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कैसे मुश्किलों के बीच ममता बनर्जी ने 'एक पैर' पर जीता बंगाल का रण

ममता बनर्जी के लिए चुनावी लड़ाई आसान नहीं थी. बीजेपी ने पूरी घेराबंदी कर रखी थी. ममता की पार्टी के सेनानी एक एक करके बीजेपी में जा रहे थे, लेकिन संघर्ष की भट्ठी में तपकर निकलीं ममता बनर्जी भी कहां हार मारने वाली थीं, बीजेपी की हर चाल पर उन्होंने मास्टरस्ट्रोक खेला.

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बंगाल की कमान एक बार फिर जनता ने ममता के हाथ में सौंपी है. (फाइल फोटो)
बंगाल की कमान एक बार फिर जनता ने ममता के हाथ में सौंपी है. (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ममता के करीबी शुभेंदु अधिकारी ने थामा था बीजेपी का दामन
  • बीजेपी ने पूरी घेराबंदी कर रखी थी
  • बीजेपी की हर चाल पर ममता ने मास्टरस्ट्रोक खेला

पश्चिम बंगाल में 10 साल तक राज करने वाली ममता बनर्जी को एक बार फिर पांच साल के लिए प्रचंड बहुमत के साथ जनता ने बंगाल का सिंहासन सौंप दिया. ममता बनर्जी के लिए चुनावी लड़ाई आसान नहीं थी. बीजेपी ने पूरी घेराबंदी कर रखी थी. ममता की पार्टी के सेनानी एक एक करके बीजेपी में जा रहे थे, लेकिन संघर्ष की भट्ठी में तपकर निकलीं ममता बनर्जी भी कहां हार मारने वाली थीं, बीजेपी की हर चाल पर उन्होंने मास्टरस्ट्रोक खेला.

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ममता के करीबी शुभेंदु ने बदला खेमा
ममता बनर्जी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया था. शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की चुनौती दी. ममता ने इस चुनौती को कबूल किया. यही नहीं उन्होंने सिर्फ एक सीट से ही पर्चा भरा. ममता ने इससे संदेश दिया कि वो किसी भी चुनौती से घबराने वाली नहीं हैं. जो डर गया वो घर गया. ममता भले ही नंदीग्राम में कांटे के संघर्ष में फंस गईं, लेकिन उनकी इस दिलेरी का अच्छा संदेश बंगाल के मतदाताओं के बीच गया.

 ममता बनर्जी का चंडीपाठ
बंगाल के चुनाव में बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ जैसे हार्डकोर हिंदुत्ववादी नेताओं को प्रचार के मैदान में उतारा था, जवाब में ममता बनर्जी ने मंच पर ही चंडीपाठ करके इसका जवाब दिया. ममता बीजेपी की हर चुनौती का डटकर मुकाबला किया. उन्होंने बीजेपी को उसके ही अंदाज में जवाब दिया.

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प्लास्टर फैक्टर
बंगाल के इस चुनावी रण में ममता के पांव में प्लास्टर भी एक फैक्टर बन गया. दरअसल 10 मार्च को नंदीग्राम में नामांकन के दिन ममता बनर्जी के पांव में चोट लग गई. उन्होंने आरोप लगाया कि उनके पांव को कुचलने की कोशिश की गई है. ममता के पांव पर प्लास्टर चढ़ गया और व्हीलचेयर पर ही उन्होंने प्रचार किया. व्हीलचेयर पर ही रैलियां कीं, रोड शो में भी वो व्हीलचेयर पर रहीं. बीजेपी नेता उनके पांव की चोट पर सवाल उठाते रहे. बीजेपी नेता डर रहे थे कि ममता की चोट कहीं कहीं सहानुभूति की लहर न बना ले, इस नाते वो उनकी चोट पर आक्रामक होते रहे, ये ममता बनर्जी के लिए फायदेमंद रहा. उन्हें सहानुभूति के वोट मिले. व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे उन्होंने बंगाल से बीजेपी के पांव उखाड़ दिए.

बंगाली अस्मिता का सवाल
बीजेपी बंगाल वालों को सोनार बांग्ला का सपना दिखा रही थी, वहीं ममता बनर्जी ने चुनाव को बंगाली अस्मिता से जोड़ दिया था. बीजेपी को बाहरी साबित करने में ममता कामयाब रहीं. बीजेपी ने बंगाल की जनता को विकास के खूब सपने दिखाए, लेकिन बंगाल की जनता ने सिर्फ ममता बनर्जी पर भरोसा किया. इस भरोसे के पीछे वजह भी है. बंगाल की जनता ने ममता का संघर्ष देखा है. किस तरह बंगाल की सत्ता पर 34 साल तक कब्जा जमाए लेफ्ट को ममता ने सत्ता से बेदखल किया ये भी देखा है. 10 साल से ममता का शासन देखा है. साफ है कि जहां भरोसा है, वहीं जीत है.

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(आजतक ब्यूरो)

 

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