गिरी थी, जिसमें उनकी पत्नी और विकास की मां सवार थीं.

नदी में धार काफी है और गहरी इतनी है कि गाड़ी और बॉडी दोनों को ही समा लेती है. राजस्थान से आये यात्री भी यहीं एक दुर्घटना के शिकार हुए थे. अब तक सैंकड़ों लोग इस खराब रास्ते और सरकारों की उदासीनता का शिकार हो चुके हैं. राज्य सरकार कहती है कि सेवोक का दूसरा ब्रिज केंद्र को बनाना है वो इसमें ज्यादा कुछ नहीं कर सकती. खुद ममता बनर्जी ने कहा था कि इस मामले में राज्य सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर सकती है.

वहीं बीजेपी के सिलीगुड़ी से सांसद राजू बिस्ता कहते हैं कि ''नितिन गडकरी समेत अन्य जगह पर संवाद कर दूसरा ब्रिज अनुमोदित करवा दिया है. केंद्र ने सहमति दे दी है और राज्य को DPR (प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनवाकर देने को कहा था. पैसे केंद्र खर्च करेगी तो उसे माइलेज मिल जाएगा ये सोचकर यहां की राज्य सरकार DPR ही तैयार नहीं करवा रही है.''

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दूसरे ब्रिज के मुद्दे पर लोगों की नाराजगी को देखते हुए लगता है कि ये पुल उत्तर बंगाल की 54 में से कई सीटों के चुनावी समीकरण पर असर डाल सकता है. लाखों की आबादी और नेशनल हाइवे से गुवाहाटी और 7 राज्यों  के बीच, मालवाहक ट्रक इसी पुल से गुजरते हैं और पुल के क्रैक होने के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं. बंगाल की कुल आबादी 10 करोड़ है और नार्थ बंगाल की 3.5 करोड़. असम , भूटान और नार्थ बंगाल को लेकर लगभग 2.3 करोड़ आबादी इस पुल से जुड़ी हुई है. दूसरा पुल बनने से सिलीगुड़ी की दूरी भी 7 सिस्टर्स के लिए 15 किमी कम हो जाएगी.

 

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